गायत्री मंत्र से जगी ललक, संस्कृत पढ़ा रही हैं रूबी

बुंदेली धरती केवल शूरवीरता और बलिदानियों के लिए ही नहीं सांप्रदायिक सौहर्द कायम रखने में भी अपना अलग स्थान रखती है। यही वजह है कि धर्म के आडंबरों से दूर बंदिशों की सीमाएं तोड़ते हुए कुरआन की आयतों में माहिर और दीन पर यकीन करने वाली रूबी खातून बच्चों को फर्राटे से संस्कृत भाषा की शिक्षा दे रही हैं। रू

By JagranEdited By: Publish:Sun, 22 Sep 2019 11:49 PM (IST) Updated:Wed, 25 Sep 2019 06:29 AM (IST)
गायत्री मंत्र से जगी ललक,  संस्कृत पढ़ा रही हैं रूबी
गायत्री मंत्र से जगी ललक, संस्कृत पढ़ा रही हैं रूबी

सुबोध मिश्र, महोबा

मुस्लिम शख्स..संस्कृत का शिक्षक! कभी इस तरह की बात जरूर चौंकाया करती रही होगी, लेकिन इस मामले में कई नाम सामने आने के बात अब यह नई बात नहीं रही। नई बात है तो सोचने का बदला नजरिया और बदलते समाज की नई कहानी। चलिए, नए भारत की इस नई कहानी की एक और किरदार से आपका परिचय कराते हैं। ये हैं महोबा जिले की रूबी खातून। कुलपहाड़ तहसील के रामरतन भुवनेश कुमार पब्लिक स्कूल में संस्कृत शिक्षिका 31 वर्षीय रूबी मूल रूप से मऊरानीपुर की हैं। जिले की पहली और इकलौती मुस्लिम संस्कृत शिक्षक हैं। वह जितना कुरआन की आयतों की जानकार हैं, उतना संस्कृत पर मजबूत पकड़ रखती हैं।

संस्कृत भाषा को करियर बनाने के पीछे की कहानी रूबी पुरानी यादों में जाकर बताती हैं- बचपन में सुबह चार बजे घर से कुछ दूरी पर ही मंदिर में लाउडस्पीकर से गायत्री मंत्र बजता था, तब वह भी उसे गुनगुनाती, जो अच्छा लगता था। बस यहीं से संस्कृत के प्रति ललक जागी। रामचरित मानस पढ़ने के सवाल पर वह कहती हैं कि पूरी तो नहीं पढ़ी..हां, स्नातक में गीता के 18 अध्यायों का अध्ययन जरूर किया। वह बताती हैं कि पति की छोटी सी दुकान है और वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाकर सुकून महसूस करतीं हैं। किसी ने विरोध नहीं किया। मम्मी-पापा खुश होते हैं कि बेटी संस्कृत पढ़ाती है। रूबी का मानना है कि उर्दू और संस्कृत में दिए मानवता के संदेश एक ही हैं जो एकता के सूत्र की प्रेरणा देते हैं। भाषा को धार्मिक नजर से देखना है गलत है। यह किसी की जागीर नहीं है जो मान लिया जाए कि उर्दू मुसलमानों और संस्कृत हिदुओं की भाषा है। ज्ञान जितना बढ़े, उतना अच्छा है।

रूबी घर-परिवार की देखरेख करने के बाद भी पिछले साढ़े चार साल से अध्यापन कार्य को बखूबी अंजाम दे रहीं हैं। इसके पूर्व वह मायके में भी एक वर्ष राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में संस्कृत का शिक्षण कर चुकी हैं। उन्होंने 12 वर्ष आयु तक मदरसे में मौलवी से कुरआन की दीनी तालीम हासिल की। यूपी बोर्ड से संस्कृत विषय से हाईस्कूल व इंटर के बाद संस्कृत से स्नातक व बीएड की शिक्षा ली। लखनऊ में यूपी मदरसा बोर्ड से मुंशी और लखनऊ विश्वविद्यालय मौलवी की भी शिक्षा हासिल की।

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दीन में कही भी ज्ञान लेना गलत नहीं ठहराया गया है। व्यक्ति कोई भी भाषा सीख कर अच्छाइयां ले सकता है।

-हाफिज अब्दुल हमीद, शहर काजी कुलपहाड़

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