बच्चों में खिला रहे अक्षर के फूल

कहा जाता है कि शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 04 Sep 2018 11:35 PM (IST) Updated:Tue, 04 Sep 2018 11:35 PM (IST)
बच्चों में खिला रहे अक्षर के फूल
बच्चों में खिला रहे अक्षर के फूल

शैलेंद्र त्रिपाठी, परसामलिक, महराजगंज:

कहा जाता है कि शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता। यदि मन में बच्चों के प्रति प्रेम व दिल में सेवा का भाव हो तो वह निश्शुल्क शिक्षा दान देकर समाज मे एक मिसाल पेश करता है। कुछ इसी तरह का भाव जिले के नौतनवा ब्लाक क्षेत्र के ग्राम सभा मनिकापुर निवासी 66 वर्षीय विष्णुचंद त्रिपाठी के मन में जगा। सेवानिवृत्त होने के चार साल बाद भी वे क्षेत्र के निजी विद्यालय में नियमित पहुंचकर निश्शुल्क विद्या का दान करते हैं, साथ ही घर पर भी वे घंटों बच्चों को पढ़ाने में मशगूल रहते हैं।

नौतनवा ब्लाक क्षेत्र के मनिकापुर गांव निवासी विष्णुचंद त्रिपाठी गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक व चंदेश्वर पीजी कालेज, आजमगढ़ से बीएड की शिक्षा ग्रहण करने के बाद शिक्षक बनकर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना मन में पाले बैठे थे। इसी दौरान उनका चयन वर्ष 1971 में निचलौल क्षेत्र के राजा रतनसेन इंटरमीडिएट कालेज से संबंद्ध प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक पद हुआ। फिर 1995-96 में वे प्रोन्नति पाकर एलटी ग्रेड के सहायक शिक्षक बन गए। अपने सेवाकाल के दौरान ¨हदी, संस्कृत शिक्षक के रूप में छात्र-छात्राओं व शिक्षकों के बीच काफी लोकप्रिय रहे। जून 2014 में सरकारी शिक्षक पद से सेवानिवृत होने के बाद भी वह चुपचाप घर बैठना बेहतर नहीं समझे और वे अपने दरवाजे पर बने बैठका में ही गृह पाठशाला चलाना शुरू कर दिए। उनकी इस पाठशाला में सुबह शाम दर्जनों की संख्या में समय निकाल कर विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं पहुंच जाते हैं। जिन्हें वे पढ़ाने के बदले किसी से कुछ भी नहीं लेते। इसके अलावा भी गांव से करीब तीन किमी दूर हरपुर पाठक गांव स्थित बीएन पब्लिक स्कूल में छात्र-छात्राओं को निश्शुल्क ¨हदी व संस्कृत विषय का ज्ञान कराते हैं। हालांकि शासन द्वारा सेवानिवृत इच्छुक शिक्षकों को मानदेय पर पुन: पढ़ाने का जब शासनादेश जारी हुआ तो विष्णुचंद ने इससे साफ मना कर दिया और बिना कुछ लिए स्वेच्छा से बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देना ही मुनासिब समझा। इस कार्य में उनकी इंटरमीडिएट पास धर्मपत्नी सुभद्र त्रिपाठी का भी पूरा-पूरा सहयोग मिल रहा है। स्वास्थ्य में आई गिरावट के बाद भी वह पति के कार्यों में काफी बाधा नहीं बनती।

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गरीबों की मदद में भी कभी पीछे नहीं रहे विष्णुचंद

परसामलिक, महराजगंज

मनिकापुर गांव निवासी विष्णुचंद धर्मपत्नी सुभद्रा के साथ जीवन यापन करते हैं। उनके बीच कोई संतान नहीं है। फिर भी वे गांव के हर जरूरतमंद के सुख-दुख में सदैव हाजिर रहना अपना मानवीय कर्तव्य समझते हैं। गांव के जयप्रकाश शर्मा की बेटी के हाथ पीले करने का समय आया तो वे अपने खर्चे से उसकी शादी संपन्न कराने में आगे आ गए। इसी तरह अब जब उनकी दूसरी बेटी मीना शर्मा की शादी के लिए तैयारियों शुरू हुई हैं तो विष्णुचंद पूरी तन्मयता से इसे भी पूरा कराने में अभी से जी जान से जुट गए हैं।

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