Lucknow University Centenary Year Celebration: लखनऊविद़् पद्मश्री योगेश प्रवीण ने ताजा किया विवि और लखनऊ के बीच का रिश्ता

लखनऊविद़् पद्मश्री योगेश प्रवीण ने कहा कि जब हम यहां पढते थे तब जमाना बड़ी अफरा तफरी वाला था। ब्रिटिश समय जा रहा था। नया दौर आ रहा था। उस वक्त अनुशासन और सलीका था। जिसका असर अब तक देखा जा सकता है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Fri, 20 Nov 2020 06:31 PM (IST) Updated:Fri, 20 Nov 2020 06:31 PM (IST)
Lucknow University Centenary Year Celebration: लखनऊविद़् पद्मश्री योगेश प्रवीण ने ताजा किया विवि और लखनऊ के बीच का रिश्ता
लव‍िव‍ि के स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन साहित्यिक उत्सव में लविवि और लखनऊ के रिश्ते पर बात हुई।

लखनऊ, जेएनएन। पद्मश्री याेगेश प्रवीण ने लविवि स्थापना दिवस समारोह के आयाेजन में शुक्रवार को लखनऊ विश्वविद्यालय और लखनऊ के पुराने रिश्ते को ताजा किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से उनके समय के युवा लखनवी तहजीब और शेरो शायरी से जुड़े हुए थे। लखनऊ के ऐसे ऐसे किस्से इस साहित्यिक विर्मश सामने उनके व्याख्यान के दौरान लोग उनको मंत्रमुग्ध सुनते रहे।

स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन साहित्यिक उत्सव में लविवि और लखनऊ के रिश्ते पर बात हुई। जिसमें मुख्य वक्ता लखनऊविद़् पद्मश्री योगेश प्रवीण ने कहा कि जब हम यहां पढते थे तब जमाना बड़ी अफरा तफरी वाला था। ब्रिटिश समय जा रहा था। नया दौर आ रहा था। उस वक्त अनुशासन और सलीका था। जिसका असर अब तक देखा जा सकता है। लखनऊ वाले कहीं भी जाएं पहचान लिए जाते हैं। आप अलग जान लिए जाते हैं। उन्होंने शेर पढ़ा कि गुलाब फूलों में पहचान लिया जाते हैं, लखनऊ वालों को जुबान से ही लोग जान जाते हैं... उन्होंने अपनी और साहित्यकार कुरुतुल हैदर से हुई मुलाकात का जिक्र किया। बताया कि वह रिवर बैंक कालोनी में ठहरी थीं। एक बार मैं मिला तो वह बड़ी खुशी हुई। उनका एक शेर है कि हम आते जाते लोगों में सूरत तेरी ढूंढा करते हैं... गलियों के मोड़ो पर जलती कंदीलों की तरह। वह मुझसे सावन में मिली थी। उनके घर आईं लडकिया रेजीडेंसी जाना चाहती थीं। वे अंग्रेजी मीडियम से पढ़ी थीं। बारिश होने लगी तो वे बोली कि इट्स रेनिंग । तब उन्होंने कहा कि अंग्रेजी कैसी भाषा है जिसमें बारिश को एक तरह से बोला जाता है। मगर हमारी हिंदी और उर्दू में अलग अलग तरह से बोला गया है।

लखनऊ की तहजीब पर रोशनी डालते हुए योगेश प्रवीण ने बताया कि पहले भगवान कृष्ण की झांकियां को सजाने में मुसलमान लगते थे। मुनीर मंजिल की गाने वालियां बहुत तहजीब वाली थीं। ये लोग चौक में भगवान कृष्ण के मंदिर में उनका सेहरा बनाकर लाइ थीं। अनवरी जरीना और सुरैया ने भगवान कृष्ण के लिए जनमाष्टमी पर गाया था कि मुबारक तुमको फूलों का बनाकर लाये सेहरा, हम अपने दिल का लाए हैं टुकड़ा। इसलिए लखनऊ का लहजा और जादू इन्हीं बातों से हैं। ये लखनऊ की फिजा है। हमारा जमाना सब्र का था। सब भगवान पर भरोसा था।

इस मौके पर साहित्यकार सलीम आरिफ ने बताया कि लखनऊ विश्विद्यालय के साहित्य से जुड़ाव पर बात बहुत हो सकती हैं। हमने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को इस से जोड़ने का जरिया इस मौके को पाया। परिसर में पहले शायरी और कविता की बात होती थी। मजाज, दुष्यंत और हलीम को बात होती थी। कृष्ण नारायण कक्कड़, राज बिसरिया, योगेश प्रवीण और ऐसे ही अनेक लोगों की बातें होती थीं। मैंने चाणक्य, भारत और खोज और मिर्जा गालिब को डिजाइन किया। योगेश प्रवीण जैसे व्यक्ति का साथ होना अहम है। उनकी लखनऊ के साथ मुहब्‍बत है उनकी। उन्होंने लखनऊ की इमारतों को अलग नजरिया दिया।

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