खेल के दम पर अलग मुकाम हासिल कर रही हैं बेटियां, घर की जिम्मेदाररियों के बीच बना रहीं कॅरियर

जीवन में ना हारने का जज्बा पैदा करते स्पो‌र्ट्स। खेल के दम पर कॅरियर बनाने के साथ ही घर संभाल रहीं बेटियां।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 29 Aug 2018 01:07 PM (IST) Updated:Wed, 29 Aug 2018 01:26 PM (IST)
खेल के दम पर अलग मुकाम हासिल कर रही हैं बेटियां, घर की जिम्मेदाररियों के बीच बना रहीं कॅरियर
खेल के दम पर अलग मुकाम हासिल कर रही हैं बेटियां, घर की जिम्मेदाररियों के बीच बना रहीं कॅरियर

लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। ''मैंने अपनी जिंदगी से हार मान ली थी पर मेरे अंदर छिपे एथलीट ने मुझे इससे जूझने की प्रेरणा दी। मैं रोई, घबराई पर हार नहीं मानी। खेल ने मुझे जीवन में आई मुश्किलों से लड़ना सिखाया..।'' करीब दो वर्ष तक डिप्रेशन में रहीं फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के ये शब्द कई अन्य लोगों के अनुभव भी हैं। खेल चाहे जो भी हो, खिलाड़ी जीतने के लिए ही उतरता है। कभी हार भी देखनी पड़ती है तो दोबारा दोगुने दमखम के साथ मैदान में उतरता है। लड़ने और जीतने के इसी जज्बे का नाम स्पो‌र्ट्स है। शहर में भी खेल का हाथ पकड़ दुनियावी झंझावतों को हरा बेटियां हर मैदान फतह कर रही हैं। कुछ 'खास' बच्चे भी हैं जो खेल के जरिए देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं।

अशक्त पिता की सशक्त बेटी :

छोटा भाई भी है। 2016 में सड़क दुर्घटना ने पिता को पैरों से दिव्यांग कर दिया। फिलहाल अशक्त पिता की सशक्त बेटी के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी है। राजेंद्र नगर की रहने वाली प्रियंका स्पोट्स टीचर हैं। वो बताती हैं, कक्षा 11 में थी तब पहली बार स्पो‌र्ट्स से जुड़ाव हुआ। इसके बाद स्नातक में खेलों के प्रति रुझान और बढ़ा। लविवि से बीपीएड और छत्तीसगढ़ से एमपीएड किया। छत्तीसगढ़ में एक साल पीटी टीचर के रूप में काम किया। फिर लखनऊ वापस आकर सरोजनी नगर स्थित मिशनरी स्कूल में पीटी टीचर की जिम्मेदारी संभाली। ऑल इंडिया लेवल (एथलेटिक्स) और नॉर्थ जोन इंटर यूनिवर्सिटी (कबड्डी) समेत कई स्पो‌र्ट्स एक्टिविटी में हिस्सा लिया है। संदेश : स्पो‌र्ट्स हमें मजबूत बनाता है।

परिवार का मजबूत आर्थिक कंधा :

आलमबाग निवासी मीनू तिवारी पेशे से स्पो‌र्ट्स टीचर हैं। 2006 में मां की मृत्यु हो गई। 2007 में भाई का साथ छूट गया। एक पिता और पांच बेटियों का परिवार रह गया। पिता प्राइवेट जॉब करते हैं। मीनू कहती हैं कि एक बहन की शादी के बाद पिता पर चार बेटियों के आर्थिक भार को कुछ कम करने का प्रयास रहता है। बताती हैं, जनता ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, आलमबाग में कक्षा छह में पढ़ाई के दौरान स्पो‌र्ट्स एक्टिविटी के तौर पर कबड्डी में हिस्सा लेने का मौका मिला। 2008 में पहली बार जूनियर कबड्डी चैंपियनशिप के लिए बलिया गए। स्नातक के दौरान 2011 में ऑल इंडिया लेवल एथलेटिक्स में जाने के लिए पैसे नहीं हो पा रहे थे, तब स्पो‌र्ट्स टीचर ने मदद की। 2013 में आंध्र प्रदेश में ऑल इंडिया लेवल स्पो‌र्ट्स एक्टिविटी में सेमीफाइनल (100 मीटर हडल) तक पहुंची। लविवि से बीपीएड और एमपीएड के बाद मोहनलालगंज में तीन साल तक काम किया। फिलहाल लखीमपुर में स्पो‌र्ट्स टीचर के रूप में काम कर रही हूं। संदेश : खेल हमें विकट परिस्थितियों से भी जूझने का जज्बा देते हैं। पिता और पति दोनों स्पो‌र्ट्स पर्सन :

नवयुग कन्या महाविद्यालय में शारीरिक शिक्षा प्रवक्ता सीमा पांडेय बताती हैं, स्पो‌र्ट्स में रुचि बचपन से ही रही। पिता स्टेट लेवल वॉलीबाल प्लेयर रहे। नवोदय विद्यालय, रुद्रपुर से स्कूलिंग रही, वहां खेलों को बहुत महत्व देते हैं। कक्षा आठ में बास्केटबॉल रिजनल टीम में सेलेक्शन हुआ। कक्षा 11 में स्कूल नेशनल में सेलेक्शन हुआ, जिसमें प्रतिभाग करने विजयवाड़ा गई। कुमाऊं विवि नैनीताल से स्नातक करते हुए बास्केटबॉल, खो-खो, वालीबॉल, एथलेटिक्स में तीन वर्षो तक लगातार विवि का प्रतिनिधित्व किया। लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज से बीपीएड और एमपीएड किया। पढ़ाई के साथ-साथ नेट क्वालीफाई करने के बाद नवयुग कन्या महाविद्यालय में नियुक्ति हुई। जीवन साथी डॉ. सुधीर श्रीवास्तव भी खेलों से जुड़े हैं। नेशनल लेवल फुटबॉल खिलाड़ी होने के साथ ही केएनआइ, सुलतानपुर के बीपीएड विभाग के एचओडी हैं।

संदेश : हर किसी को किसी न किसी स्पो‌र्ट्स से जरूर जुड़े रहना चाहिए।

जो भी हूं.. स्पो‌र्ट्स की वजह से :

राजाजीपुरम निवासी जिया परवीन पेशे से स्पो‌र्ट्स टीचर हैं। जिया बताती हैं, कॉलेज का पहला दिन था। शारीरिक शिक्षा के बारे में एक रोचक स्पीच सुना। उसके बाद खेलों से जुड़ने का मन हुआ। पहली बार वालीबॉल टीम में सेलेक्शन के बाद खेलने को मिला। स्नातक के बाद बीपीएड किया। बड़ी बहन ने एमपीएड करने में मदद की। पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ही स्पो‌र्ट्स टीचर के रूप में नौकरी मिल गई। नौकरी के साथ ही हाल ही में अजमेर में नेशनल (क्रिकेट) में खेलने को मिला।

संदेश : स्पो‌र्ट्स हर तरह की कमजोरी से लड़ने की ताकत देता है। स्पो‌र्ट्स लवर बनीं फिटनेस कोच :

ऐशबाग निवासी प्रियंका कपूर फिटनेस कोच हैं। यह बताती हैं कि बड़े भाई की प्रगतिशील सोच और हौसलाअफजाई ने खेलों के प्रति रुझान को बने रहने दिया। स्नातक में दाखिले के बाद 2013 में कॉलेज में पहला गेम खो-खो खेला। एनसीसी भी ज्वाइन की। इसमें शूटिंग, रनिंग आदि में मेडल जीते। एक समय पर सिर से बड़े भाई का हाथ छूट गया। घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। जॉब ऐसी मिल रही थी कि घर के खर्चे पूरे नहीं हो पा रहे थे। जिम में फिटनेस कोच के तौर पर काम करना शुरू किया।

संदेश : जो खेल से जुड़ा रहता है वह हमेशा जीतने के रास्ते खोजता है। पल्लव के जज्बे को सलाम :

पल्लव अल्प मानसिक मंदता और श्रवणबाधिता से ग्रसित हैं। खेलकूद में उसे बचपन से रुचि रही। 2006 में पल्लव के पिता गुमशुदा हो गए। पल्लव की मां संध्या ने हार नहीं मानी। 2010 में मां ने पल्लव को आशा ज्योति संस्थान में दाखिला करा दिया। 15 अगस्त 2010 को पल्लव की माता का देहांत हो गया। 2010 में पल्लव ने सोलन (हिमांचल प्रदेश) में क्रिकेट एवं फ्लोर हॉकी की नेशनल चैंपियनशिप (शिमला) में हिस्सा लिया। 2010 में लखनऊ में जिला स्तरीय प्रतियोगिता में 100 मीटर रेस और हरिद्वार में हुई एथलेटिक्स में हिस्सा लिया। बरेली में हुई वालीबॉल और बास्केटबॉल प्रतियोगिता में भी पुरस्कार जीते। 2012 में देहरादून में रेस एवं शॉटपुट, आगरा में एथेटिक्स, पटियाला में हैंडबॉल में हिस्सा लिया। 2013 में पल्लव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाई। एशिया पेसिफिक गेम्स में क्रिकेट में हिस्सा लिया, जो ऑस्ट्रेलिया में हुए। 2014 में बांग्लादेश में आयोजित यूनिफाइड क्रिकेट टीम में हिस्सा लेकर स्वर्ण पदक जीता। 2015 के व‌र्ल्ड गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। इनकी खेल-प्रतिभा भी 'खास' :

चेतना संस्थान से मोहम्मद हामिद और अमित श्रीवास्तव ने 2007 में स्पेशल ओलंपिक व‌र्ल्ड समर गेम्स में एथलेटिक्स और वालीबॉल में सिल्वर मेडल हासिल किया। वहीं 2011 में एथेंस में हुए व‌र्ल्ड समर गेम्स में चेतना संस्थान से एजाज सिद्दीकी, अस्मिता संस्थान से दीपिका गुप्ता और आशा ज्योति से निभा त्रिपाठी ने साइकिलिंग, एथलेटिक्स, और टेबल टेनिस में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते।

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