रामनगरी की तीन व‍िभूत‍ियां राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में, तारीखों के आईने में मंद‍िर आंदोलन

अयोध्या विवाद में हिंदू पक्ष के मुख्य वकील रहे 92 वर्षीय के. पाराशरण को ट्रस्टी बनाया गया है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 05 Feb 2020 08:33 PM (IST) Updated:Thu, 06 Feb 2020 07:25 AM (IST)
रामनगरी की तीन व‍िभूत‍ियां राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में, तारीखों के आईने में मंद‍िर आंदोलन
रामनगरी की तीन व‍िभूत‍ियां राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में, तारीखों के आईने में मंद‍िर आंदोलन

अयोध्या, जेएनएन। राममंदिर निर्माण के लिए नवगठित 15 सदस्यीय अयोध्या तीर्थ क्षेत्र में रामनगरी के भी तीन चेहरे शामिल हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट में अयोध्या के तीन लोगों को शाम‍िल क‍िया गया है। अयोध्या राज परिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन मिश्र, निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेन्द्रदास, होम्योपैथी मेडीसिन बोर्ड के रजिस्ट्रार डॉ अनिल मिश्र को ट्रस्‍‍‍ट का सदस्य बनाया गया है। अयोध्या विवाद में हिंदू पक्ष के मुख्य वकील रहे 92 वर्षीय के. पाराशरण को ट्रस्टी बनाया गया है।

अयोध्या का राजा हैैं बिमलेंद्र मोहन

निवर्तमान अयोध्या रियासत के राजा बिमलेंद्रमोहन मिश्र (64) को आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संस्कार विरासत में मिला है। विरासत में उन्हें अयोध्या की राज परंपरा भी मिली पर वे अपनी सरलता-शालीनता के लिए जाने जाते रहे हैं। उनका यह मिजाज ताजा जिम्मेदारी मिलने के मौके पर भी परिलक्षित हुआ। ट्रस्ट में शामिल किए जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह के प्रति आभार जताया। कहा कि मैं भाग्यवान हूं, जो अयोध्या में पैदा हुआ। रामलला की सेवा का जो अवसर मिला है, उसे पूरी निष्ठा से निभाऊंगा।

बाल्यावस्था में ही साधु बने दिनेंद्रदास

अयोध्या जिला के ही ग्राम रामपुर बैहारी में पैदा हुए निर्मोही अखाड़ा के 50 वर्षीय महंत दिनेंद्रदास बाल्यावस्था में ही साधु बन गए। संयोगवश बचपन में ही उन्हें जन्मभूमि के ही करीब निर्मोही अखाड़ा से जुड़ी पीठ की महंती मिल गई। वाणिज्य से परास्नातक दिनेंद्रदास ने चार साल पूर्व निर्मोही अखाड़ा की महंती संभाली। इससे पूर्व उप सरपंच के तौर पर भी अखाड़ा में उनकी खास अहमियत रही।

अनिल ने आपातकाल के ही दौरान संघ का थामा दामन

डॉ. अनिल मिश्र मूलत: अंबेडकरनगर जिले के हैं। करीब साढ़े चार दशक पूर्व आरएसएस से जुड़ाव के साथ वे अयोध्या शहर आ गए। आपातकाल के विरोध में छाप छोडऩे वाले डॉ. मिश्र ने समाजसेवा के साथ 1981 में बीएचएमएस करने के बाद चिकित्सक के रूप में भी खूब ख्याति अर्जित की। वे लंबे समय से आरएसएस के अहम पदों का निर्वहन करते आ रहे हैं। 

रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ तारीखों के आइने में 1528 : मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। 1885 : महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी। 1949 : केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गईं। 1950 : रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल ङ्क्षसह विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की। 1950 : परमहंस रामचंद्रदास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की। 1959 : निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की। 1981 : उत्तरप्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की। एक फरवरी 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के मकसद से ङ्क्षहदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया। 14 अगस्त 1986 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। छह दिसंबर 1992 : विवादित ढांचे को ढहाया गया। तीन जनवरी 1993 : विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून पारित किया। 24 अक्टूबर 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है। अप्रैल 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू। 13 मार्च 2003 : उच्चतम न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा, अधिग्रहीत स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है। 30 सितंबर 2010 : उच्च न्यायालय ने विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। 9 मई 2011 : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई। 26 फरवरी 2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर विवादित स्थल पर राममंदिर बनाए जाने की मांग की। 21 मार्च 2017 : सीजेआई जेएस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया। सात अगस्त 2017 : उच्चतम न्यायालय ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। आठ अगस्त 2017 : उत्तरप्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है। 11 सितंबर 2017 : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि दस दिनों के अंदर दो अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करें, जो विवादित स्थल की यथास्थिति की निगरानी करे। 20 नवंबर 2017 : यूपी शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मंदिर का निर्माण अयोध्या में किया जा सकता है और मस्जिद का लखनऊ में। एक दिसंबर 2017 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए 32 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की। आठ फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की। 14 मार्च 2018 : उच्चतम न्यायालय ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका सहित सभी अंतरिम याचिकाओं को खारिज किया। 29 अक्टूबर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की, जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी। आठ जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने की। इसमें न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे। 25 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर शामिल थे। 26 फरवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की, जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा। आठ मार्च 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला बनाए गए। 10 मई 2019 : मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 15 अगस्त तक समय सीमा बढ़ाई। 18 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिये कहा। एक अगस्त 2019 : मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई। दो अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया। छह अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की। चार अक्टूबर 2019 : अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा। 16 अक्टूबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा। नौ नवंबर 2019 : सुप्रीमकोर्ट की पांच जजों की पीठ ने एकमत से रामलला के हक में फैसला सुनाया। पांच फरवरी 2020 : राममंदिर निर्माण के लिए श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन।

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