संरक्षण कार्यः कबीर की थातियों से झाड़ी जाने लगी गर्द

वाराणसी के कबीरचौरा मठ मूलगादी में महान संत कबीरदास की थातियों के संरक्षण की कवायद अंतत: शुरू हो गई। इसके लिए लखनऊ से आए राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला के दल ने कार्य शुरू कर दिया है। इसमें संत कबीर द्वारा उपयोग में ले आई गई काठ की हांडी पर

By Nawal MishraEdited By: Publish:Wed, 25 Mar 2015 09:49 AM (IST) Updated:Wed, 25 Mar 2015 09:50 AM (IST)
संरक्षण कार्यः कबीर की थातियों से झाड़ी जाने लगी गर्द

लखनऊ। वाराणसी के कबीरचौरा मठ मूलगादी में महान संत कबीरदास की थातियों के संरक्षण की कवायद अंतत: शुरू हो गई। इसके लिए लखनऊ से आए राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला के दल ने कार्य शुरू कर दिया है। इसमें संत कबीर द्वारा उपयोग में ले आई गई काठ की हांडी पर चढ़ी गर्द साफ की जा रही है। उनसे जुड़ी अन्य वस्तुओं का भी मूल स्वरूप लौटाया जाएगा। उनके विचारों को सहेजे पांडुलिपियों को भी संरक्षित करने की योजना है। सभी 700 पांडुलिपियों व दो पेटिंग भी लखनऊ स्थित अनुसंधानशाला भेजी जाएंगी। संरक्षण के लिए आए दल में सीनियर टेक्नीकल रेस्टोरर वीरेंद्र कुमार रसायनज्ञ और वरिष्ठ संरक्षण सहायक शिव बालक फाइन आर्ट विशेषज्ञ हैं। दोनों सदस्य पहले दिन मंगलवार को काठ की हांडी व ताना बाना के लौह कील को मूल स्वरूप देने में जुटे रहे। इसके लिए हांडी पर थिनर लगाने के बाद विशेष प्रकार के औजार से खुरचा जाता रहा। शाम तक हांडी की लालिमा और ताना बाना की कील की चमक लौटने लगी। रसायनज्ञ वीरेंद्र कुमार ने बताया कि अभी हांडी व कील को मूल रूप में आने में दो दिन लगेंगे। इसी प्रकार खड़ाऊं व त्रिशूल को भी सहेजा जाएगा।

मठ के कण कण में कबीर

वास्तव में कबीरचौरा मठ मूलगादी के कण कण में कबीर की यादें बसी हैं। उस दौर में लहरतारा तालाब के किनारे मिले नवजात कबीर का नीरू नीमा ने मठ से सटे परिसर में लालन पालन किया। मूल मठ परिसर कबीर की साधना स्थली थी। बाद के वर्षों में संत कबीर के मगहर गमन व ब्रह्मïलीन होने के बाद उनके अनुयायियों ने मठ की स्थापना की। इसमें उनके द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तुओं यथा-खड़ाऊं, हांडी, तानाबाना, किसी संत द्वारा हारा गया त्रिशूल व गुरु रामानंद से मिली माला (जो पिछले साल चोरी हो गई) को सहेज रखा था। वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण न होने से इनका मूल स्वरूप छिप गया था।

लंबे प्रयास का प्रतिफल

वास्तव में नीरू नीमा टीला पर 4.66 करोड़ की लागत से म्यूजियम व ट्राइबल हट बनाई जानी है। इसके लिए केंद्र सरकार के पास वर्षों से प्रस्ताव लंबित है। इसके लिए आचार्य विवेक दास ने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को कई बार पत्र लिखा। इस क्रम में दो माह पहले संस्कृति सचिव रवींद्र सिंह मठ आए थे। उन्होंने कबीर द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तुओं के साथ ही पांडुलिपि व नीरू नीमा टीला का निरीक्षण किया था। इन्हें वैज्ञानिक तरीके से सहेजने में मदद करने का भरोसा दिया था। उनके निर्देश पर सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला ने थाती संरक्षण की कवायद शुरू की है।

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