International Family Day 2020: लॉकडाउन हुईं बेड़िया, तो मुस्कुराईं तीन पीढ़ियां, अब एक छत के नीचे गूंज रहीं खुशियां

International Family Day 2020 बुजुर्ग दंपती के सूने घर- आंगन में इन दिनों नाती-पोते की आवाज के साथ गूंज रही खुशियां।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Fri, 15 May 2020 03:27 PM (IST) Updated:Fri, 15 May 2020 03:27 PM (IST)
International Family Day 2020: लॉकडाउन हुईं बेड़िया, तो मुस्कुराईं तीन पीढ़ियां, अब एक छत के नीचे गूंज रहीं खुशियां
International Family Day 2020: लॉकडाउन हुईं बेड़िया, तो मुस्कुराईं तीन पीढ़ियां, अब एक छत के नीचे गूंज रहीं खुशियां

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। होली के कुछ दिन पहले बेटी अंजली को इंदिरा नगर अपने आवास पर बुलाया था और होली पर दामाद मनोज को भी आने के लिए गुजारिश की थी। ससुराल में होली के इस पहले मौके पर दोनो अपने बच्चों के साथ आ गए। बेटी दामाद के साथ ही बेटा और बहू और उसके बच्चों ने होली में खूबू धमाचौकड़ी की। होली की खुमारी छूटी ही नहीं थी कि लॉकडाउन की घोषणा ने मानो उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी दे दी। नाना-नानी और दादा-दादी की आवाज एक ही छत के नीचे सुनकर खुश हो रहे छोटेलाल चौरसिया पूरे परिवार को पाकर फूले नहीं समा रहे हैं। एकल परिवार की परिभाषा से इतर संयोग से बने इस संयुक्त परिवार ने आने वाली पीढ़ी को भी एक नया संदेश दे दिया।

बेटी-बेटा पीसीएस तो दामाद है डॉक्टर

क्लर्क की नौकरी से सेवानिवृत्त हुए छोटेलाल का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने खुशी में गम का पता ही नहीं चला। एक लीटर दूध में दोनों बच्चों को तीन दिन पिलाता था। अब जब वो अधिकारी बन गए तो उनके पास मेरे लिए चाहते हुए भी समय नहीं मिलता। उनको जाते तो देखता था, लेकिन कब आते हैं पता ही नहीं चलता था। लॉकडाउन में अब सब एक साथ हैं। अब लगता है कि मेरा बेटा मेरा कितना ख्याल रखता हैं। बेटी पराई होकर भी मुझपर जान छिड़कती है। पोते अगस्य की शैतानियों में प्यार झलकता है तो पोती काश्वी की कहानी सुनने की अदा ने लॉकडाउन में वह सुख दे दिया जिसकी कल्पना हमने कभी नहीं की थी। मुझे लगता था कि मेरा बेटा शेखर मेरी पत्नी विजय लक्ष्मी को ज्यादा प्यार करता है, लेकिन लॉकडाउन के दिनों में उसने यह एहसास दिला दिया कि पिता की अहमियत उसकी जिंदगी में कितनी महत्व पूर्ण है। मदर्स डे पर बहू-बेटी दोनों ने मिलकर केक बनाकर रिश्तों में जो मिठास घाेली वह शायद कभी भुलाया जा सके।

दिन रात का पता ही नहीं चलता

छोटेलाल बताते हैं कि पहली बार सब एक साथ मिले है तो दिन रात का पता ही नहीं चला। कभी बेटी तो कभी दामाद के साथ बातें होती हें तो बहू और बेटे के अंताक्षरी शुरू होती हे तो खत्म होने का नाम नहीं लेती। तीन पीढ़ियों के मिलन का लॉकडाउन अब जिंदगी का हिस्सा बन गया है।

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