कला, रंगमंच, सिनेमा, संगीत प्रेमियों ने साहित्यिक संवेदना जगाकर विदा संवादी

संगीत नाटक अकादमी में तीन दिन से चल रहा जागरण संवादी कार्यक्रम लोगों की साहित्यिक संवेदना को जगा गया।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Sun, 09 Oct 2016 11:31 PM (IST) Updated:Sun, 09 Oct 2016 11:50 PM (IST)
कला, रंगमंच, सिनेमा, संगीत प्रेमियों ने साहित्यिक संवेदना जगाकर विदा संवादी

लखनऊ (जेएनएन)। जागरण संवादी यानी उत्सव अभिव्यक्ति का। अभिव्यक्ति के मंच पर साहित्य, कला, संगीत, संस्कृति, सिनेमा, रंगमंच या फिर समाज। सात रंगों की सुरमयी सफर का रविवार को समापन हुआ। संगीत नाटक अकादमी में तीन दिन से चल रहा जागरण संवादी कार्यक्रम लोगों की साहित्यिक संवेदना को जगा गया। संवादी की विदाई पर कुछ चेहरे उदास जरूर थे, लेकिन उनके मन में बहुत कुछ पाने का संतोष था। संगीत नाटक अकादमी में शुक्रवार को संवादी कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया था। पहले दिन अभिनेता व लेखक सौरभ शुक्ला व साहित्यकार अखिलेश ने आने वाले कल की कहानी तथा 'कला, कूची और कलम : बचपन से संवाद विषय पर बातें हुईं। वहीं राम आडवाणी, जुगुल किशोर, मुद्रा राक्षस एवं प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर का स्मरण किया गया।

कविता और साहित्य से लोगों को कनेक्ट करने की जरूरत

युवा भारत : नई अनुगूंजे कार्यक्रम में युवाओं ने अपनी आवाज बुलंद की तो कामर्शियल फिक्शन पर डिजिटल प्रभाव पर भी चर्चा हुई। काव्य रस ने लोगों को भावविभोर किया तो मजनू के टीला ने मंत्रमुग्ध। शनिवार को आने वाले कल की कविता, छोटे पर्दे पर साहित्य के लिए जगह, नई किताबें, नया कहन तथा लेखक यासिर उस्मान की रेखा : एक अनकही कहानी पुस्तक पर चर्चा की गई। इस दौरान नई कथा भाषा, नया लोक, नया समय ने सवाल उठाए तो बड़ा भांड तो बड़ा भांड ने अभिनय का पराक्रम दिखाया। संवादी के अंतिम दिन अकबर की नई कथा, भारत और उर्दू : भाषा का लोकतंत्रीकरण, नया सिनेमा, नई कहानी तथा संगीत में साहित्य विषय पर खुलकर चर्चा हुई। इसके बाद दास्तानगोई अंग्रेजी नाटक की प्रस्तुति ने लोगों को भावविभोर दिया। साहित्यिक उत्सव के प्रति कला प्रेमियों के अथाह प्रेम को देखकर संवादी अगले वर्ष फिर से आने का वादा कर विदा हुई। संवादीः कविता से न निजाम बदलता है, न प्रेमिका मानती है..

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