सपा-बसपा गठबंधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल को भी सता रहा बिखराव का डर

राष्ट्रीय लोकदल में सीटों की संख्या को लेकर असंतोष बढ़ा है और चुनाव लडऩे की इच्छा पूरी न होते देखकर टिकट के दावेदारों में मायूसी है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 03:36 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 03:37 PM (IST)
सपा-बसपा गठबंधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल को भी सता रहा बिखराव का डर
सपा-बसपा गठबंधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल को भी सता रहा बिखराव का डर

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन होने के बाद अब राष्ट्रीय लोकदल की हालत खराब है। कांग्रेस के सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा के बाद सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने को बेचैन राष्ट्रीय लोकदल में बिखराव का खतरा भी दिखने लगा है।

राष्ट्रीय लोकदल में सीटों की संख्या को लेकर असंतोष बढ़ा है और चुनाव लडऩे की इच्छा पूरी न होते देखकर टिकट के दावेदारों में मायूसी है। मुजफ्फरनगर व बागपत संसदीय सीटों को छोड़ अन्य क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं में नाराजगी दिखने लगी है। बिजनौर, मथुरा, हाथरस और अमरोहा आदि जिलों के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में रालोद प्रमुख अजित सिंह से मिलकर अपनी नाराजगी भी जतायी।

इस पार्टी में सबसे अधिक गुस्सा मथुरा जिले के कार्यकर्ताओं में है। दिल्ली में अजित सिंह से मिलकर लौटे विक्रम सिंह सिकरवार ने बताया कि मथुरा सीट पर राष्ट्रीय लोकदल के चुनाव निशान पर किसी समाजवादी को उम्मीदवार बनाया तो इसका नुकसान भुगतना होगा। उनका कहना है कि बीते लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सपा के कारण ही रालोद को नुकसान झेलना पड़ा था। पश्चिमी उप्र में चौधरी चरण सिंह की विरासत को खत्म करने की साजिश हो रही है।

उल्लेखनीय है सपा-बसपा गठबंधन में रालोद के लिए सीटों की गुत्थी अभी सुलझ नहीं पायी है। गठबंधन की घोषणा के समय आयोजित पत्रकार वार्ता में भी रालोद को नहीं बुलाया गया था। इसके बाद रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी सीट बंटवारे की स्थिति स्पष्ट करने के लिए दो बार लखनऊ आकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से बैठक भी कर चुके है। इसके बाद भी सीटों की स्थिति स्पष्ट न होने से रालोद नेताओं में पसोपेश की स्थिति बनी है। सूत्रों का कहना है कि सम्मानजनक बंटवारा न होने की स्थिति में पार्टी में बड़ी संख्या में बगावत भी हो सकती है।

असंतुष्टों का कहना है गत विधान सभा चुनाव में भी रालोद को एन मौके पर गठबंधन से बाहर रहना पड़ा था। सपा व कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे और रालोद को अकेले 300 सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश करनी पड़ी थी। अलग थलग होने कारण रालोद केवल एक सीट छपरौली ही जीत सकी थी। 

chat bot
आपका साथी