यूपी में नहीं मिला एक भी 'बाल बहादुर', द‍िल्‍ली की गणतंत्र दिवस परेड में नहीं द‍िखेगा प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व

दिल्ली के गणतंत्र दिवस की परेड में 42 वर्षों में पहली बार नहीं होगा कोई बच्चा शामिल।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 22 Jan 2020 03:38 PM (IST) Updated:Thu, 23 Jan 2020 07:44 AM (IST)
यूपी में नहीं मिला एक भी 'बाल बहादुर', द‍िल्‍ली की गणतंत्र दिवस परेड में नहीं द‍िखेगा प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व
यूपी में नहीं मिला एक भी 'बाल बहादुर', द‍िल्‍ली की गणतंत्र दिवस परेड में नहीं द‍िखेगा प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। स्मार्ट मोबाइल फोन और वीडियो गेम के इस खेल में हम बच्चों के अंदर देश व समाज के प्रति जिम्मेदारियों को बोध कराने में अक्षम साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि विकास के इस स्मार्ट युग में बच्चों में समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बोध नहीं रहा। इस साल एक भी बाल बहादुर का न चुना जाने में यह भी एक कारण लगता है।

अपनी बहादुरी के बल माता-पिता और समाज का नाम रोशन करने वाले बाल बहादुरों को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का मौका हर वर्ष मिलता है। 1978 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश से किसी भी बाल बहादुर का चयन नहीं हो सका है। देश के हर राज्य से ऐसे बाल बहादुरों को चयन भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से हर साल किया जाता है। जिलाधिकारी के माध्यम से राजधानी के मोतीनगर स्थित उप्र बाल कल्याण परिषद कार्यालय में इंट्री भेजी जाती है। अधिकारियों की लापरवाही या फिर समाज की बदली सोच का नतीजा है कि इस बार सूबे का कोई भी बच्चा गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं हो पाएगा।

ऐसे होता है बाल बहादुर का चयन

छह साल से लेकर 16 साल तक के ऐसे बच्चे जो अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ ऐसा कर जाते हैं जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। जिलाधिकारी द्वारा ऐसे बच्चों की सूची तैयार की जाती है। जिला बाल कल्याण परिषद की बैठक में जिले के ऐसे बच्चों को चयन किया जाता है। वह सूची राजधानी आती है और फिर प्रदेश की बाल कल्याण परिषद की ओर से जांच की जाती है। इसके बाद बच्चों का नाम बहादुर बच्चों की सूची में डाला जाता है। यह सूची दिल्ली स्थित भारतीय बाल कल्याण परिषद भेजी जाती है। वहां से चयन के बाद प्रदेश से बच्चों का चयन होता है। बाल कल्याण परिषद कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी में यह बताया गया कि इस बार न तो जिले से कोई सूची आई और न ही प्रदेश से किसी बाल बहादुर का नाम ही दिल्ली वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया।

42 साल में 62 बच्चे बने बहादुर

1978 से लेकर 2019 तक प्रदेश में 62 बच्चों ने अपनी बहादुरी के बल पर प्रदेश का नाम रोशन किया था। इनमे राजधानी के अशोक कुमार चौधरी, तेलीबाग के रियाज अहमद, काकोरी के राहुल चौरसिया, कैंट की वंदना यादव, गोमतीनगर के सौमिक मिश्रा मोहनलालगंज के उत्तम कुमार, प्रीतिनगर के पवन कुमार, माल के मौसमी, बदाली खेड़ा की रेशम फातिमा का नाम भी शामिल था। जितेंद्र उपाध्याय, लखनऊ: स्मार्ट मोबाइल फोन और वीडियो गेम के इस खेल में हम बच्चों के अंदर देश व समाज के प्रति जिम्मेदारियों को बोध कराने में अक्षम साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि विकास के इस स्मार्ट युग में बच्चों में समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बोध नहीं रहा। इस साल एक भी बाल बहादुर का न चुना जाने में यह भी एक कारण लगता है।

अपनी बहादुरी के बल माता-पिता और समाज का नाम रोशन करने वाले बाल बहादुरों को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का मौका हर वर्ष मिलता है। 1978 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश से किसी भी बाल बहादुर का चयन नहीं हो सका है। देश के हर राज्य से ऐसे बाल बहादुरों को चयन भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से हर साल किया जाता है। जिलाधिकारी के माध्यम से राजधानी के मोतीनगर स्थित उप्र बाल कल्याण परिषद कार्यालय में इंट्री भेजी जाती है। अधिकारियों की लापरवाही या फिर समाज की बदली सोच का नतीजा है कि इस बार सूबे का कोई भी बच्चा गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं हो पाएगा।

ऐसे होता है बाल बहादुर का चयन

छह साल से लेकर 16 साल तक के ऐसे बच्चे जो अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ ऐसा कर जाते हैं जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। जिलाधिकारी द्वारा ऐसे बच्चों की सूची तैयार की जाती है। जिला बाल कल्याण परिषद की बैठक में जिले के ऐसे बच्चों को चयन किया जाता है। वह सूची राजधानी आती है और फिर प्रदेश की बाल कल्याण परिषद की ओर से जांच की जाती है। इसके बाद बच्चों का नाम बहादुर बच्चों की सूची में डाला जाता है। यह सूची दिल्ली स्थित भारतीय बाल कल्याण परिषद भेजी जाती है। वहां से चयन के बाद प्रदेश से बच्चों का चयन होता है। बाल कल्याण परिषद कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी में यह बताया गया कि इस बार न तो जिले से कोई सूची आई और न ही प्रदेश से किसी बाल बहादुर का नाम ही दिल्ली वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया।

42 साल में 62 बच्चे बने बहादुर

1978 से लेकर 2019 तक प्रदेश में 62 बच्चों ने अपनी बहादुरी के बल पर प्रदेश का नाम रोशन किया था। इनमे राजधानी के अशोक कुमार चौधरी, तेलीबाग के रियाज अहमद, काकोरी के राहुल चौरसिया, कैंट की वंदना यादव, गोमतीनगर के सौमिक मिश्रा मोहनलालगंज के उत्तम कुमार, प्रीतिनगर के पवन कुमार, माल के मौसमी, बदाली खेड़ा की रेशम फातिमा का नाम भी शामिल था।

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