शोषण के विरुद्ध किशोरियों को दिया ज्ञान का हथियार, मिली नौकरी-बंटी खुशियां

कालम-स्वतंत्रता के सारथी शोषण के विरुद्ध अधिकार-रीता टम्टा। एक साल की मेहनत के बाद मिली सफलता।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 10 Aug 2018 04:17 PM (IST) Updated:Fri, 10 Aug 2018 04:46 PM (IST)
शोषण के विरुद्ध किशोरियों को दिया ज्ञान का हथियार, मिली नौकरी-बंटी खुशियां
शोषण के विरुद्ध किशोरियों को दिया ज्ञान का हथियार, मिली नौकरी-बंटी खुशियां

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। स्वतंत्रता के सात दशक बीतने के बावजूद शोषित और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को वह अधिकार नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए। ऐसे शोषित परिवार के बच्चों को न केवल ज्ञान की पगडंडी पर चलना सिखाया बल्कि उनकी छिपी प्रतिभा को नई दिशा देकर हुनरमंद बनाने की पहल भी की। हम बात कर रहे हैं, राजधानी के मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) की अधीक्षिका रीता टम्टा की। एक किशोरी के पिता का निधन हो गया था। कुछ दिन बीते तो मां पर बहू की हत्या का आरोप लगा और मां को आजीवन सजा भी हो गई। पढ़ने लिखने की उम्र में ही सामाजिक बहिष्कार को झेलने वाली किशोरी को बालगृह लाया गया। अधीक्षिका ने मां के रूप में उसके दर्द को न केवल महसूस किया बल्कि उसके भविष्य को संवारने का संकल्प भी लिया। सरकारी संसाधनों से इतर वो सबकुछ किया जो एक मां एक बेटी के लिए कर सकती थी। बेटी ने पढ़ाई में न केवल उनका नाम रोशन किया बल्कि बालगृह को भी एक नई पहचान ाी दी। रीता टम्टा ऐसी ही 19 किशोरियों को शिक्षा के साथ तकनीकी ज्ञान से जोड़कर अपने पैरों पर खड़ा करने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने होटल प्रबंधन के लिए सभी को बेंगलुरू भेजा और अब सभी पुरानी बातों को भूल नई दिशा की ओर बढ़ रही हैं।

मिली नौकरी, बंटी खुशियां :

एक साल पहले बेंगलुरू में जिन किशोरियों को होटल मैनेजमेंट के कोर्स के लिए भेजा गया था, उन सबको नौकरी मिल गई। इसकी जानकारी जब बालगृह की अधीक्षिका रीता टम्टा को हुई तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। उन्होंने बालगृह की किशोरियों को मिठाई बांटी और सभी को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित ाी किया। अब बाल कल्याण परिषद के सामने सभी किशोरियों की रिहाई की फाइल भेजने की कवायद चल रही है।

विदेशी किशोरियों को परिवार से मिलाया :

अधीक्षिका रीता टम्टा इससे पहले दो विदेशी किशोरियों को उनके वतन भेजकर उनके अभिभावकों सेभी मिला चुकी हैं। बांग्लादेश की सलीमा और नेपाल की तसलीमुंनिशा वर्षो रहने के बाद इस वर्ष अपने माता-पिता के पास पहुंच चुकी हैं। इसके लिए वह बालगृह की शिक्षिका प्रेरणा और काउंसलर भारती के साथ ही जिला प्रोबेशन अधिकारी सर्वेश पांडेय को भी क्रेडिट देना नहीं ाूलतीं। उनका कहना है कि बहाना कोई भी हो, लेकिन कुछ करने का मौका सभी को मिलता है, मैं अपने आपको सौ भाग्यशाली समझती हूं कि ऐसी किशोरियों को मैं नई दिशा दे सकी हूं।

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