यूपी में 20 साल जेल में रहा निर्दोष विष्णु तिवारी, सुप्रीम कोर्ट में याचिका- ऐसे पीड़ितों को मुआवजा के लिए बने गाइडलाइन

फर्जी केस में फंसाने के मामलों में विक्टिम को मुआवजा दिए जाने को लेकर गाइडलाइन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सर्वोच्च अदालत में उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया है जिन्हें जेल में 20 साल बिताने के बाद निर्दोष पाया गया।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Thu, 11 Mar 2021 08:22 PM (IST) Updated:Fri, 12 Mar 2021 07:09 AM (IST)
यूपी में 20 साल जेल में रहा निर्दोष विष्णु तिवारी, सुप्रीम कोर्ट में याचिका- ऐसे पीड़ितों को मुआवजा के लिए बने गाइडलाइन
फर्जी केस में फंसाने के मामलों में विक्टिम को मुआवजा देने को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

नई दिल्ली, जेएनएन। फर्जी केस में फंसाने के मामलों में विक्टिम को मुआवजा दिए जाने को लेकर गाइडलाइन के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआइएल) दायर की गई है। सर्वोच्च अदालत में उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया है, जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण दुष्कर्म के केस में फंसाया गया था। जेल में 20 साल बिताने के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया। कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वे ऐसे विक्टिम को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइन तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें। यह पीआइएल भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 28 जनवरी, 2021 को फैसला सुनाया था, जिसमें दुष्कर्म के आरोपित विष्णु तिवारी को निर्दोष करार दिया गया। मामले में एफआइआर के पीछे जमीन विवाद को कारण पाया गया। इस मामले में विष्णु को 16 सितंबर, 2000 को गिरफ्तार किया गया था। जेल में 20 साल बिताने के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया। ऐसे मामलों को ध्यान में रखते हुए पीआइएल में कहा गया है कि शीर्ष अदालत गलत अभियोजन के पीड़ित को मुआवजे के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करे और इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिशें सख्ती से लागू हो जाने तक इनके क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दे।

इस पीआइएल में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ-साथ गृह मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय और विधि आयोग को पक्ष बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि गलत अभियोजन के कारण लोगों को होने वाला नुकसान बहुत बड़ा है। इस संबंध में केंद्र की निष्क्रियता के कारण संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त नागरिकों के जीवन, आजादी एवं सम्मान के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

याचिका में कहा गया है कि '30 नवंबर, 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट ने गलत अभियोजन के पीड़ित को राहत एवं पुनर्वास के मामले में विधि आयोग को व्यापक विचार का निर्देश दिया था। 30 अगस्त, 2018 को विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी लेकिन केंद्र ने इन सिफारिशों को लागू करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।' याचिकाकर्ता ने कहा कि कोई प्रभावी वैधानिक एवं कानूनी व्यवस्था नहीं होने के कारण झूठे मुकदमे, गलत अभियोजन और निर्दोष लोगों को जेल में डालने के मामले बहुत बढ़े हैं। यह देश की न्यायिक व्यवस्था पर एक धब्बा है।

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