सावित्री बाई फुले ने भाजपा-कांग्रेस छोड़ पकड़ी अपनी राह, बनाई कांशीराम बहुजन समाज पार्टी

भाजपा के बाद कांग्रेस भी छोड़ चुकीं पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले ने अब नया राजनीतिक दल बनाया है। सावित्री बाई ने कांशीराम बहुजन समाज पार्टी की घोषणा की है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Sun, 19 Jan 2020 08:34 PM (IST) Updated:Sun, 19 Jan 2020 08:42 PM (IST)
सावित्री बाई फुले ने भाजपा-कांग्रेस छोड़ पकड़ी अपनी राह, बनाई कांशीराम बहुजन समाज पार्टी
सावित्री बाई फुले ने भाजपा-कांग्रेस छोड़ पकड़ी अपनी राह, बनाई कांशीराम बहुजन समाज पार्टी

लखनऊ, जेएनएन। भाजपा के बाद कांग्रेस भी छोड़ चुकीं पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले ने अब राजनीति की अलग राह पकड़ ली है। जो दलित वोट बैंक बहुजन समाज पार्टी (BSP) का मूल जनाधार माना जाता है, उसी को लक्ष्य बनाकर सावित्री बाई ने कांशीराम बहुजन समाज पार्टी की घोषणा की है।

भाजपा के टिकट से जीतकर बहराइच की सांसद बनीं सावित्री बाई फुले ने पार्टी में रहते हुए ही बगावत कर दी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा छोड़ दी और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं, जिसमें वह हार गईं। पूर्व सांसद का कांग्रेस से भी जल्द ही मोहभंग हो गया। पिछले दिनों कांग्रेस का हाथ उन्होंने यह कहकर झटक दिया कि यह पार्टी भी भाजपा की तरह अनुसूचित जाति की विरोधी विचारधारा वाली है। राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा से मतभेद की बात कही थी।

उसी समय सावित्री बाई फुले ने कह दिया था कि वह जल्द नई पार्टी बनाएंगी। लिहाजा, रविवार को लखनऊ स्थित रवींद्रालय में नमो बुद्धाय जनसेवा समिति का सम्मेलन बुलाया गया है। इसी में पूर्व सांसद ने कांशीराम बहुजन समाज पार्टी की घोषणा की। दावा किया कि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से समर्थक शामिल हुए। नवघोषित पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सावित्री बाई फुले का कहना है कि उनका उद्देश्य कांशीराम के बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के आंदोलन को आगे बढ़ाना है। नई पार्टी देश और प्रदेश के दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष करेगी। उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव प्रदेश की हर सीट पर लड़ेगी।

सावित्री बाई फुले फुले वर्ष 2012 से वर्ष 2014 तक बहराइच की बलहा विस सीट से भाजपा की विधायक रहीं। वर्ष 2014 में बहराइच संसदीय सीट से भाजपा के ही टिकट पर चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचीं, मगर बतौर भाजपा सांसद कार्यकाल के अंतिम वर्षों में उनका पार्टी के नेतृत्व से मोहभंग हो गया। पार्टी में रहते हुए उन्होंने बगावत का बिगुल फूंका तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें निष्कासित कर दिया गया।

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