मायावती को एक और झटका, महासचिव आरके चौधरी का BSP से इस्तीफा

बसपा प्रमुख मायवती को आज एक और झटका लगा जब पार्टी महासचिव आरके चौधरी ने बीएसपी से इस्तीफा दे दिया और मायावती पर संगीन आरोप लगाए।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Thu, 30 Jun 2016 01:59 PM (IST) Updated:Thu, 30 Jun 2016 08:21 PM (IST)
मायावती को एक और झटका, महासचिव आरके चौधरी का BSP से इस्तीफा

लखनऊ (वेब डेस्क)। बीएसपी चीफ मायवती को एक और झटका गुरुवार को लगा जब पार्टी के महासचिव आरके चौधरी ने बीएसपी से इस्तीफा दे दिया। आरके चौधरी की गिनती बीएसपी में दिग्गज और राष्ट्रीय नेताओं में की जाती है। यूपी में 2017 में होनें वाले चुनाव से पहले बीएसपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा सकता है। वहीं आरके चौधरी 2007-12 तक बीएसपी सरकार में मंत्री भी रहें। चौधरी की पहचान पार्टी में दलित नेता के रुप में रही है।

बसपा छोड़ने के बाद आरके चौधरी ने कहा कि मायावती ने पार्टी को अपनी जागीर बना लिया है। प्रापर्टी डीलर व भू-माफिया बसपा में बढ़ते जा रहे हैं और मिशनरी कार्यकर्ता बाहर। उन्होंने कहा कि बसपा छोड़ने वालों का सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है। अगले कदम के बारे में चौधरी ने कहा कि वह 11 जुलाई को अपने समर्थकों के साथ बैठक के बाद ही कोई फैसला लेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ जाने के सवाल पर चौधरी ने कहा कि अभी वह किसी के साथ नहीं जा रहे हैं।

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चौधरी ने सीधे तौर पर मायावती पर धन उगाही का आरोप लगाते हुए कहा कि वो पार्टी में टिकट बटवारें को लेकर जमकर रुपए की लूट खसौट करती है। वहीं बीएसपी अब रीयल स्टेट कंपनी बनकर रह गयी है। बागी नेता आरके चौधरी ने कहा कि बीएसपी अब वो पार्टी नही रही जो पहले काशी राम के जमानें पर चलती थी।
बता दें, कि 22 जून को प्रेस कांफ्रेंस में इस्तीफे की घोषणा करते हुए बीएसपी विधान मंडल दल के नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर संगीन आरोप लगते हुए कहा कि उन्होंने अम्बेडकर के सपनों को बेचा है। मौर्या ने मायावती पर पार्टी में टिकट बेचने का भी आरोप लगाया था।

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बता दें कि आरके चौधरी कांशीराम के साथी रहे हैं। उन्होंने कांशीराम के साथ मिलकर बसपा की नींव रखी थी। बसपा की स्थापना से पहले दलित समाज को जागरूक करने के अभियान में वह कांशीराम के साथ थे।बसपा में मायावती का प्रभाव बढ़ने के साथ उन्हें 2001 में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इसके बाद वह 2013 में फिर से बसपा में शामिल हुए थे। चौधरी ने बीएस-4 पार्टी छोड़कर बसपा ज्वॉइन की थी।

बसपा में आकर गलती की

जुलाई 2001 में बसपा से बाहर किए गए चौधरी ने करीब 11 वर्ष आठ महीने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी चलायी और अप्रैल 2013 में बसपा में वापसी करके वर्ष 2014 में मोहनलालगंज सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा। अब चौधरी ने बसपा में वापसी को अपनी गलती कहा है। उनका कहना था कि कांशीराम ने छह हजार जातियों में विभक्त किए गए बहुजन समाज को एकजुट किया पर अब जिसकी सौदेबाजी मायावती करती हैं। बसपा में वापसी के बाद भी उनकी स्थिति तीसरे दर्जे के नेता जैसी रही। इलाहाबाद व मीरजापुर क्षेत्र का जोनल कोआर्डिनेटर तो बनाया लेकिन अहम फैसलों में उनकी भूमिका नहीं थी।

मौर्य के साथ जाने पर चुप्पी

बसपा के बागी स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा आहूत एक जुलाई की बैठक में भाग लेने के सवाल को चौधरी ने खामोशी से टाला। उनका कहना था कि वह स्व. कांशीराम, शाहूजी महाराज, पेरियार व डॉ. अंबेडकर के सामाजिक परिर्वतन आंदोलन के कार्यकर्ता रहे हैं, इसलिए सहयोगियों की सहमति लेकर ही अगला कदम उठाया जाएगा। आगामी 11 जुलाई की बैठक में कोई फैसला होगा।

माफी मांग कर आए पर सुधरे नहीं

चौधरी की बगावत का बसपा पर कोई असर नहीं पडऩे का दावा करते हुए पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक ने कहा कि पार्टी विरोधी गतिविधि व अनुशासनहीनता के आरोप में आरके चौधरी को वर्ष 2001 में भी बर्खास्त किया गया था। लेकिन, गलती का अहसास कर लेने और बहनजी से माफी मांगने पर उन्हें सुधरने का मौका दिया गया। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव भी लड़ाया, अब विधानसभा के चुनाव का टिकट मांग रहे थे। बहनजी ने उन्हें लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे रहने को कहा था। स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण चौधरी अब पहले की तरह सक्रिय नहीं रह पाते थे। उनके पार्टी छोडऩे से बसपा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्या आरके चौधरी के इस्तीफे से बहुजन समाज पार्टी को क्षति पहुंचेगी?

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