इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- अधीनस्थ न्यायिक अफसर के ज्ञान पर प्रतिकूल टिप्पणी का अधिकार नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों को भी निर्देश दिया है कि उन्हें अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर आदेश पारित करते समय निचली अदालतों के जजों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।

By Umesh Kumar TiwariEdited By: Publish:Mon, 11 Jan 2021 11:51 PM (IST) Updated:Tue, 12 Jan 2021 10:23 AM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- अधीनस्थ न्यायिक अफसर के ज्ञान पर प्रतिकूल टिप्पणी का अधिकार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि अधीनस्थ न्यायिक अफसर के ज्ञान पर प्रतिकूल टिप्पणी का अधिकार नहीं है।

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा है कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश को अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर फैसला देते हुए अपने अधीनस्थ न्यायिक अफसर पर प्रतिकूल टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। यह कहते हुए कोर्ट ने जिला जज हरदोई द्वारा एक फैसले के दौरान हरदोई की ही अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) अलका पांडे के विरुद्ध न्यायिक निर्णय में की गई टिप्पणी को हटा दिया है।

यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने एसीजेएम अलका पांडे की याचिका पर पारित किया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि जिला जज को अपने अधीनस्थ किसी न्यायिक अफसर के फैसले लिखने को लेकर कमी नजर आती तो वह इसकी शिकायत हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या प्रशासनिक जज से कर सकता है।

याची का कहना था कि बतौर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसने आइपीसी की धारा 406 व 411 के एक मामले की सुनवाई के बाद अभियुक्त को दोषी करार देते हुए दो वर्ष के कारावास व पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। अभियुक्त ने सजा के आदेश के विरुद्ध जिला एवं सत्र न्यायाधीश हरदोई के समक्ष अपील दायर की।

अपील पर निर्णय देते हुए सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया, साथ में याची पर टिप्पणी भी की कि विद्वान मजिस्ट्रेट ने बिना साक्ष्य विश्लेषण किये अपीलार्थी के विरुद्ध आरोपसिद्ध होने का जो निष्कर्ष निकाला है वह त्रुटिपूर्ण है। सत्र न्यायाधीश ने कहा कि विद्वान मजिस्ट्रेट से निर्णय लेखन में सुधार अपेक्षित है।

याची ने सत्र न्यायाधीश के उक्त टिप्पणी को फैसले से हटाने की मांग की। कोर्ट ने सुनवाई के उपरांत पारित आदेश में कहा कि सत्र न्यायालय को अपील की सुनवाई करते हुए इस बात का पूरा अधिकार है कि वह साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करे व ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष से असहमति जताए व ट्रायल कोर्ट के निर्णय के विपरीत निर्णय पारित करे, लेकिन उसे यह अधिकार कदापि नहीं है कि वह ट्रायल कोर्ट के जज की कानूनी क्षमता पर टिप्पणी करे।

कोर्ट ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों को भी निर्देश दिया है कि उन्हें अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर आदेश पारित करते समय, निचली अदालतों के जजों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।

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