स्वीमिंग पूल तकनीक से दर्द रहित प्रसव संभव

प्रसव पीड़ा के दर्द की वजह से गर्भवती महिलाएं सीजेरियन प्रसव पर जोर देती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए नई स्वीमिंग पूल प्रसव तकनीक आ गई है जो पूरी तरह दर्द रहित है

By JagranEdited By: Publish:Fri, 19 Apr 2019 01:53 AM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2019 06:20 AM (IST)
स्वीमिंग पूल तकनीक से दर्द रहित प्रसव संभव
स्वीमिंग पूल तकनीक से दर्द रहित प्रसव संभव

जागरण संवाददाता, कानपुर : प्रसव पीड़ा के दर्द की वजह से गर्भवती महिलाएं सीजेरियन प्रसव पर जोर देती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए नई स्वीमिंग पूल प्रसव तकनीक आ गई है जो पूरी तरह दर्द रहित है। यह जानकारी बुधवार को गुरुग्राम के सीके बिड़ला हास्पिटल की निदेशक डॉ. अरुणा कालरा ने दी।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज सभागार में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिसनर्स (आइएमए सीजीपी) के 37वें वार्षिक रिफ्रेशर कोर्स में पेनलेस प्रसव पर व्याख्यान में उन्होंने कहा कि सीजेरियन प्रसव प्रकृति से छेड़छाड़ करने जैसा है। इसके दुष्प्रभाव भी हैं। नई स्वीमिंग पूल तकनीक ब्रिटेन में प्रयोग होती है। अब देश में इसकी शुरूआत हो गई है। गुरुग्राम के अस्पताल में इस तकनीक से 18 प्रसव कराए जा चुके हैं। इसमें स्वीमिंग पूल जैसे टब का प्रयोग करते हैं। पानी का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है। प्रसव पीड़ा होने पर गर्भवती को बैठा दिया जाता है, प्रशिक्षित स्टाफ के माध्यम से पानी के प्रेशर से प्रसव कराया जाता है। प्रसव के दौरान बच्चे की स्थिति जानने के लिए टार्च और शीशे का इस्तेमाल करते हैं। बच्चे के दिल की धड़कन की मॉनीटरिग भी की जाती है। पानी से बच्चेदानी के टिश्यू मुलायम होकर फैल जाते हैं और बच्चा आसानी से बाहर आ जाता है। जच्चा-बच्चा को संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है। इसी तरह पीठ में एनस्थीसिया का इंजेक्शन लगाकर तथा दवा सुंघाकर भी प्रसव कराया जाता है। हालांकि इसमें प्रसव के उपरांत होश न आने पर नवजात को स्तनपान नहीं कर पाते हैं, जबकि आधे घंटे के बाद स्तनपान जरूरी है। प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. संजय गुप्ता व डॉ. कंचन शर्मा तथा चेयरपर्सन प्रो. मीरा अग्निहोत्री व डॉ. युतिका बाजपेयी थीं। इस दौरान आइएमए अध्यक्ष डॉ. अर्चना भदौरिया, डॉ. रीता मित्तल, डॉ. बृजेंद्र शुक्ला, डॉ. कुनाल सहाय, डॉ. विकास मिश्रा, डॉ. प्रवीन कटियार, डॉ. जेएस कुशवाहा, डॉ. शालिनी मोहन थीं।

इनसेट

वजन घटाने की दवाएं लिवर व किडनी के लिए घातक

कानपुर : नई दिल्ली से आए बैरियाट्रिक सर्जन डॉ. अतुल एनसी पीटर्स ने बताया कि वजन घटाने के लिए ली जाने वाली दवाएं किडनी और लिवर के लिए घातक हैं। यह सही है कि मोटापा एक बीमारी है, लेकिन इससे बचने के लिए खानपान और जीवनशैली में सुधार करें। उन्होंने मोटापे से निजात के लिए की जाने वाली बैरियाट्रिक सर्जरी की जानकारी भी दी। बताया कि आमाशय तथा आंत का आकार छोटा कर दिया जाता है। इस सर्जरी के साइड इफेक्ट भी हैं। इसमें शरीर के अंदर ब्लीडिंग या लीकेज हो सकता है। इसके अलावा शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसलिए फालोअप जरूरी है और कुछ दवाएं भी लेनी पड़ती हैं।

तंबाकू व धूमपान से डायबिटीज का खतरा

तंबाकू और धूमपान के सेवन से डायबिटीज का खतरा रहता है। तंबाकू में शामिल निकोटीन की मात्रा शरीर में बढ़ने से इंसुलिन के प्रोडक्शन पर असर पड़ता है। अगर डायबिटीज के मरीज धूमपान करते हैं तो उन्हें अधिक मात्रा में इंसुलिन लेनी पड़ती है।

बीमारी की पहचान सटीक तो इलाज होगा पक्का

स्व. डॉ. आरएन द्विवेदी की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में लखनऊ से आए डॉ. अशोक चंद्रा ने कहाकि अगर मरीज गठिया के साथ किडनी और अन्य बीमारी से पीड़ित है तो विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाए। साथ ही फिजीशियन की भी सलाह लेते रहें। विशेषज्ञ संबंधित बीमारी पर ध्यान देते हैं, जबकि फिजीशियन हर पहलू पर नजर रखते हैं। अगर बीमारी की पहचान सटीक है तो इलाज भी पक्का होगा। किस समय कौन सी जांच जरूरी है यह फिजीशियन ही बताते हैं। इसके प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. आशुतोष त्रिवेदी तथा चेयरपर्सन डॉ. संतोष कुमार, डॉ. एसके भट्टर व डॉ. सुशील चंद्रा थे।

मल्टी आर्गन फेल्योर में डायलिसिस कारगर

एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा से आए नेफरोलाजिस्ट प्रो. अपूर्व जैन ने कहाकि मल्टी ऑर्गन फेल्योर के केस में डायलिसिस लाभदायक है। हाई रिस्क डायबिटीज वाले मरीजों में इसका प्रयोग किया जाता है। अमूमन ऐसे मरीजों के बचने की संभावना न के बराबर होती है। ऐसा कर गंभीर मरीजों में से 20 फीसद को बचा सकते हैं। इसके प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. मनीष वर्मा तथा चेयरपर्सन प्रो. संजय काला एवं डॉ. देशराज गुर्जर थे।

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