Holi Special 2020 : होली के बाद बुंदेलखंड के 300 गांवों में तीन दिन तक छिपते फिरते हैं पुरुष, जानें-क्या है वजह

बुंदेलखंड के जालौन हमीरपुर व महोबा के गांवों में पुरुषों की लाठी से पिटाई के बाद मिठाई खिलाने की अनोखी परंपरा है।

By AbhishekEdited By: Publish:Tue, 10 Mar 2020 11:29 AM (IST) Updated:Tue, 10 Mar 2020 01:45 PM (IST)
Holi Special 2020 : होली के बाद बुंदेलखंड के 300 गांवों में तीन दिन तक छिपते फिरते हैं पुरुष, जानें-क्या है वजह
Holi Special 2020 : होली के बाद बुंदेलखंड के 300 गांवों में तीन दिन तक छिपते फिरते हैं पुरुष, जानें-क्या है वजह

जालौन, [शिवकुमार जादौन]। बरसाने की लठमार होली... यह शब्द सुनते हीं पगड़ी पहने नंद गांव के कान्हा पर घूंघट काढ़े हुई बरसाने की गोपियां प्रेम पगी लाठियां बरसाती दिखती हैं। इससे इतर एक ऐसी भी लठमार होली है, जहां लाठियों में प्रेम है लेकिन ताकत भी। रंगने की कोशिश है तो आत्मरक्षा का भाव भी। पुरुषों के हाथ-पैर पर कब लाठी पड़ जाए, पता नहीं। और तो और, पिटने के बाद पुरुष पीटने वाली महिला के घर मिठाई भेजकर विश्वास दिलाता है कि उसके दिल पर कोई चोट नहीं लगी है।

तीन सौ गांवों में होती लठमार होली

यह अनूठी लठमार होली बुंदेलखंड के जालौन, हमीरपुर और महोबा के लोध बहुल तीन सौ से अधिक गांवों में मनाई जाती है। मुहाना, कुसमिलिया, कहटा, बरसार, ददरी, खरका, ऐर, करमेर, बम्हौरी, सुनहटा, खल्ला, बरदर, बिनौरा कालपी, बंधौली, अजनारी, चरखारी में इसे धूूम से मनाते हुए देख सकते हैं। हालांकि इस परंपरा की शुरुआत कब, कहां, कैसे और क्यों हुई, इसे लोध राजपूत गांवों में ही क्यों मनाया जाता है, इसकी जानकारी बुजुर्गों को भी नहीं है। हां, वह इसे नारी सशक्तीकरण की शुरुआत जरूर मानते हैं।

पिटाई के बाद खिलाते है मिठाई

इस परंपरा में दूज पूजन के बाद महिलाओं का जत्था लाठी लेकर निकलता है। गांव के पुरुष उनसे बचने के लिए भागते हैं। होली को रोचक बनाए रखने के लिए कुछ पुरुष छिप-छिपकर महिलाओं पर रंग डालते हैं। महिलाएं उसे ललकार कर खदेड़ती हैं। गांवों में पुरुष छिपते फिरते रहते हैं, यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहता है।ध्यान रखा जाता है कि लाठी हाथ या पैर पर ही लगे, सिर पर नहीं। इसके बाद पुरुष उस महिला के घर मिठाई भेजकर यह विश्वास दिलाता है कि उसे कहीं कोई चोट नहीं लगी है।

ये नारी सशक्तीकरण की होली है

महिलाएं जिस तरह लाठी भांजती है, वह युद्धक तरीके जैसा है। इस कारण, इसे स्त्रियों के युद्ध पारंगत होने की रानी लक्ष्मीबाई की मुहिम से भी जोड़ते हैं। अधिवक्ता अर्जुन सिंह राजपूत कहते हैं कि परंपरा शुरू होने की जानकारी नहीं है, लेकिन बुंदेलखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इसे आत्मरक्षा के गुर सीखने से जोड़ा जाता है। तब लाठी ही बचाव का प्रमुख हथियार थी। पिछली होली में लाठी खाने वाले ग्राम ऐर के प्रधान हृदेश राजपूत कहते हैं, यह नारी सशक्तीकरण की परंपरा है। इसका असर दिखता है। कई बार पुरुषों की टोली पीछे हटी है। रघुनंदन राजपूत कहते हैं, लाठी खाने के बाद मिठाई खिलाने जैसी अनूठी परंपरा से भाईचारा मजबूत होता है।

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