गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण ने IIT Kanpur में की नौकरी, भीतरगांव में बिताए गुमशुदा जीवन के कुछ दिन Kanpur News

कानपुर से आइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले भारतीय गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की यादें जुड़ी हैं।

By AbhishekEdited By: Publish:Thu, 14 Nov 2019 03:40 PM (IST) Updated:Fri, 15 Nov 2019 09:52 AM (IST)
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण ने IIT Kanpur में की नौकरी, भीतरगांव में बिताए गुमशुदा जीवन के कुछ दिन Kanpur News
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण ने IIT Kanpur में की नौकरी, भीतरगांव में बिताए गुमशुदा जीवन के कुछ दिन Kanpur News

कानपुर, [महेश शर्मा]। आइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले भारतीय गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह आज अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें कानपुर की धरती में समाई हैं। नासा में काम करने के बाद 1971 में भारत आकर उन्होंने सबसे पहले आइआइटी कानपुर में नौकरी की थी, वहीं 1989 से लापता हुए तो पांच साल बाद कानपुर के घाटमपुर भीतरगांव में मिले थे।

भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के बसंतपुर गांव में 2 अप्रैल 1942 में हुआ था। लंबी बीमारी के चलते 74 वर्ष की आयु में गुरुवार को पटना उनका निधन हो गया। जीवन के 44 साल तक वो मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीडि़त रहे। अद्भुत मेधा के चलते पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने वाले डा. वशिष्ठ नारायण सिंह भोजपुर बिहार निवासी पुलिस हेड कांस्टेबिल की संतान थे। उन्होंने कैलीफोर्निया यूनीवर्सिटी के प्रो. जॉन केली के अंडर में पीएचडी की थी। कुछ वर्ष तक वाशिंगटन यूनीवर्सिटी में शिक्षण एवं नासा में काम करने के बाद वह 1971 में भारत लौटे और आईआईटी कानपुर में नौकरी की थी। इसके बाद वह बांबे आइआइटी चले गए थे। उन्होंने आईएसआई कोलकाता में शिक्षण कार्य किया था।

भीतरगांव में वर्ष 1994 में मिले

बताया जाता है कि शादी के बाद दांपत्य जीवन ठीक नहीं रहा और उनकी पत्नी ने तलाक ले लिया था। इसके बाद वह सीजोफ्रेनिया नामक बीमारी से पीडि़त हो गए थे। इस दरमियान वह वर्ष 1989 में खंडवा से अचानक लापता हो गए थे और कानपुर पहुंच गए थे। कानपुर के घाटमपुर स्थित भीतरगांव में वर्ष 1994 में वह विकास खंड मुख्यालय में विक्षिप्त हालत में घूमते मिले थे। उनकी पहचान होने के बाद जिला प्रशासन ने तत्कालीन नायब तहसीलदार के साथ उन्हें पटना बिहार भिजवा दिया था।

तीन दिन तक चौकी में रहे थे

वर्ष 1994 में भीतरगांव कस्बे के कुछ लोगों की नजर गलियों में घूमते और दुकानों के नीचे फटे चीथड़े कपड़े ओढ़कर सो जाने वाले विक्षिप्त व्यक्ति पर पड़ी। किसी ने उस समय एक पत्रिका में डा. वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी के साथ छपी फोटो से उनका मिलान कराया। भीतरगांव के पूर्व प्रधान बदलू पांडेय बताते हैं कि उनकी पहचान डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह के तौर पर होने के बाद भीतरगांव पुलिस चौकी में तीन दिन तक रखकर सेवा की गई थी। जिला प्रशासन ने बिहार शासन से संपर्क किया और नायब तहसीलदार के साथ पटना भेजा था।

लिखते और बोलते थे माई इंडिया इज ग्रेट

विक्षिप्त हालत में कुछ दिन तक भीतरगांव कस्बे में रहे डॉ. वशिष्ठ नारायण सड़क से खाली कागज बीन लाते थे और किसी दुकान के नीचे बैठ कर अक्सर कुछ लिखते रहते थे। पहचाने जाने के बाद मिलने पहुंचे पत्रकारों में किसी एक ने लिखा था-काफी कुरेदने पर अपलक निराहने वाले डा. सिंह सिर्फ माई इंडिया इज ग्रेट बोल कर शांत हो गए।

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