जीएसवीएम के बाल रोग विभाग में आते आसपास जिलों के बच्चे, रहता अत्यधिक दबाव
सर्दियों में निमोनिया, अस्थमा एवं कोल्ड डायरिया के मरीजों की संख्या बढ़ने से फुल हो जाता वार्ड।
कानपुर (जागरण स्पेशल)। बच्चों के उत्कृष्ट इलाज का बेहतर संस्थान जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज का बाल रोग चिकित्सालय है। ऐसे में जटिलता होने पर जिले ही नहीं अपितु आसपास के आठ-दस जिलों से बच्चे इलाज के लिए यहीं आते हैं। कोई हादसा हो या महामारी फैलने पर शासन-प्रशासन भी बच्चों को यहीं भेजते हैं। ऐसे में यहां के चिकित्सकों पर काम का अत्याधिक दबाव रहता है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग चिकित्सालय की बेड क्षमता 120 है। सूबे के सरकारी एवं निजी क्षेत्र का 25 बेड का उत्कृष्ट सिक एंड न्यूबार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) है। जहां सामान्य दिनों में 40-50 बच्चे भर्ती रहते हैं। बीमारियां बढ़ने पर बच्चों की संख्या 70-80 तक पहुंच जाती है। यहां दूरदराज के क्षेत्रों से गंभीर बच्चे इलाज के लिए आते हैं। इसके अलावा सप्ताह के छह दिन तक दो ओपीडी चलती हैं। एक ओपीडी सुपर स्पेशियलिटी की होती है, जिसमें दमा, निमोनिया एवं फेफड़े संबंधी इलाज होता है। इसके अलावा रक्त संबंधी बीमारियों के लिए विशेष क्लीनिक चलती है। सर्दियों के दिनों में निमोनिया, अस्थमा एवं कोल्ड डायरिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. यशवंत राव के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सीय सेवाओं का नेटवर्क मजबूत करने की जरूरत है। बच्चों के मर्ज की जटिलता के हिसाब से उन्हें रेफर किया जाए। सामान्य बीमारी के बच्चों को भी मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। मरीजों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। इसके लिए समय समय पर डॉक्टरों की काउंसिलिंग भी कराई जाए।
बाल रोग चिकित्सालय
250-300 बच्चे रोज की ओपीडी 120 बेड की क्षमता 25 बेड का एसएनसीयू 11 वेंटीलेटर 2500-3000 सालभर में आते हैं बच्चे 03 स्थाई डॉक्टर, 02 संविदा पर उर्सला अस्पताल 150-175 बच्चे रोज की ओपीडी 38 बेड की क्षमता 06 डॉक्टर हैं तैनात केपीएम अस्पताल 75 बच्चे रोज ओपीडी में आते बच्चों के लिए बेड नहीं 02 डॉक्टर हैं तैनात।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग चिकित्सालय की बेड क्षमता 120 है। सूबे के सरकारी एवं निजी क्षेत्र का 25 बेड का उत्कृष्ट सिक एंड न्यूबार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) है। जहां सामान्य दिनों में 40-50 बच्चे भर्ती रहते हैं। बीमारियां बढ़ने पर बच्चों की संख्या 70-80 तक पहुंच जाती है। यहां दूरदराज के क्षेत्रों से गंभीर बच्चे इलाज के लिए आते हैं। इसके अलावा सप्ताह के छह दिन तक दो ओपीडी चलती हैं। एक ओपीडी सुपर स्पेशियलिटी की होती है, जिसमें दमा, निमोनिया एवं फेफड़े संबंधी इलाज होता है। इसके अलावा रक्त संबंधी बीमारियों के लिए विशेष क्लीनिक चलती है। सर्दियों के दिनों में निमोनिया, अस्थमा एवं कोल्ड डायरिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. यशवंत राव के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सीय सेवाओं का नेटवर्क मजबूत करने की जरूरत है। बच्चों के मर्ज की जटिलता के हिसाब से उन्हें रेफर किया जाए। सामान्य बीमारी के बच्चों को भी मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। मरीजों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। इसके लिए समय समय पर डॉक्टरों की काउंसिलिंग भी कराई जाए।
बाल रोग चिकित्सालय
250-300 बच्चे रोज की ओपीडी 120 बेड की क्षमता 25 बेड का एसएनसीयू 11 वेंटीलेटर 2500-3000 सालभर में आते हैं बच्चे 03 स्थाई डॉक्टर, 02 संविदा पर उर्सला अस्पताल 150-175 बच्चे रोज की ओपीडी 38 बेड की क्षमता 06 डॉक्टर हैं तैनात केपीएम अस्पताल 75 बच्चे रोज ओपीडी में आते बच्चों के लिए बेड नहीं 02 डॉक्टर हैं तैनात।