देश में भाषाओं को लेकर भेदभाव खत्म होना चाहिए : डॉ. राजन

वीएसएसडी कॉलेज में उत्तर-दक्षिण भारत के मध्य शैक्षिक व सांस्कृतिक सामंजस्य स्थापित करने के लिएसमागम का आयोजन। हिंदी का प्रचार कर रहे दक्षिण भारतीय डॉ. एम गोविंद राजन।

By AbhishekEdited By: Publish:Tue, 18 Sep 2018 04:33 PM (IST) Updated:Tue, 18 Sep 2018 04:33 PM (IST)
देश में भाषाओं को लेकर भेदभाव खत्म होना चाहिए : डॉ. राजन
देश में भाषाओं को लेकर भेदभाव खत्म होना चाहिए : डॉ. राजन

कानपुर (जागरण संवाददाता)। देश के अंदर भाषाओं को लेकर लोगों में उपजा भेदभाव बेहद चिंतनीय है, इसे खत्म होना चाहिए। दक्षिण भारत के प्रांतों में बोली जाने वाली भाषाओं के शब्द भी हिंदी से ही बने हैं। इसलिए इन प्रांतों में हिंदी का विरोध कतई ठीक नहीं है। यह बात दक्षिण भारतीय सेवानिवृत्त शिक्षक डॉ. एम गोविंद राजन ने कही। वह वीएसएसडी कालेज में आयोजित हिंदी-तमिल संवाद संस्कृति-समागम को संबोधित कर रहे थे।

उत्तर-दक्षिण भारत के मध्य शैक्षिक, सांस्कृतिक और अन्य नजरिये से सामंजस्य स्थापित करने के लिए मंगलवार को वीएसएसडी कॉलेज में गोष्ठी का आयोजन हुआ। डॉ. एम गोविंद ने कहा कि तमिल में 1935 से हिंदी का विरोध हो रहा है, जो गलत है। कुछ विरोधी तत्वों के बहकावे में आकर लोग हिंदी का विरोध कर रहे हैं। असल में हिंदी के शब्दों से ही दक्षिण भारत में बोली जाने वाली भाषाओं कन्नड़, मलयालम, तमिल के अधिकांश शब्द बने हैं, सिर्फ बोलने का ढंग थोड़ा भिन्न है। तमिल में केवल 18 व्यंजन होते हैं।

उन्होंने कहा कि वह तमिलनाडु में लोगों को हिंदी भाषा का ज्ञान कराते हैं और उत्तर भारत में तमिल भाषा सिखाते हैं। दक्षिण भारत में वह पिछले पचास सालों से हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। देश में भाषाओं को लेकर भेदभाव ठीक नहीं है। बताया कि इलाहाबाद में साहित्यक संवद्र्धन संस्था उनके नाम से ऐसे लोगों को पुरस्कार देती है, जो हिंदी के प्रसार के लिए काम करते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्रबंध समिति के संयुक्त सचिव डॉ. कमल किशोर गुप्त ने की। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर काम किया जा रहा है। कार्यशाला का संयोजन हिंदी विभाग के एसो सीट प्रोफेसर डॉ. आनंद शुक्ला ने किया। इस मौके पर प्राचार्य डॉ. छाया जैन, डॉ. नीरू टंडन, डॉ. मनोज अवस्थी, डॉ. कंचन मिश्रा आदि मौजूद रहीं।

तमिलभाषी से बन गए हिंदी के प्रचारक

मूलरूप से तमिलनाडु के तंजाउर के रहने वाले डा. एम गोविंद राजन तमिलभाषी हैं और अब हिंदी के प्रचारक बनकर काम कर रहे हैं। वह हिंदी शिक्षक के रहे हैं और वर्ष 2002 से अवकाश प्राप्त हैं। वर्ष 2009 में वह इलाहाबाद आ गए थे। उन्होंने अबतक 40 से 45 किताबें हिंदी में लिखी हैं। इनमें हिंदी से तमिल और तमिल से हिंदी में अनुवाद किया गया है। तेलगु, कन्नड़, मलयालम और द्रविण के जानकार हैं। वह बताते हैं कि तमिल को छोड़कर अन्य तीन भाषाओं में वर्णक्रम संस्कृत और हिंदी के जैसे ही हैं। तमिल में संस्कृत के 50 फीसद तत्सम- तद्भव आत्मसात किया गया है। उन्होंने राम चरित मानस का तमिल में अनुवाद भी किया है। गोस्वामी तुलसी दास की 12 कृतियों में सात का अनुवाद तमिल में किया है।

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