सलमान और दीपिका के साथ पर्दा साझा कर चुकी हैं कानपुर की अनुप्रिया, अब इतनी सी है ख्वाहिश

कानपुर के विष्णुपुरी की गलियों से निकल कर रुपहले पर्दे पर पहचान बनानी वाली अनुप्रिया गोयनका को उमराव जान सरीखा किरदार निभाने की ख्वाहिश है।

By AbhishekEdited By: Publish:Wed, 26 Feb 2020 10:21 AM (IST) Updated:Wed, 26 Feb 2020 05:43 PM (IST)
सलमान और दीपिका के साथ पर्दा साझा कर चुकी हैं कानपुर की अनुप्रिया, अब इतनी सी है ख्वाहिश
सलमान और दीपिका के साथ पर्दा साझा कर चुकी हैं कानपुर की अनुप्रिया, अब इतनी सी है ख्वाहिश

कानपुर, [अनुराग मिश्र]। नवाबगंज के विष्णुपुरी मोहल्ले की गलियों से निकलकर मुंबई में चमक बिखेर रहीं अनुप्रिया गोयनका अब फिल्मी पर्दे का बड़ा नाम बन चुकी हैं। फिल्म पद्मावत में दीपिका पादुकोण और टाइगर जिंदा है... में सलमान खान के साथ बड़ा पर्दा साझा करने वाली अनुप्रिया की ख्वाहिश अब उमराव जान जैसा यादगार किरदार निभाने की है। उन्होंने अपने फिल्मी करियर, संघर्ष, मुकाम और ख्वाहिश के बारे में लंबी बातचीत की, प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश...।

आप बिजनेस करना चाहती थीं, फिर अभिनय की तरफ कैसे रुझान हुआ?

जी हां! चाहत तो मेरी बिजनेस करने की थी। इसीलिए कॉमर्स से पढ़ाई के बाद मुंबई का रुख किया। यहां आकर लगा कि क्यों न फिल्मी दुनिया का हिस्सा बना जाए। स्कूल के समय कई थिएटर वर्कशॉप की थीं। इसलिए ये मेरी सेकेंड च्वाइस थी। ऑडीशन देने शुरू कर दिए और सफलता मिल गई।

कानपुर की गलियों से निकलकर मायानगरी आना और फिर नाम कमाना कितना मुश्किल रहा?

ज्यादा तो नहीं, लेकिन जिस काम में मुश्किल न हो उसमें मजा ही कहां है। मेरे पिता रवींद्र कुमार गोयनका का बिरहाना रोड के पास कपड़े का कारोबार था और मां पुष्पा गृहणी थीं। दो बहन और एक भाई के साथ नवाबगंज के विष्णुपुरी में रहती थी। यहां वुडबाइन स्कूल में ही पढ़ाई के बाद इंटर तक की शिक्षा ज्ञान भारती विद्यालय साकेत नई दिल्ली से ली। इसके बाद वहां दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया। इसके बाद मुंबई आ गई। एक्टिंग में करियर बनाना आसान नहीं है इसका अहसास तब हुआ जब काम नहीं मिला। प्रतिदिन पांच से दस ऑडीशन देती थी, फिर भी सेलेक्ट होते-होते रह जाती थी। कई माह तक ये सिलसिला चला, लेकिन हार नहीं मानी।

पहला ब्रेक मिलने के बाद आपको साउथ फिल्मों से पहचान मिली?

जी, बिल्कुल। पहला ब्रेक मुझे प्रवीन सरकार ने एड फिल्म में दिया। अहसास कराया कि मेरे अंदर भी अभिनय क्षमता है। अगले तीन-चार साल तक यही चलता रहा। इस बीच भारत निर्माण कैंपेन से जुड़ गई। पहला बड़ा ब्रेक साउथ इंडस्ट्री में मिला। मेरी पहली फिल्म तेलगू में पाठशाला थी। इसके बाद पोटूगाड़ू रिलीज हुई। इस दौरान मैं हैदराबाद मेें ही रही। इसके बाद विद्या बालन अभिनीत फिल्म बॉबी जासूस में आफरीन का रोल मिला, फिर टाइगर जिंदा है में पूर्णा और पद्मावत में नागमती का किरदार किया। हालिया रिलीज फिल्म में वार में भी अहम किरदार था।

बड़ी फिल्मों का हिस्सा बनने के बाद आपका अगला लक्ष्य क्या है?

मेरी रोल मॉडल हमेशा से अभिनेत्री रेखा, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी और विद्या बालम रहीं हैं। इसीलिए मैं इनके जैसे किरदार निभाना चाहती हूं। मसलन उमराव जान (रेखा), मिर्च मसाला की सोनबाई (स्मिता पाटिल), डर्टी पिक्चर की विद्या बालन (सिल्क स्मिता) में ड्रीम किरदार हैं। बाकी मैं हर तरह के किरदार निभाना चाहती हूं।

आपके आने वाले प्रोजेक्ट कौन-कौन से हैं?

कई बड़े प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत चल रही है। फिलहाल में प्रकाश झा की आगामी वेबसीरिज आश्रम और अरशद वारसी की असुरा में दिखाई दूंगी। इसके अलावा दो-तीन अन्य फिल्मों में भी अहम किरदार में नजर आऊंगी। कानपुर को कितना मिस करती हैं, यहां के युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?

कानपुर में मेरा बचपन गुजरा है। यहां जेके मंदिर, चिडिय़ाघर और आसपास के सभी प्रमुख स्थल देखे और घूमे हैं। कानपुर में चाचा राजकुमार लोहिया और दादी (जिन्हें बुआ कहते हैं) राधा लोहिया रहते हैं। बाकी परिवार अब मुंबई शिफ्ट हो चुका है। जब भी मौका मिलता है तो कानपुर जरूर आती हूं। युवाओं से बस यही कहना चाहूंगी कि अपनी जिम्मेदारी समझें और करियर के लिए चाहे जितना संघर्ष करना पड़े, कभी हार नहीं मानें।

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