होली से पहले लीजिए तरबूज और खरबूजे का स्वाद
प्रशांत कुमार कन्नौज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबल (सब्जी उत्कृष्टता केंद्र) न सिर्फ किसानों के लिए वरदान बना है बल्कि लोगों को बेमौसम सब्जियों और फलों का स्वाद चखा रहा है। उत्पादन के साथ आय दोगुनी होने से किसान गदगद हैं। वहीं इस बार होली से पहले ही कन्नौज और आसपास के जिलों में लोग तरबूज-खरबूजे का स्वाद मिलेगा।
प्रशांत कुमार, कन्नौज
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबल (सब्जी उत्कृष्टता केंद्र) न सिर्फ किसानों के लिए वरदान बना है बल्कि लोगों को बेमौसम सब्जियों और फलों का स्वाद चखा रहा है। उत्पादन के साथ आय दोगुनी होने से किसान गदगद हैं। वहीं, इस बार होली से पहले ही कन्नौज और आसपास के जिलों में लोग तरबूज-खरबूजे का स्वाद मिलेगा।
उमर्दा ब्लॉक के मवई बिलवारी गाव स्थित सेंटर आफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबल में इंडो-इजरायल तकनीक से पौध तैयार की जाती है। ये पौध किसान यहा से ले जाते हैं। स्वस्थ और रोग रहित पौध से किसानों को कम समय और 40 फीसद कम लागत में अच्छी फसल मिलती है। यहा ताइवानी तरबूज की एक लाख, ताइवानी खरबूजे की 50000, ककड़ी 2000, खीरे की 3000 पौध तैयार की गई। जिसे बीते माह ही कन्नौज, औरैया, हरदोई, उन्नाव व घाटमपुर के किसान ले गए हैं। इनके तैयार होने में करीब 35 दिन का समय लगता है। होली से पहले तरबूज और खरबूज बाजार में उपलब्ध होंगे। इसी तरह यहां भिंडी, बंधा, गोभी आदि सब्जियों की पौध भी तैयार कराई जाती है।
एक और दो रुपये में मिल रहे पौधे
सेंटर से किसानों को तरबूज व खरबूज के पौधे तैयार कर दिए जा रहे हैं। बीज लाने पर एक रुपये और बीज न लाने पर दो रुपये में पौध दी जा रही है।
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किसानों को पौध तैयार करके दी जाती है। समय-समय पर निगरानी की जाती है। पौध रोगमुक्त रखी जाती है। प्लाट पर उसी बीज से पौध तैयार की जाती है, जिस पर शोध हो चुका होता है। वहां उसके उत्पादन व गुणवत्ता को परखा जाता है। इसके बाद खेत में पौध खेतों में रोपाई कराई जाती है। इससे गुणवत्ता बेहतर होती है। अमूमन फल या सब्जी के सड़ने-गलने की शिकायत रहती है लेकिन सेंटर के पौध में ये शिकायत नहीं होती और गुणवत्ता भी बेहतर रहती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी लागत 40 फीसद कम रहती है।
- डॉ.डीएस यादव, केंद्र प्रभारी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबल
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क्या है इंडो-इजराइल तकनीक
इंडो-इजराइल तकनीक में मिट्टी की जगह कोकोपिट (नारियल का बुरादा) और वर्मीकुलाइट व परलाइट (घिसे हुए बारीक पत्थर) का इस्तेमाल होता हैं। यही मिट्टी का विकल्प बनता है। जो काफी समय तक चलता रहता है। मिट्टी वाले पौधे की जड़ में जो बीमारिया लगती हैं, वो इस तकनीक में नहीं लगती हैं। इसमें पानी बहुत ही कम लगता है। तैयार पौधों को पॉली हाउस और नेट हाउस में रखा जाता है, जहा पौधे की प्रकृति के अनुरूप वहा का तापमान रखा जाता है। भारत में जहा सब्जी के पौधे देसी विधि से खुले में तैयार होते हैं। जिससे कभी-कभी पौधों के विकसित न होने की स्थिति बन जाती है। कीट और रोग का खतरा भी बना रहता है। पाली हाउस में इजरायली तकनीक से जो पौधे तैयार किए जा रहे हैं। पौधे की सिंचाई ड्रिप सिस्टम से होती है। तापमान घटाने-बढ़ाने के लिए कूलर व पंखे लगे होते हैं।
ये है पॉली व नेट हाउस
पॉली हाउस का स्ट्रक्चर स्टील से बनता है। इसमें प्लास्टिक की शीट से ऊपर का हिस्सा ढका जाता है। यह शीट 200 माइक्रॉन मोटाई वाली पारदर्शी एवं पराबैंगनी किरणों से प्रतिरोधी पॉलीथीन चादर होती है। यह कम से कम 10 साल तक काम करता है। पॉली हाउस से तेज धूप और तेज बरसात से फूल व सब्जी के पौधों का बचाव हो जाता है। साथ ही इन फसलों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार रहता है। पाली हाउस के अंदर कीट नहीं जा पाते हैं। इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं। ऐसे ही नेट हाउस में पॉलीथिन के स्थान पर जॉलीनुमा नेट होता है।
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सेंटर पर एक नजर
निर्माण : साल 2016 में शुरुआत
क्षेत्रफल : 8.6 हेक्टेयर
लागत : 7.80 करोड
पॉली हाउस : दो
नेट हाउस : चार
क्षमता : तीन लाख पौधे
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