मित्र कीटों से दूर हो रही खेती

By Edited By: Publish:Tue, 22 Jul 2014 07:16 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jul 2014 07:16 PM (IST)
मित्र कीटों से दूर हो रही खेती

जौनपुर : रासायनिक दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग से जहां वातावरण जहरीला हो रहा है वहीं किसान अपने मित्र कीटों को खोता जा रहा है। कीटों को विलुप्त होने से नहीं बचाया गया तो फसलें बर्बाद हो जाएंगी और उत्पादन प्रभावित होगा।

बारिश शुरू होते ही बागों, खेतों में केचुआ, लिल्ली घोड़ी, गोरैला आदि दिखने लगते थे। यह कीट मिंट्टी के ऊपरी सतह तो चालकर सख्त होने से बचाने के साथ ही उर्वर बनाते हैं। इसी प्रकार मैना, गौरैया, मकड़ियां शत्रु कीट -पतंगों का आहार बनाकर फसल की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाती हैं। वहीं मधुमक्खी, तितली परागण के जरिए उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती हैं।

किसानों के साथ सदियों से मित्र का रोल निभा रहे इन कीटों के अस्तित्व पर संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। इनके विलुप्त होने का प्रमुख कारण है रासायनिक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग।

केबीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.संदीप कन्नौजिया ने कहा कि मित्र कीट खेती को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का आहार बनाकर संतुलन बरकरार रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। इपीरीकानिया कीट जहां गन्ने की फसल को बर्बाद करने वाले पायरीला कीट का भक्षण करता है वहीं ट्राइकोग्रैमा कीट फसलों के शत्रु लारवा के अंडे में अपना अंडा देकर उसे नष्ट कर देता है। ट्राइको कार्ड के जरिए सब्जी की फसल को बचाने में इस परजीवी अंडे का उपयोग लाभकारी है। इसी प्रकार बिटी नामक वैक्टीरिया का छिड़काव रेंगने वाले कीड़ों को मारने में किया जाता है। वहीं फली छेदक कीट को खत्म करने के लिए हेलिकोबर्पा आर्मीजेरा वायरस के घोल का किया जाता है।

डा.कन्नौजिया ने बताया कि किसानों की अनभिज्ञता और लालच से मित्रकीटों की संख्या नगण्य होती जा रही है, जो भविष्य में घातक साबित होगी। सलाह दिया कि फसलों को कीट-पतंगों से बचाने के लिए एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन अपनाएं। जरूरत पड़ने पर कृषि वैज्ञानिकों की संस्तुति पर रासायनिक दवाओं का छिड़काव उचित मात्रा में करें।

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