दो सौ वर्ष पुरानी बावड़ी का होगा कायाकल्प

संवाद सूत्र महेबा गांवों में बावड़ी तालाब कभी शान हुआ करते थे। लोगों की पानी की जरूरत इनसे ही पूरी होती थी। कभी किसी तरह की दिक्कत सामने नहीं आई। संसाधन बढ़ने के बाद जरूर इनकी उपेक्षा हुई लेकिन अब फिर इनकी जरूरत को महसूस किया जाने लगा है। ग्राम पाल मड़ैया की वह बावड़ी जिसके पास कभी बरातें ठहरती थीं अब उसका जीर्णोद्धार कराने की आवश्यकता गांव के लोगों को महसूस होने लगी है। इसके लिए गांव वालों ने कार्ययोजना भी तैयार की है ताकि बावड़ी को फिर से पहले जैसी स्थिति में लाया जा सके।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 08:01 PM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 08:01 PM (IST)
दो सौ वर्ष पुरानी बावड़ी का होगा कायाकल्प
दो सौ वर्ष पुरानी बावड़ी का होगा कायाकल्प

संवाद सूत्र, महेबा : गांवों में बावड़ी, तालाब कभी शान हुआ करते थे। लोगों की पानी की जरूरत इनसे ही पूरी होती थी। कभी किसी तरह की दिक्कत सामने नहीं आई। संसाधन बढ़ने के बाद जरूर इनकी उपेक्षा हुई लेकिन अब फिर इनकी जरूरत को महसूस किया जाने लगा है। ग्राम पाल मड़ैया की वह बावड़ी जिसके पास कभी बरातें ठहरती थीं अब उसका जीर्णोद्धार कराने की आवश्यकता गांव के लोगों को महसूस होने लगी है। इसके लिए गांव वालों ने कार्ययोजना भी तैयार की है ताकि बावड़ी को फिर से पहले जैसी स्थिति में लाया जा सके।

विकासखंड महेबा की ग्राम पंचायत पाल मढैया में आज भी ऐसा कुआं बाबड़ी है जहां तीन दशक पहले गुजरने वाली हर बारात यहां रुकती थी। पूरी बारात इसी बावड़ी का पानी पीती थी। बारात का भोजन भी इसी के पानी से बनता था। इसका इतिहास लगभग दो सौ वर्ष पुराना बताया जाता है। बाद में लोगों ने इसका पानी पीना बंद कर दिया। हालांकि अभी इसमें पानी की कोई कमी नहीं है लेकिन बावड़ी टूट फूट गई है। कुछ किसान इसी बावड़ी के पानी से खेतों की सिचाई करते हैं। अब जब पीने के पानी का संकट लोगों के सामने खड़ा हुआ तो लोग फिर से इस बावड़ी को पहले जैसी हालत में लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। गांव के लोगों ने आपस में सलाह कर तय किया है कि इसका जीर्णोद्धार कराया जाएगा। सरकारी मदद न मिले तो भी इसको बेहतर हालत में लाकर रहेंगे। कम से कम प्यासे तो नहीं रहना पड़ेगा। पूरा गांव भरता था पानी

ब्लाक के ग्राम पाल की मढैया की दो सौ वर्ष पुरानी बावड़ी से गांव भर के लोग पानी भरते थे। तीन दशक पहले पूरे गांव के लोग इसी कुएं का पानी उपयोग में लाते थे। ग्रामीणों ने बताया की महेवा, गोरा कला, बैरैई ,सरसेला, खैरैई, हथनौरा, दहेलखंड आदि गांव से जब बरात कानपुर देहात के बेहमई ,जैसलपुर, महादेवा, अनवा, दमनपुर, वेना बैल गाड़ियों से बरात जाती थी रास्ते में यह कुआं मिलता है। जहां पीपल के बड़े वृक्ष की छाया भी है। बारात यहीं ठहरती थी और बाराती शीतल जल का सेवन और पीपल की छांव में विश्राम के बाद लोग अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाते थे। बोले ग्रामीण

पूर्व प्रधान सोवरन सिंह निषाद ने बताया कि सन 1989 में तत्कालीन प्रधान बाबूराम निषाद ने इस बाबरी का जीर्णोद्धार कराया था। कितनी भी गर्मी पड़े लेकिन अभी भी इस कुएं का पानी नहीं सूखता है। कुएं का निर्माण पत्थर से कराया गया है। गांव के 86 वर्षीय शंकर तिवारी ने बताया कि गांव के लोगों ने इस बावड़ी को संवारने का संकल्प लेकर बहुत अच्छा कार्य किया है। यह बावड़ी गांव ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए शान थी।

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