विदेशों में रहकर किया आजादी के लिए संघर्ष

श्रद्धांजलि राजा महेंद्र प्रताप के जन्मोत्सव पर विशेष आजादी के बाद मथुरा के सांसद रहे ।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 04:50 AM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 04:50 AM (IST)
विदेशों में रहकर किया आजादी के लिए संघर्ष
विदेशों में रहकर किया आजादी के लिए संघर्ष

जागरण संवाददाता, हाथरस : आजादी के महानायक राजा महेंद्र प्रताप चाहते तो अंग्रेजों का प्रस्ताव स्वीकार कर पूरी जिदगी ऐश-ओ-आराम के साथ बिता सकते थे, लेकिन उन्होंने देश को सर्वाेपरि समझा। देश की आजादी के लिए यातनाएं सहना मंजूर किया। वर्षों तक विदेशों में रहकर आजादी के लिए संघर्ष किया। जिस आजाद हिद फौज के लिए सुभाष चंद्र बोस को जाना जाता है, उसे खड़ा करने में राजा साहब की बड़ी भूमिका रही।

जीवन परिचय :

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म एक दिसंबर 1886 को मुरसान नरेश बहादुर घनश्याम सिंह के यहां हुआ था। तीन साल की उम्र में हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने गोद ले लिया था। राजा साहब सात-आठ साल की उम्र तक मुरसान में रहे। बाद में सर सैयद अहमद खां के आग्रह पर राजा साहब के पिता राजा घनश्याम सिंह ने उन्हें अलीगढ़ के गवर्नमेंट स्कूल में और फिर एमएओ कालेज में पढ़ने के लिए भेजा। यही कालेज बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।

बचपन के खेल :

राजा साहब यूं तो टेनिस व चेस के शौकीन थे, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा गुल्ली डंडा प्रिय था। इस बात का उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा माई लाइफ स्टोरी में भी किया है।

दो ट्रेनों में गई बरात :

जब वह चौदह साल के थे तब उनका विवाह जींद नरेश राजा रणवीर सिंह की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ। दो स्पेशल रेलगाडि़यों से बरात गई थी। विवाह के बाद जब कभी महेंद्र प्रताप ससुराल जाते तो उन्हें 11 तोपों की सलामी दी जाती। स्टेशन पर सभी अफसर स्वागत करते।

स्वतंत्रता सेनानी की भावना :

राजा हरिनारायण सिंह के देहांत के बाद बीस साल की उम्र में ही उनकी ताजपोशी हुई। विद्यार्थी जीवन से ही स्वतंत्रता सेनानी की भावना थी। जींद नरेश की इच्छा के खिलाफ 1906 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया। वहीं से वे क्रांतिकारी के रंग में रंग कर लौटे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत को आजादी दिलाने के पक्के इरादे से विदेश चले गए। उन्होंने 31 साल तक विदेशों में रहकर आजादी का बिगुल बजाया। वे जर्मनी, स्विटरजरलैंड, अफगानिस्तान, तुर्की, यूरोप, अमरीका, चीन, जापान, रूस आदि देशों में रहकर आजादी का अलख जगाते रहे। उन्होंने एक दिसंबर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की, जिसके राष्ट्रपति स्वयं बने।

प्रेम महाविद्यालय की स्थापना

उन्होंने 1909 में वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केंद्र था। मदन मोहन मालवीय इसके उद्घाटन समारोह में उपस्थित रहे। यह भारत का पहला पॉलीटेक्निक कालेज था। वे जाट महासभा के संस्थापक सदस्य व अध्यक्ष भी रहे। वह 1957 से लेकर 1962 तक मथुरा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। 29 अप्रैल 1979 को महान देशभक्त पंचतत्व में विलीन हो गए। राजा के नाम पर डाक टिकट

वर्ष 1979 में केंद्र सरकार ने राजा साहब के नाम से स्पेशल डाक टिकट जारी किया था। यह स्पेशल टिकट संग्रहकर्ताओं के पास आज भी सुरक्षित है। लोगों की मांग है कि राजा महेंद्र प्रताप को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया जाए। संसद भवन में उनका तेल चित्र तथा हाथरस के मुख्य चौराहे पर उनकी प्रतिमा स्थापित कराने के साथ ही एक दिसंबर को अवकाश घोषित किया जाए।

chat bot
आपका साथी