Chhath Puja 2021: आदिकाल से हो रही सूर्य की उपासना, सनातन संस्कृति में है छठ

सूर्योपासना की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सूर्यषष्ठी अटूट आस्था का महापर्व है। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित हैं। मुख्यत बिहार प्रांत में माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाने वाला सूर्यषष्ठी पर्व वर्तमान में पूर्वांचल का महापर्व बन गया है।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Publish:Tue, 09 Nov 2021 07:15 AM (IST) Updated:Tue, 09 Nov 2021 07:15 AM (IST)
Chhath Puja 2021: आदिकाल से हो रही सूर्य की उपासना, सनातन संस्कृति में है छठ
आदि काल से चली आ रही है छठ पूजा। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, अखिलेश्वर धर द्विवेदी। सूर्योपासना की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सूर्यषष्ठी अटूट आस्था का महापर्व है। मनोकामनाओं की पूर्ति से इस पर्व की महत्ता व आस्था बढ़ी है। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित हैं। मुख्यत: बिहार प्रांत में माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाने वाला सूर्यषष्ठी पर्व वर्तमान में पूर्वांचल का महापर्व बन गया है। इसे डाला छठ, लोकपर्व के नाम से भी जाना जा रहा है। भगवान भाष्कर के प्रति भक्तों का अनूठा पर्व ही छठ पूजा है। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए आराधना की जाती है। अभीष्ट फल की प्राप्ति व मनोकामना पूर्ति होने से लोगों की श्रद्धा है।

प्रकृति की देवी मां देवसेना

माता दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री ये पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति कहलाती हैं। इन्हीं के प्रधान अंश को माता देवसेना कहते हैं। प्रकृति देवी का छठवां अंश होने के इन्हें षष्ठी माता के नाम से जाना जाता है। मां संसार के सभी संतानों की जननी और रक्षक हैं।

आदि शंकराचार्य ने किया था प्रेरित

सूर्यपूजा सदियों से हो रही है। संतकबीरनगर जिलेे के आचार्य रमेशचंद्र दूबे के अनुसार शाक्य द्वीपीय ब्राह्मणों को सूर्यपूजा के विशेषज्ञ होने के कारण राजाओं ने आमंत्रित किया। ऋग्वेद में सूर्य पूजा का महात्म्य मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत व रानी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए पूजन किया था। मृत शिशु की प्राप्त होने पर जीवित करने के लिए व्रत किया था। भगवान की मानस पुत्री देवसेना की कृपा से संतान की प्राप्त हुई। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने सूर्य पूजा के लिए प्रेरित किया था।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी किया था पूजन

सतयुग में पूजन का जहां वर्णन मिलता है, वहीं त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ व्रत रखकर पूजन किया। मान्यता के अनुसार प्रभु ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत काल में द्रौपदी ने की थी छठ पूजा

द्वापर में माता कुंती ने सूर्यदेव की पूजा की थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से पूर्व कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण भी यह पूजा करते थे। वे अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे। महाभारत काल में ही पांडवों की भार्या द्रौपदी के भी सूर्य उपासना करने का उल्लेख है मिलता है, जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थीं। द्रौपदी ने राजपाट की पुन: प्राप्ति के लिए आराधना की थी।

पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व

छठ पर्व का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व है। लोक कल्याण एवं अभीष्ट फल प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य के उपासना की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसी दिन गायत्री मंत्र का विस्तार माना जाता है। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। षष्ठी तिथि की स्वामिनी षष्ठी माता व सप्तमी के स्वामी भगवान सूर्यनारायण हैं। षष्ठी पर अस्ताचलगामी व सप्तमी को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

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