यहां पर हर वर्ष बनाते हैं लकड़ी का पुल, बरसात में बहा ले जाती है नदी
जब कोई विकल्प नहीं मिला तो ग्रामीणों ने मिलकर नदी पर लकड़ी का पुल बना डाला। वह हर साल पुल बनाते हैं और बाढ़ के समय नदी में बह जाता है।
गोरखपुर, जेएनएन। आजादी के सात दशक बाद भी महराजगंज जिले के कुछ ऐसे भी गांव हैं, जहां विकास की रफ्तार काफी धीमी है। या यूं कहें कि विकास की किरणें उनके तक पहुंचते-पहुंचते धीमी हो जाती। इसके लिए यहां के बा¨सदे कभी खुद को तो कभी सूबे के निजाम को कोसते रहते हैं।
तेजी से भागती जिंदगी में 17 किलोमीटर लंबे घुमावदार रास्ते से बचने के लिए ग्रामीणों ने नौतनवा क्षेत्र में बहने वाली चंदन नदी के उस पार जाने का रास्ता निकाल लिया है। पक्के पुल का निर्माण कराने पाने में असमर्थ ग्रामीणों ने स्वयं के खर्चे से समस्या का समाधान ढूंढ निकाला। लकड़ी का अस्थाई पुल तो बना दिया, लेकिन उन्हें इस बात की ¨चता सताते रहती है कि बरसात में बाढ़ का पानी पुल को बहा ले जाएगी। यहां पर हर वर्ष लकड़ी का पुल बनता है और बरसात में वह नदी में समा जाता है।
इन गांवों के लिए बनाया गया पुल नौतनवा व सिसवा विधानसभा क्षेत्र के बीच से होकर बहने वाली पहाड़ी नदी चंदन पर पुल न होने से डगरूपुर, खैरहवा जंगल, सीहाभार, जिगिनियहवा, बकुलडीहा, सुकड़हर आदि गांवों के लोगों को नौतनवा, सिसवा, निचलौल व जिला मुख्यालय आदि स्थानों पर जाने के लिए एक लंबे घुमावदार रास्ते से होकर आने-जाने की मजबूरी है। हर बार चुनावी मुद्दा बनकर रह जाता है पुल का निर्माण नदी पर पक्के पुल के अभाव में हो रही समस्या से निजात पाने के लिए मजबूर ग्रामीणों ने इसे लोकसभा व विधानसभा में चुनावी मुद्दा बनाकर नेताओं की घेराबंदी की, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सभी अपने वादे से कन्नी काट लिए।
यही कारण है कि हालात के आगे मजबूर ग्रामीण आज भी समस्या से जूझते हुए सरकार व जनप्रतिनिधियों को कोश रहे हैं। समस्या से जूझ रहे, सुविधाओं से वंचित ग्रामीण नदी पर पक्के पुल के अभाव में न केवल आवागमन के संकट से जूझ रहे है। वहीं दूसरी तरफ लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरी सुविधाएं भी सही ढंग से मयस्सर नहीं हो पा रही हैं। बारिश के मौसम में नदी पर बने लकड़ी के पुल के धराशाई होने के बाद तो लोगों को बेवजह समय जाया कर घुमावदार मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है।
तेजी से भागती जिंदगी में 17 किलोमीटर लंबे घुमावदार रास्ते से बचने के लिए ग्रामीणों ने नौतनवा क्षेत्र में बहने वाली चंदन नदी के उस पार जाने का रास्ता निकाल लिया है। पक्के पुल का निर्माण कराने पाने में असमर्थ ग्रामीणों ने स्वयं के खर्चे से समस्या का समाधान ढूंढ निकाला। लकड़ी का अस्थाई पुल तो बना दिया, लेकिन उन्हें इस बात की ¨चता सताते रहती है कि बरसात में बाढ़ का पानी पुल को बहा ले जाएगी। यहां पर हर वर्ष लकड़ी का पुल बनता है और बरसात में वह नदी में समा जाता है।
इन गांवों के लिए बनाया गया पुल नौतनवा व सिसवा विधानसभा क्षेत्र के बीच से होकर बहने वाली पहाड़ी नदी चंदन पर पुल न होने से डगरूपुर, खैरहवा जंगल, सीहाभार, जिगिनियहवा, बकुलडीहा, सुकड़हर आदि गांवों के लोगों को नौतनवा, सिसवा, निचलौल व जिला मुख्यालय आदि स्थानों पर जाने के लिए एक लंबे घुमावदार रास्ते से होकर आने-जाने की मजबूरी है। हर बार चुनावी मुद्दा बनकर रह जाता है पुल का निर्माण नदी पर पक्के पुल के अभाव में हो रही समस्या से निजात पाने के लिए मजबूर ग्रामीणों ने इसे लोकसभा व विधानसभा में चुनावी मुद्दा बनाकर नेताओं की घेराबंदी की, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सभी अपने वादे से कन्नी काट लिए।
यही कारण है कि हालात के आगे मजबूर ग्रामीण आज भी समस्या से जूझते हुए सरकार व जनप्रतिनिधियों को कोश रहे हैं। समस्या से जूझ रहे, सुविधाओं से वंचित ग्रामीण नदी पर पक्के पुल के अभाव में न केवल आवागमन के संकट से जूझ रहे है। वहीं दूसरी तरफ लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरी सुविधाएं भी सही ढंग से मयस्सर नहीं हो पा रही हैं। बारिश के मौसम में नदी पर बने लकड़ी के पुल के धराशाई होने के बाद तो लोगों को बेवजह समय जाया कर घुमावदार मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है।