त्रेता युग से चढ़ रही है बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, ऐसे शुरू हुई परंपरा Gorakhpur News

परंपरा का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा है जिसका आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निर्वाह किया जा रहा है। नेपाल सहित देश के कई हिस्सों से लाखों श्रद्धालु यहां खिचड़ी चढ़ाने आते हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Tue, 14 Jan 2020 09:00 AM (IST) Updated:Tue, 14 Jan 2020 12:37 PM (IST)
त्रेता युग से चढ़ रही है बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, ऐसे शुरू हुई परंपरा Gorakhpur News
त्रेता युग से चढ़ रही है बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, ऐसे शुरू हुई परंपरा Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ के दरबार में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा युगों पुरानी है। परंपरा का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा है, जिसका आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निर्वाह किया जा रहा है। नेपाल सहित देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों श्रद्धालु यहां खिचड़ी चढ़ाने पहुंचते हैं।

कांगड़ा की ज्वाला देवी मंदिर से है खिचड़ी परंपरा का रिश्ता

मान्यता है कि त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर गए। सिद्ध योगी दिखे तो ज्वाला देवी प्रकट हुईं और उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। देवी ने तरह-तरह का व्यंजन तैयार किया पर गुरु गोरक्षनाथ ने यह कहकर खाने से इन्कार कर दिया कि वह सिर्फ भिक्षा में मिला भोजन ही ग्रहण करते हैं। देवी ने उनकी इच्छा का सम्मान किया और कहा कि वह भिक्षा में मिले अन्न से ही भोजन तैयार करेंगी।

भिक्षाटन करते हुए बाबा गोरखपुर पहुंच गए बाबा गोरखनाथ

उधर देवी ने भोजन बनाने के लिए आग पर बर्तन में पानी चढ़ाया और इधर गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए। यहां उन्होंने अपना भिक्षा पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोग  भिक्षा पात्र में चावल-दाल डालने लगे। जब काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे चमत्कार माना और योगी के सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। तभी से गुरु के इस तपोस्थली पर मकर संक्रांति के दिन चावल-दाल चढ़ाने की परंपरा है। उधर ज्वाला देवी मंदिर में आज भी बाबा गोरखनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है। पहली खिचड़ी मकर संक्रांति के दिन तड़के गोरक्षपीठाधीश्वर चढ़ाते हैं। उसके बाद श्रद्धालुओं के खिचड़ी चढ़ाने का सिलसिला शुरू होता है। साथ ही मंदिर परिसर मेंं महाशिवरात्रि तक चलने वाले मेले की शुरुआत भी होती है।

नेपाल राज परिवार से भी आती है खिचड़ी

नेपाल राज परिवार की ओर से भी खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि प्राचीन काल से ही नेपाल को बाबा का संरक्षण प्राप्त था। एक बार प्रचंड अकाल से त्रस्त नेपाल को बाबा गोरखनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने उबारा था, तभी से वहां से खिचड़ी चढ़ाने के लिए आती है।

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