रंगों के त्योहार पर परंपराओं का गुलाल

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : होली यानी रंगों का त्योहार। अबीर-गुलाल के साथ गीतों की मस्ती और उमंग के स

By Edited By: Publish:Thu, 05 Mar 2015 11:45 PM (IST) Updated:Thu, 05 Mar 2015 11:45 PM (IST)
रंगों के त्योहार पर परंपराओं का गुलाल

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : होली यानी रंगों का त्योहार। अबीर-गुलाल के साथ गीतों की मस्ती और उमंग के साथ हुड़दंग भी। जी हां, फागुन खुद में इन सभी खासियतों को समेटे आ गया है। आइए, हम बताते हैं तन के साथ मन को भी रंगीन कर देने वाले इस त्योहार के कुछ वैसे अध्याय, जो हमारी समृद्ध परंपरा की विरासत बन चुके हैं।

व्यवस्थित हुई कीचड़

व कालिख की होली

कीचड़ व कालिख से खेली जाने वाली होली को व्यवस्थित रूप देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख ने 1944-45 में घंटाघर से भगवान नरसिंह की शोभायात्रा की शुरुआत की। इसके पहले गोरखपुर की होली बहुत फूहड़ होती थी।

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जुलूस के साथ जलाते होलिका

होली की पूर्व संध्या पर जुलूस निकाल कर होलिका दहन की शुरुआत यहां 1927 में हुई। भगवान पटवा व रामदास कसौधन की ओर से शुरू की गई परंपरा न केवल अनवरत जारी है, बल्कि अन्य जगहों पर भी इसका अनुसरण किया जा रहा है। समिति द्वारा सायं 4 बजे पांडेय हाता से शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें गाजे-बाजे के साथ हजारों लोग शामिल होते हैं।

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दिन को कबीर, शाम को बंदगी

रंगों के त्योहार पर दिन भर पिचकारियां तो चलती ही हैं, छतों से गागर भी उड़ेले जाते हैं। दरवाजे-दरवाजे होली गीत गाते, हुड़दंग मचाने को भी चौकड़ी बेताब रहती है। दिन में कबीरा और शाम में नहा-धोकर मंदिरों में भजन-कीर्तन यहां का ऐसा रिवाज है, जिसे लोग होली से पहले और बहुत बाद तक याद करते हैं और मस्ती में झूमते हैं। इंतजार पुरोहित का भी रहता है, जो नए संवत्सर के लिहाज से वर्ष भर का राशिफल बांचते हैं। इसके बाद सभी एक-दूसरे के घर जाकर बड़े-बुजुर्गो को प्रणाम करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।

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होली की पूर्व संध्या पर उत्सव का जवाब नहीं

ग्यारह वर्ष पहले एक और शुरुआत यहां की परंपरा का अंग बन चुकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा यहां लाल डिग्गी पार्क में होली की पूर्व संध्या अर्थात होलिकोत्सव पर सुबह 7.30 बजे से होली उत्सव मनाया जाता है। कार्यक्रम में बाहर से गायकों की टीम बुलाई जाती है, जो भक्ति की रसधार बहाते हैं। इस अवसर पर फूलों से होली खेली जाती है और लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर शुभकामना देते हैं।

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