दिल भी तोड़ा तो सलीके से न तोड़ा तुमने..

गोंडा: गुरुवार को नगर के यतीम खाना के पास आल इंडिया मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन मुहम्मद शाहिद उर्

By Edited By: Publish:Fri, 05 Feb 2016 11:40 PM (IST) Updated:Fri, 05 Feb 2016 11:40 PM (IST)
दिल भी तोड़ा तो सलीके से न तोड़ा तुमने..

गोंडा: गुरुवार को नगर के यतीम खाना के पास आल इंडिया मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन मुहम्मद शाहिद उर्फ मस्तान बकाई द्वारा किया गया। जिसकी अध्यक्षता सैयद शुऐबुल अलीम बकाई व संचालन लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ. अब्बास रजा नैयर जलालपुरी ने किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. महताब आलम दिल्ली वाले रहे। कार्यक्रम की शुरुआत शायर मुजीब सिद्दीकी की नात से हुआ। उसके बाद मुनव्वर राना ने अपने मिसरे पेश किए-अलमारी से खत उसके पुराने निकल आए, फिर से मेरे चेहरे के ये दाने निकल आए। मां बैठ के तकती थी जहां से मेरा रास्ता, जब खोद के देखा तो खजाने निकल आए। पद्मश्री बेकल उत्साही ने पढ़ा-गोरी पनघट से चली भरे गगरिया नीर, गजल भजन सब त्याग दें गालिब और कबीर। जर्रार अकबराबादी ने पढ़ा-जब तक गरज रहेगी गुलेतर कहेंगे लोग, मैं जानता हूं फिर मुझे पत्थर कहेंगे लोग। डॉ. महताब आलम ने पढ़ा-दिल भी तोड़ा तो सलीके से न तोड़ा तुमने, बेवफाई के भी आदाब हुआ करते हैं। डॉ. नायाब हल्लौरी ने पढ़ा-गांव पूछेगा कि तुम शहर से क्या लाए हो, मेरे अल्लाह सलामत मेरे छाले रखना। शिवकिशोर तिवारी खंजन ने पढ़ा- दीपक जले जो मंदिर में मस्जिद प्रकाश पाए, खेलन अली के घर में हरिओम रोज आए। निरपेक्ष धर्म की बातें लगेंगी अच्छी, हर ईद में मुसलमां होली के गीत गाए। अंजार सीतापुरी ने पढ़ा- इससे पहले कि दिलों में नफरत जागे, आओ एक शाम मुहब्बत से बिता ली जाए। श्यामा ¨सह शबा ने पढ़ा-आइने के सामने आ देख अपनी खामियां, गैर के किरदार पर ऊंगली उठाना छोड़ दे। रहमत लखनवी, महताब हैदर सफीपुरी, फैज खुमार, तनवीर नगरौरी, शहाब बलरामपुरी, नीरज पांडेय, विकास बौखल, हैदर अलवी, सैफ बाबर, नासिर जौनपुरी, उस्मान मीनाई, डॉ. हिमायत जायसी, याकूब अज्म एवं डॉ. रिजवान सहित अन्य शायरों व कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। नपाप के पूर्व के अध्यक्ष रामजीलाल मोदनवाल, नजीर इंडियन, अन्ना मंसूरी, मुजीब सिद्दीकी सहित काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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