अस्पताल की कुर्सी ही बिस्तर, जो मिला सो खा लिया

जागरण संवाददाता फतेहपुर कोरोना जैसी बीमारी से संक्रमित लोगों की परवरिश करके दोआबा

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 12:11 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 12:11 AM (IST)
अस्पताल की कुर्सी ही बिस्तर, जो मिला सो खा लिया
अस्पताल की कुर्सी ही बिस्तर, जो मिला सो खा लिया

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : कोरोना जैसी बीमारी से संक्रमित लोगों की परवरिश करके दोआबा की धरती में जन्मे डॉ. आदित्य बाजपेयी ने अनगढ़ कहानी रची है। सेवा भाव से लबरेज इस युवा डॉक्टर ने घरेलू सुख और समय की परवाह नहीं की। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज प्रशासन को यह विश्वास दिला दिया कि वह 24 घंटे सेवा के लिए तत्पर हैं। घर के दरवाजे तक पीपीई किट पहनकर जाना और खाने का टिफिन लेकर लौट जाना इनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। अथक मेहनत और भोजन के बाद सुस्ती आई तो कुर्सी को ही बिस्तर बना लिया। एक झपकी ली और फिर मरीजों की सेवा में जुट गए।

शहर के कलक्टरगंज मोहल्ले में रहने वाले दंपती शिक्षिका मीना बाजपेयी और एकाउंट अफसर आरडी बाजपेयी के दो पुत्र हैं। बड़ा बेटा डॉ. आशुतोष बाजपेयी कानपुर के कार्डियोलॉजी में तैनात हैं तो छोटा बेटा गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सेवाएं दे रहे हैं। कोरोना मरीजों की सेवा में कीर्तिमान गढ़ने वाले डॉ. बाजपेयी बताते हैं कि उनके सीनियर डॉक्टरों का मार्गदर्शन और देशभक्ति का जज्बा काम आया है। अस्पताल में पूर्वांचल के जिलों से धड़ाधड़ मरीजों के वाहन पहुंच रहे थे। मार्च माह से शुरू हुआ सेवा का अभियान 16 जून को पहली बार विराम में आया। पहली बार शहर लौटे और माता-पिता के सामने सेवा करके लौटा तो उनका माथा गर्व से ऊंचा दिखा। उन्होंने बताया कि इस समय वह हड्डी एवं जोड़ रोग में परास्नातक कर रहे हैं। --------------------------------------------------

खुद हुए संक्रमित फिर नहीं थके कदम

मरीजों की सेवा और ऊर्जा से भरे डॉ. आदित्य बाजपेयी जुलाई माह में खुद कोरोना पॉजिटिव हो गए। मरीजों की सेवा करते करते खुद के संक्रमित हो जाने को साहस के साथ स्वीकार किया। जिस मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर बनकर मरीजों की सेवा कर रहे थे उसी में मरीज बनकर बिस्तर थाम लिया। डॉ. बाजपेयी बताते हैं कि 14 दिन के लिए अस्पताल में क्वारंटाइन रहे तो अस्पताल से छुट्टी मिली तो 8 दिन होम क्वारंटाइन में बिताया। 22 दिन बाद फिर से कोरोना की मरीजों की सेवा में दिनचर्या में जुड़ गयी। ------------------------------------------------------

पापा-मम्मी और बड़े भाई का हौसला बना संजीवनी

कोरोना को लेकर दिल में कभी भय नहीं समा सका। पापा और मम्मी तथा बड़े भाई ने सदैव हौसला भरने का काम किया। मोबाइल में पापा ने संबल दिया तो मम्मी ने कहाकि डॉक्टर हो, मरीजों की सेवा तुम्हारा धर्म है जैसे शब्द कानों में हर समय गूंजते रहे हैं। ऐसे ही शब्दों के बल पर मार्च माह से लेकर अभी तक कोरोना मरीजों के बीच ही सेवा का अवसर बददस्तूर जारी है। सेवा से बहुत की सुकून मिल रहा है।

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