प्रभु की नगरी से रहा महात्मा का नाता

अयोध्या बात सन 1921 की है। तारीख थी 20 फरवरी। बापू फैजाबाद की धरती पर थे। तब न तो यातायात के साधन सुगम थे न ही आज जैसी व्यवस्थाएं। चौरी-चौरा कांड के विरोध में बापू का राष्ट्रव्यापी दौरा था। उसी सिलसिले में यहां आना हुआ था। इसी दिन सूरज ढलने तक उन्होंने जालपादेवी मंदिर के करीब मैदान में सभा को संबोधित किया था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 01 Oct 2019 11:23 PM (IST) Updated:Thu, 03 Oct 2019 06:19 AM (IST)
प्रभु की नगरी से रहा महात्मा का नाता
प्रभु की नगरी से रहा महात्मा का नाता

अयोध्या : बात सन 1921 की है। तारीख थी 20 फरवरी। बापू फैजाबाद की धरती पर थे। तब न तो यातायात के साधन सुगम थे, न ही आज जैसी व्यवस्थाएं। चौरी-चौरा कांड के विरोध में बापू का राष्ट्रव्यापी दौरा था। उसी सिलसिले में यहां आना हुआ था। इसी दिन सूरज ढलने तक उन्होंने जालपादेवी मंदिर के करीब मैदान में सभा को संबोधित किया था। हालांकि अब सभा के साक्षी तो नहीं हैं, लेकिन पीढ़ी-दर-पीढ़ी जो बात आगे बढ़ी वह यह है कि जिले में उनके कदम रखने से लेकर सभास्थल तक पहुंचने तक उनकी एक झलक पाने की मार्ग के दोनों ओर खड़े लोगों की बेताबी सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी।

सभा को खिताब करने के बाद नगर धारा रोड स्थित बाबू शिवप्रसाद की कोठी में उन्होंने रात्रि विश्राम किया था। बापू अगले दिन भोर में अयोध्या पहुंचे। सरयू में स्नान किया। वर्ष 1929 में विभिन्न प्रांतों का दौरा करते हुए बापू दूसरी बार भी अयोध्या आगमन के मोह से नहीं बच सके। उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए सिविल लाइंस में गांधी पार्क की भी स्थापना की गई।

सरयू में प्रवाहित हुई थीं अस्थियां

सरयू तट पर स्थित राम की पैड़ी इस सच्चाई की साक्षी है कि बापू की अस्थियां देश की जिन चुनिदा पवित्र नदियों में विसर्जित की गई, उनमें से एक सरयू भी थी। बापू के निधन के कुछ ही दिनों बाद संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष एवं बाद में आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ कई अन्य कांग्रेस पदाधिकारी बापू की अस्थियां लेकर अयोध्या आए थे। हालांकि उस समय राम की पैड़ी का निर्माण नहीं हुआ था। बापू के अस्थि विसर्जन की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के उद्देश्य से सरयू तट पर ही गांधी ज्ञान मंदिर की स्थापना की गई। गत 71 वर्षो से यह मंदिर बापू के विचारों और आदर्शो का वाहक बना हुआ है। प्रभु राम से बापू का क्या नाता था, यह उनकी रामभक्ति और रामराज्य के आदर्श से परिभाषित है। इस नाते से अयोध्या से भी उन्हें विशेष लगाव रहा।

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