हिंदवी से खड़ी बोली गढ़ खुसरो ने संवार दी हिंदी, छंदों में ब्रज भाषा की छाप

मुगलकाल में जब भाषाओं की विविधता लोगों को एक-दूसरे से अलग कर रही थी, तब खुसरो ने खड़ी बोली के जरिए लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Thu, 13 Sep 2018 08:24 PM (IST) Updated:Thu, 13 Sep 2018 11:17 PM (IST)
हिंदवी से खड़ी बोली गढ़ खुसरो ने संवार दी हिंदी, छंदों में ब्रज भाषा की छाप
हिंदवी से खड़ी बोली गढ़ खुसरो ने संवार दी हिंदी, छंदों में ब्रज भाषा की छाप

एटा (अनिल गुप्ता)। मुगलकाल में जब भाषाओं की विविधता लोगों को एक-दूसरे से अलग कर रही थी, तब अमीर खुसरो ने खड़ी बोली के जरिए लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था। आगे चलकर इसी खड़ी बोली से हिंदी का मान तो बढ़ा ही, खुसरो ने पहेलियां और मुकरियां (पहेली का ही एक रूप) रचकर हिंदी की रोचकता और बढ़ा दी। उन्होंने हिंदवी से खड़ी बोली का आविष्कार किया, जिसने हिंदी को और ज्यादा संवार दिया। 

खुसरो में हिंदी का इल्म पर कई शोध

एटा से 35 किलोमीटर दूर पटियाली में सन् 1253 में अमीर खुसरो का जन्म हुआ था। खुसरो में हिंदी का इल्म कहां से आया, इस पर साहित्यकारों और इतिहासकारों ने काफी शोध किए हैं। जिससे पता चलता है कि भाषाओं का ज्ञान उन्हें वरदान की तरह मिला हुआ था। खुसरो की विद्वता से साधु-संत तक प्रभावित थे। मुस्लिम होने के नाते जितना सम्मान उन्होंने उर्दू और फारसी को दिया, उससे ज्यादा हिंदी को दिया। खुसरो ने हिंदी छंद की रचना की, जिसमें खड़ी बोली का इस्तेमाल किया। यह अलग बात है कि छंदों में ब्रज भाषा की छाप भी देखने को मिलती है, जैसे--गोरी सोबे सेज पे, मुख पर डारे केस, चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुं देस। और छाप-तिलक सब छीनी मोसे नैना मिलाए के...।

आठ हाथ हैं उस नारी के सूरत उसकी लगे परी

खुसरो ने खड़ी बोली में भी कविताएं लिखीं- जब यार देखा नयन भर, दिल की गई चिंता उतर...। हिंदी में उन्होंने कई मुकरियां लिखीं- अनार क्यों न चखा, बजीर क्यों न रखा? इनमें सवाल छिपे हुए थे। खुसरो की यह खूबी थी कि वे कहीं भी खड़े होकर पहेलियां रच देते थे, जैसे- घूमेला लहंगा पहिने एक पांव से रहे खड़ी, आठ हाथ हैं उस नारी के सूरत उसकी लगे परी। इस पहेली का अर्थ 'छाता' है। पूरी तरह हिन्दुस्तान और हिंदी (हिंदवी) के रंग में रंगे इस कवि ने 45 कृतियों की रचना की हैं, किंतु आज उनकी गद्य और पद्य की कुल 28 पुस्तकें ही उपलब्ध हैं।

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