हमने सुना है : नेताजी अप्रैल फूल बनाकर फंसे

पहली अप्रैल हो और अप्रैल फूल के मैसेज न आएं ये कैसे हो सकता है। लॉकडाउन में भी ऐसा ही हुआ। बस मैसेज भेजने वाले लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के भ्रामक संदेश भेजने की भूल कर बैठे।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Thu, 02 Apr 2020 02:00 PM (IST) Updated:Thu, 02 Apr 2020 05:58 PM (IST)
हमने सुना है : नेताजी अप्रैल फूल बनाकर फंसे
हमने सुना है : नेताजी अप्रैल फूल बनाकर फंसे

बरेली, अभिषेक जय मिश्र। पहली अप्रैल हो और अप्रैल फूल के मैसेज न आएं, ये कैसे हो सकता है। लॉकडाउन में भी ऐसा ही हुआ। बस मैसेज भेजने वाले लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के भ्रामक संदेश भेजने की भूल कर बैठे। इस फेहरिस्त में भाजपा की महानगर कमेटी के पदाधिकारी भी शामिल थे। उन्होंने संजीदगी के मुद्दे में हास्य का पुट देने की कोशिश की, लेकिन वाट्सएप ग्रुपों पर अलोचना के साथ किसी ने बड़े नेताओं तक मामला पहुंचा दिया। संवेदनशीलता के बीच नेताजी को भी भूल का एहसास हुआ। आनन-फानन में कुछ वाट्सएप ग्रुपों से मैसेज हटा भी लिया गया। महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल फूल डे पर सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस और लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने को लेकर भेजे जाने वाले संदेशों को भ्रामक सूचना देने वाला करार देकर छह महीने की सजा और जुर्माना लगाने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद से बाकी राज्यों में भी सख्ती कर दी गई है।

कोरोना संदिग्ध मरीजों की सूचनाएं बनीं फुटबाल :

कलेक्ट्रेट, जिला अस्पताल और पुलिस। यही तीन मुख्य हेल्पलाइन ऐसी है, जिस पर कोरोना के संदेह में आए लोगों की सूचना से लेकर शहर की रोजमर्रा की जरूरतों के बारे में लोग बता रहे हैं। इनमें सबसे संवेदनशील सूचना विदेश और दूसरे राज्यों से आए प्रवासियों की है। कई सूचनाओं को हेल्पलाइन पर बैठे स्टाफ संजीदगी से नहीं ले रहे हैं। गेंद को एक पाले से दूसरे पाले में फेंकने की ज्यादा कोशिश की जा रही है। नोएडा, जयपुर, चंडीगढ़ से बरेली आए लोगों की जानकारी देने वालों को कलेक्ट्रेट की हेल्पलाइन से जिला अस्पताल की हेल्पलाइन का नंबर थमा दिया जाता है। अस्पताल से पुलिस की 112 हेल्पलाइन के बारे में बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। ऐसे में सूचना देने वाला परेशान होता है। व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है। क्योंकि यही सूचनाएं संक्रमण रोकने के लिए लोगों को उनके घरों में क्वारंटाइन करने में मददगार साबित होंगी।

खाना बांटने के लिए बाइक का पास चाहिए:

लॉकडाउन में कलेक्ट्रेट के अफसरों तक पास बनवाने की दरख्वास्त पहुंचना सामान्य है। लेकिन सिटी मजिस्ट्रेट से लेकर डीएम तक ऐसी दरख्वास्त से परेशान हैं, जिसमें जरूरतमंदों को खाना बंटवाने के लिए लोग दो से तीन बाइक को लॉकडाउन में चलाने की अनुमति मांग रहे हैं। चार से पांच दिनों में लगातार ऐसे लोगों का जमावड़ा कलेक्ट्रेट में लगता है। समय की नजाकत देखते हुए अधिकारी भी ऐसे लोगों को समझाकर वापस भेजते हैं। जिम्मेदारी नागरिकों को भी समझनी चाहिए कि लॉकडाउन में घरों में रहना ही समझदारी है। लेकिन सिर्फ घरों से निकलने के लिए खाना बंटवाने और समाजसेवा की आड़ ली जा रही है। कई मामले ऐसे भी आए, जिसमें कलेक्ट्रेट पहुंचे लोगों ने अधिकारियों से कुतर्क तक किए। प्रशासन बाइक पर पास पहले से ही जारी नहीं कर रहा है। अब बाइक पर बेवजह आवश्यक वस्तु आपूर्ति लिखकर चलने वालों की भी जांच शुरू करवा दी गई है।

गठजोड़ तो बैठा ही लें :

पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुटे ब्लॉकस्तर के नेता लॉकडाउन में भी आगामी चुनाव की जोड़तोड़ बैठाने की जुगत घर से ही लगा रहे हैं। उन्हें दो से तीन महीने का अतिरिक्त समय जो मिला है। अक्टूबर-नवंबर में प्रस्तावित पंचायत चुनाव के लिए अप्रैल माह मेंमतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम भी शुरू नहीं हो सका है। राज्य निर्वाचन आयोग ने मार्च से ही मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की योजना बनाई थी। पर अब मतदाता सूची के पुनरीक्षण के लिए लॉकडाउन खुलने का इंतजार करना होगा। बिथरीचैनपुर, नवाबगंज, फरीदपुर, आंवला के पंचायती राज चुनाव में जोर लगाने के इच्छुक नेता फोन पर ही कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं। हालांकि नेता जी भी समझ रहे हैं कि दो महीने लगेंगे मतदाता सूची पुनरीक्षण में, इसके बाद क्षेत्र और जिला पंचायतों के वाडरे व प्रमुखों की सीटों का आरक्षण निर्धारित करने के लिए लॉटरी होगी। आयोग को करीब चार महीने लगेंगे। 

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