बरेली में कथक नृत्यांगना बोली- इंटरननेट मीडिया से घट रही युवाओं में सृजन की क्षमता

कला एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति के अंदर संवेदना लाती है। यह भारतीय संस्कृति से जुड़ने का माध्यम है। कला कोई धर्म नहीं है। सुर लय और नृत्य से दर्शकों को आकर्षित कर लेना ही कला है। कला सृजन करने की क्षमता बढ़ाता है।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Tue, 09 Feb 2021 11:56 AM (IST) Updated:Tue, 09 Feb 2021 11:56 AM (IST)
बरेली में कथक नृत्यांगना बोली- इंटरननेट मीडिया से घट रही युवाओं में सृजन की क्षमता
बरेली में कथक नृत्यांगना बोली- इंटरननेट मीडिया से घट रही युवाओं में सृजन की क्षमता

बरेली, जेएनएन। कला एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति के अंदर संवेदना लाती है। यह भारतीय संस्कृति से जुड़ने का माध्यम है। कला कोई धर्म नहीं है। सुर, लय और नृत्य से दर्शकों को आकर्षित कर लेना ही कला है। कला सृजन करने की क्षमता बढ़ाता है। लेकिन आज के युवा इंटरनेट मीडिया में व्यस्त हैं। इसीलिए उनका ध्यान चीजों को कॉपी करने पर है। खुद सृजन करने पर नहीं है।

एसआरएमएस इंजीनियर कालेज के 20वें दीक्षा समारेाह में आईं अंर्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्यागंना नलिनी और कमलिनी ने उक्त बातें कहीं। दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान उन्होंने कहाकि कोई भी कलाकार एक घंटे के कार्यक्रम के लिए तीन घंटे प्रैक्टिस करता है। उस दौरान वह अपने नृत्य में कुछ न कुछ नया सृजन करने का प्रयास करता है।

कथक करने के दौरान ध्यान घुंघरू पर होता है, उसकी खनक के साथ पैर थाप करते हैं। कथक केंद्र की सलाहकार समिति की अध्यक्ष कमिलनी अस्थाना ने कहा कि जब युवाओं के फैलोशिप के प्रोजेक्ट देखते हैं तो मन दुखी होता है। प्रोजेक्ट में उनका बनाया हुआ कम जबकि किसी अन्य की सोच ज्यादा दिखाई देती है। इसकी बड़ी वजह है कि आज के युवा भारतीय संस्कृति से सीधा जुड़ाव न होना है।

विदेश के बच्चे भारत आकर शास्त्रीय संगीत, कथक, कुचीपुड़ि सीखने का इच्छा जाहिर करते हैं। इस दौरान उनके साथ उनके गुरु जितेंद्र महाराज कथक शिरोमणी बनारस घराना भी मौजूद रहे। बताया कि नृत्य योग की तरह है। इसकी मुद्राओं से एकाग्रता और पैरों की थााप से एक्यूप्रेशर के प्वाइंट एक्टिव होते है। शास्त्रीय नृत्य कई मायनों में उपयोगी है। कहा कि भारतीय संस्कृति से युवाओं को जोड़ने का प्रयास जारी है।

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