Jagran Column छात्रों का इंतजार कर रही लाइब्रेरी Bareilly News

लाइब्रेरियन की नियुक्ति कर दी गई और किताबें कंप्यूटर लैपटॉप भी खरीद लिए गए। तभी से यह कक्ष छात्रों का इंतजार कर रहा है।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Wed, 29 Jan 2020 04:00 AM (IST) Updated:Wed, 29 Jan 2020 05:39 PM (IST)
Jagran Column छात्रों का इंतजार कर रही लाइब्रेरी Bareilly News
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अशोक कुमार अार्य, बरेली : दो साल पहले की बात है। एक उम्मीद जगी, विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर होगी और मरीजों को इलाज मिल सकेगा। शासन ने प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों को विशेषज्ञ बनाने का जिम्मा दिया गया, जिसमें अपना जिला अस्पताल एकमात्र अस्पताल था। यहां भी एमबीबीएस के बाद छात्र डीएनबी (डिप्लोमेट ऑफ नेशनल बोर्ड) कर सकेंगे। तैयारी शुरू हुई तो चार विषयों पर कोर्स कराने की अनुमति मिल गई। नेत्र रोग विशेषज्ञ, मेडिसिन, हड्डी रोग विशेषज्ञ और सर्जरी के छात्रों का इंतजार होने लगा। तैयारी इस कदर हुई कि एक निजी मेडिकल कॉलेज से उनकी प्रयोगशाला के इस्तेमाल को अनुबंध हुआ। साल भर पहले दो लाख रुपये खर्च कर ई-लाइब्रेरी व लर्निंग रूम बना दिया गया। इतना ही नहीं लाइब्रेरियन की नियुक्ति भी कर दी गई और किताबें, कंप्यूटर, लैपटॉप भी खरीद लिए गए। तभी से यह कक्ष छात्रों का इंतजार कर रहा है। किताबें और अन्य सामग्री धूल फांक रही हैैं।

मशीनें भेजी, भर्ती को ना

पुरानी कहावत है, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। यह जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड के लिए सटीक साबित हो रही है। 29 बेड का वार्ड, हमेशा मरीजों से भरा रहता था। अब नजारा कुछ और है। वार्ड में घुसते ही जहां बेड पर गंभीर मरीज भर्ती मिलते थे, वहां दो महीने से बेड खाली हैैं। यह हकीकत है कि टीकाकरण से बच्चों में विंटर डायरिया, निमोनिया समेत बीमारियों में कमी आई। फिर भी वार्ड में मात्र एक या दो मरीज भर्ती होना चौकाने वाला है। पता चला कि अब गंभीर मरीज वार्ड में भर्ती होते ही नहीं। महिला अस्पताल में सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) बनने के बाद छोटे बच्चों को वहां भेज दिया जाता है। बड़े बच्चे आए तो सीधे हायर सेंटर रेफर कर देते हैैं। तीन रेडिएंट वार्मर मिले थे, जिन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेज दिया गया। ऐसा करके आंकड़ा कम किया जा रहा है।

साहब ने चलाया, अवार्ड पाया

सौ बेड से अधिक का अस्पताल और रोजाना सैकड़ों मरीजों की आवाजाही। उस पर अस्पताल को व्यवस्थित करने की भागदौड़। बड़ी जिम्मेदारी है मैडम के कंधों पर। कभी डॉक्टर नहीं आए तो खुद ही ओपीडी में बैठ गई तो कभी अपनी सीट पर बैठकर मरीज देख लिए। कभी मरीज के छत से कूद जाने का डर तो कभी होने वाले निरीक्षणों की चिंता। बावजूद इसके यहां-वहां बिखरी व्यवस्थाएं। व्यवस्थाओं को मुकम्मल करने की उधेड़बुन में दौड़ते-भागते पूरा साल गुजर गया। तमाम मुश्किलों के बावजूद प्रदेश का बड़ा अवार्ड हासिल कर ही लिया। अब हकीकत भी सुनिए। मैडम के पीछे उनके साहब जो लगे हैैं। साहब की तैनाती जिले से बाहर जरूर है, लेकिन हर कदम वो मैडम के साथ है। उन्होंने जिस रास्ते चलाया मैडम आगे चलती गई। तमाम छोटे-बड़े फैसले उन्हीं के इशारे पर मैडम लेती हैैं। यही कारण है कि पहले ही प्रयास में उन्हें अवार्ड मिल गया।

शुक्र है... वापसी होगी जल्द

स्वास्थ्य विभाग में बड़ी राहत की खबर है। जल्दी प्रदेश भर में साढ़े पांच सौ से अधिक दंत रोग विशेषज्ञ की तैनाती हो जाएगी। नई प्रक्रिया के तहत जिलों के चयन के लिए काउंसिलिंग हो रही है। इससे जल्द सरकारी अस्पतालों में खाली पद भरें जाएंगे। इस खबर से जहां मरीजों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, वही कई डॉक्टरों के चेहरे इस बात से खिल गए हैैं कि उन्हें भी अब घर वापसी मिलेगी। दरअसल, डॉक्टरों की कमी के चलते कई डॉक्टरों को दूसरे जिलों से अटैच कर दिया गया। अपने जिले में भी एक डेंटिस्ट बाहर से आते हैैं। करीब साल भर पहले अस्पताल के निरीक्षण को आए प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डी ने दंत रोग विशेषज्ञ के नहीं होने पर पड़ोसी जिले से लेने के निर्देश दिए थे। इस पर उन्हें यहां अटैच कर दिया गया। अब कहते हैैं, शुक्र है... साल भर बाद घर वापसी होगी।

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