गौरैया बचाएं, आंगन की खुशियां लौटाएं

बरेली (जेएनएन)। जिस आंगन में नन्ही गौरेया की चहलकदमी होती थी, उस घर के लोगों की नींद भ

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Mar 2018 10:24 AM (IST) Updated:Tue, 20 Mar 2018 10:24 AM (IST)
गौरैया बचाएं, आंगन की खुशियां लौटाएं
गौरैया बचाएं, आंगन की खुशियां लौटाएं

बरेली (जेएनएन)। जिस आंगन में नन्ही गौरेया की चहलकदमी होती थी, उस घर के लोगों की नींद भी गोरेया की चहचहाहट से खुलती थी। आज वह आंगन सूने पड़े हैं। आज आधुनिक मकान, बढ़ता प्रदूषण और जीवन शैली में आए बदलाव से गोरेया लुप्त हो रही है। वर्तमान स्थिति का आलम यह है कि खोजने पर भी गोरेया नहीं दिखाई देती। मुंबई स्थित प्राकृतिक विज्ञान केंद्र और कोयंबटूर के सलीम अली पक्षी विज्ञान केंद्र ने अपने अध्ययन में भी गोरेया के तेजी से घटने की बात कही है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मान रहा है कि गोरेया तेजी से घट रही हैं। लेकिन इसे बचाने के सरकारी प्रयास न के बराबर हैं। ऐसे में कुछ बानगी देखते हुए गोरेया बचाने के कारण जानकर हम आगे बढ़ सकते हैं। जिससे गौरेया की चहचहाहट बरकरार रहे।

ऊंची इमारतें कबूतरों के लिए मुफीद, गौरेया के लिए खतरनाक

शोध में सामने आया है कि शहरों की ऊंची इमारतें कबूतरों के लिए मुफीद और गोरेया के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। कारण कबूतरों को आश्रय के लिए ऊंची इमारत पसंद हैं। वहीं गोरेया निचले हिस्से में रहना पसंद करती हैं। इसके साथ ही मोबाइल रेडिएशन भी गोरेया की मौत कारण बन ही रहे हैं।

बदली शैली भी दुश्मन

पहले इंसान जहां गेहूं आदि अनाज को धूप में सुखाकर फिर पिसवाता था। अब शहरीकरण ने इसकी जगह पर पैकेटबंद आटे को दे दी है। इससे उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा धीरे-धीरे कम हो रही हरियाली भी गोरेया की दुश्मन बनी है। ऐसे में हमें गोरेया को बचाने के लिए अपने रहन-सहन में बदलाव करना होगा।

गौरेया बचाने के लिए मिथलेश जुटी हैं जी-जान से

आंवला निवासी मिथिलेश कुमारी ने अपने जीवन में गोरेया बचाने के लिए काफी जद्दोजहद की है। वर्ष 2009 से गोरेया बचाने में जुटीं मिथलेश ने गोरेया बचाने की ठानी। कुछ ही समय में मिथलेश के घर पर ही गोरेया ने अपना बसेरा बना लिया। यह सिलसिला सालों से चल रहा।

बिना पिंजरे के पप्पू ने पाली गोरेया

ईट पजाया मुहल्ला निवासी पप्पू की पहचान पक्षी प्रेमी के रूप में है। उनके छोटे से आशियाने में सैकड़ों परिवार रहते हैं। ये परिवार हैं पक्षियों के। बिना पिंजरे के कई गोरेया का बसेरा होने के साथ ही उनके घर अन्य पक्षी भी हैं। बड़े होकर ये उड़ जाते हैं लेकिन आते फिर से अपने पप्पू के पास ही हैं।

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