Lockdown in Bareilly : घर में बसी अयोध्या नगरी, मन में रामायण

टीवी पर रोजाना आने वाली रामायण ने इन दिनों बच्चों को राम के चरित्र के करीब पहुंचा दिया शुद्ध हिंदी से रूबरू कराना शुरू करा दिया।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Tue, 07 Apr 2020 08:07 AM (IST) Updated:Tue, 07 Apr 2020 05:44 PM (IST)
Lockdown in Bareilly : घर में बसी अयोध्या नगरी, मन में रामायण
Lockdown in Bareilly : घर में बसी अयोध्या नगरी, मन में रामायण

बरेली, शशांक अग्रवाल। 'हे भरत! मैं पिता की आज्ञा को नहीं टाल सकता। मुझे वन जाना ही होगा।...भ्राताश्री मुझे अपनी चरण पादुका दे दीजिए। रामायण के यह संवाद सामान्य हैं। सामान्य तौर पर आपने सुने भी होंगे। कभी रामलीला मंचन के दौरान तो कभी थियेटर में। मगर...मौजूदा तस्वीर इससे थोड़ी अलग है। ये संवाद किसी नाटक, रामलीला या थियेटर के कलाकार नहीं बोले रहे, बल्कि परिवार में खेल रहे बच्चों के हैं। वे हिंदी के बेहद करीब पहुंच रहे, संस्कृत को पास से जानने की कोशिश कर रहे।

ऐसे दृश्य कहां से बनने शुरू हुए, कहां से इनका सृजन हुआ... यह भी जान लीजिए। टीवी पर रोजाना आने वाली रामायण ने इन बच्चों को राम के चरित्र के करीब पहुंचा दिया, शुद्ध हिंदी से रूबरू कराना शुरू करा दिया। ये धारावाहिक की हर कड़ी देखते हैं। उत्सुकता और रोमांच उनके खेल में शामिल हो जाता है, जिसमें रामायण के पात्रों का चित्रण करने लगते हैं।

किला के पंजाबपुरा निवासी श्रीनाथ अग्रवाल के परिवार की बात सुनेंगे तो इसे और बेहतर समझ सकेंगे। वह बताते हैं कि सुबह नौ बजे पूरा घर रामायण देखने के लिए टीवी के सामने बैठ जाता है। वहां संवाद होते हैं, सामने बैठे बच्चे बिट्ठल, वात्सल्य, सांग्वी, नियति बड़े गौर से सुनते हैं। प्रसारण के वक्त ही खुद उन संवाद का अभ्यास करने लगते हैं। बाद में श्री रामचरित मानस में उन संवाद को तलाशते हैं। इसके बाद खाली दोपहरी भर बच्चे खेल -खेल में रामायण का मंचन करते हैं। कभी भूलते हैं, कभी अटकते हैं, मगर बोलते जाते हैं। अब तो उन्होंने धनुष वाण भी बना लिया है।

फर्राटेदार अंग्रेजी के बाद शुद्ध हिंदी का ज्ञान

बिट्ठल सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं, वात्सल्य कक्षा पांच में पढ़ते हैं। स्कूल में अंग्रेजी पर जोर दिया जाता है इसलिए भाषा पर खासी पकड़ है। अंग्रेजी शब्दों का अधिकतम इस्तेमाल करने वाले बच्चे शुद्ध हिंदी बोल रहे। खेल-खेल में ही सही, कभी मां को माताश्री तो कभी पिता को पिताश्री बोलते हैं। भाई को भ्राताश्री बोलने में उनकी शरारत दिखती है मगर ये शब्द उन्हें हिंदी के और करीब ले जा रहे। यह देखकर श्रीनाथ संतोष जताते हुए कहते हैं कि धारावाहिक के जरिये ही सही, बच्चे रामायण के बारे में और करीब से जान रहे। खेल-खेल में ही सही, वे हिंदी और संस्कृत के करीब पहुंच रहे, इस पर खुशी है। हंसते हुए कहते हैं, पूरी दोपहर मानो मेरा घर अयोध्या नगरी बन जाता है और ये बच्चे रामायण के पात्र। 

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