चुनौतियों से जूझने का माद्दा रखते थे रफी अहमद किदवई

देश की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले रफी अहमद किदवई ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वह चुनौतियों से लड़ने और कठोर निर्णय लेने में कभी पीछे नहीं हटे। उन्होंने कानून की पढ़ाई की दौरान ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 17 Feb 2021 11:05 PM (IST) Updated:Wed, 17 Feb 2021 11:05 PM (IST)
चुनौतियों से जूझने का माद्दा रखते थे रफी अहमद किदवई
चुनौतियों से जूझने का माद्दा रखते थे रफी अहमद किदवई

बाराबंकी : देश की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले रफी अहमद किदवई ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वह चुनौतियों से लड़ने और कठोर निर्णय लेने में कभी पीछे नहीं हटे। उन्होंने कानून की पढ़ाई की दौरान ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे। तभी तो वर्ष 1920-21गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में शामिल के लिए कानून की परीक्षा के ऐन मौके पर सहपाठियों संग किया था एएमओ कालेज का बहिष्कार कर दिया था। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। जमींदार खानदान में जन्मे, उठाई किसानों की आवाज:

18 फरवरी 1894 को बाराबंकी के मसौली में जमींदार इम्तियाज अली के परिवार में रफी अहमद किदवई का जन्म हुआ था। इसके बावजूद उन्होंने गरीबों, किसानों और मजलूमों की आवाज उठाने का काम किया। वर्ष 1931 मानवेंद्रनाथ राय से परामर्श के बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के साथ इलाहाबाद और समीपवर्ती जिलों के किसानों के मध्य कार्य करना प्रारंभ किया। जमींदारों द्वारा किए जा रहे उनके दोहन और शोषण की समाप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील रहे। कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी का किया विरोध:

रफी अहमद किदवई अपनी बात के धनी थे और संकल्प को हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते थे। उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में वरिष्ठ पद पर रहकर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी पट्टाभि सीतारमैया के विरुद्ध सुभाषचंद्र बोस को खुला समर्थन दिया। इसमें बोस विजयी हुए थे। वर्ष 1949 में उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रत्याशी पुरुषोत्मदास टंडन के विरुद्ध डा. सीतारमैया का समर्थन किया। इसमें टंडन पराजित हुए थे।

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