जान है तो जहान है..अभी रहेंगे क्वारंटाइन

युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उनकी बात मानते हुए उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 May 2020 11:18 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 06:04 AM (IST)
जान है तो जहान है..अभी रहेंगे क्वारंटाइन
जान है तो जहान है..अभी रहेंगे क्वारंटाइन

बाराबंकी : सतर्कता ही कोरोना से बचाव का मजबूत अस्त्र है। इस मंत्र को शहरी क्षेत्र ही नहीं गांव और गैर प्रांतों में काम करने वाले प्रवासी श्रमिक भी भली-भांति समझ रहे हैं। इस जागरूकता का असर उनके कार्य-व्यवहार में भी देखने को मिल रहा है। तभी तो बेलहरा नगर पंचायत के भटुवामऊ के रहने वाले सुशील कुमार सैनी, गौरव सैनी, मो. रेहान, मो. हसीब, मो. अनस, शान वारिस, रिकू, दिलीप, रोहित, मो. सलीम, मो. आसिफ, मो. तौसीफ आदि युवाओं ने महाराष्ट्र से लौटने पर जांच के बाद घरों के बजाय इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन सेंटर की ओर रुख किया है। इनका कहना है कि कोरोना को रोकने के लिए संक्रमण की चेन ब्रेक करनी है। ऐसे में हम लोग खुद को क्वारंटाइन कर परिवार और समाज की सुरक्षा करना चाहते हैं।

ये सभी महाराष्ट्र के मुबंई में रेडीमेड कारखाने में कार्य करते हैं। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद होने के बाद पैसे-रुपये और राशन खत्म होने के बाद इन लोगों ने गांव लौटने का निश्चय किया। दुश्वारियां झेलते हुए बीस मई को गांव पहुंचे और चेयरमैन प्रतिनिधि अयाज खान को फोन किया। इस पर पुलिस और डॉक्टरों की टीम पहुंची और थर्मल स्क्रीनिग करने के बाद कोरोना के लक्षण न मिलने पर घर पर ही क्वारंटाइन रहने को कहा। लेकिन, परिवारजन और गांव वालों की सुरक्षा के लिए इन युवाओं ने गांव जाने के बजाय क्वारंटाइन सेंटर जाने का फैसला किया। युवाओं की जिद के आगे प्रशासन ने भी उन्हें इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कराया। युवाओं का कहना है कि जान है तो जहान है, पर अभी क्वारंटाइन ही रहेंगे। खास बात है कि यह सभी क्वारंटाइन सेंटर में शारीरिक दूरी और मॉस्क आदि लगाकर रह रहे हैं। साथ काम-साथ क्वारंटाइन

अलग-अलग समुदाय से जुड़े ये युवा मुंबई में एक ही फैक्ट्री में काम करते थे। सभी न सिर्फ साथ आए बल्कि अब एक साथ क्वारंटाइन भी हैं। मो. रेहान और सुधीर सैनी का कहना है कि हम इंसानियत में विश्वास रखते हैं।

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