अनियंत्रित विकास, भोगवादी प्रवृत्ति तथा शोषणपरक नीति ने बढ़ाया जल संकट

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By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Mar 2019 06:09 PM (IST) Updated:Fri, 22 Mar 2019 06:09 PM (IST)
अनियंत्रित विकास, भोगवादी प्रवृत्ति तथा  शोषणपरक नीति ने बढ़ाया जल संकट
अनियंत्रित विकास, भोगवादी प्रवृत्ति तथा शोषणपरक नीति ने बढ़ाया जल संकट

जागरण संवाददाता, बलिया: वर्तमान जल संकट मानव की भोगवादी प्रवृत्ति, विलासिता पूर्ण जीवन, अनियोजित तथा अनियंत्रित विकास एवं जल की शोषणपरक नीति की देन है। जल स्त्रोतों के अनियोजित एवं अनियंत्रित उपयोग के चलते एक तरफ जहां जल की बर्बादी से जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है। वहीं दूसरी तरफ जल प्रदूषण में भी तीव्रगति से वृद्धि होती जा रही है।

जल सृष्टि का आदि तत्व है। जल न केवल जीवन को धारण करता है, बल्कि स्वयं जीवन प्राण है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जल को देवता मानकर वरूण देवो भव कहा गया है और जल स्त्रोतों की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु पूजा का विधान बनाया गया है। हमारी पृथ्वी पर जो जल विद्यमान है, उसमें से मात्र 0.8 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। शेष 97.4 प्रतिशत जल खारा जल के रूप में समुद्रों में एवं 1.8 प्रतिशत जल ध्रुवों पर बर्फ के रूप में विद्यमान है। प्रकृति में विद्यमान 1.5 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल में से मात्र 12500 से 19000 बिलियन लीटर जल ही प्रतिवर्ष मानवीय उपयोग हेतु उपलब्ध है। इस तरह एक तिहाई जनसंख्या शुद्ध जल से वंचित है और 2025 तक कुल 48 देशों की 2.4 बिलियन जनसंख्या तथा 2050 तक 54 देशों की 4 बिलियन जनसंख्या को पेयजल संकट का सामना करना पड़ेगा, जो कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत होगा। यदि वर्तमान जल संकट को देखा जाय तो विश्व की 1.1 बिलियन जनसंख्या को पर्याप्त जल आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इस तरह विश्व के प्रत्येक 6 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति जल संकट स जूझ रहा है।

यदि भारत के संदर्भ में जल उपलब्धता को देखा जाय तो सन 1947 में 40 करोड़ जनसंख्या के लिए 5000 घनमीटर जल प्रति व्यक्ति उपलब्ध था, जबकि सन 2000 में 100 करोड़ जनसंख्या के लिए जल उपलब्धता घटकर 2000 घनमीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष हो गई। एक अनुमान के अनुसार 2025 में 139 करोड़ जनसंख्या के लिए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष मात्र 1500 घनमीटर जल उपलब्ध होगा, जबकि 2050 में 160 करोड़ जनसंख्या के लिए मात्र 1000 घनमीटर जल प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष उपलब्ध होगा, जो घोर जल संकट की तरफ इंगित करता है।

पूर्वांचल में तेजी से खिसकता जा रहा जलस्तर

बलिया सहित पूर्वांचल के सभी जनपदों में धरातलीय जल स्त्रोत सूखते जा रहे हैं एवं भूमिगत जल स्तर नीचे खिसकता जा रहा है, जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। बलिया जनपद में वर्षा पूर्व का जलस्तर औसतन 7 मीटर है, जबकि वर्षा पश्चात जल स्तर 4.5 मीटर प्राप्त होता है। चंदौली जिला के मैदानी क्षेत्रों में 10 से 15 फीट एवं पहाड़ी क्षेत्रों में 18-20 फीट जल स्तर रहा है। गाजीपुर में प्रतिवर्ष 20 सेंटीमीटर जल स्तर खिसक रहा है। जौनपर के 11 विकासखण्ड डार्क जोन में हैं। मिर्जापुर के पठारी क्षेत्रों में 90 सेंटीमीटर तक जलस्तर खिसक गया है। सोनभद्र में प्रतिवर्ष 2 से 4 फीट तक जलस्तर खिसक रहा है, जबकि आजमगढ़ में प्रति वर्ष 20 सेंटीमीटर जल स्तर खिसक रहा है। भदोही में गर्मी के दिनों में 3 मीटर जलस्तर नीचे चला जाता है। जल संकट हमारे लिए गंभीर चुनौती है और आगे आने वाले वर्षों में यह चुनौती और गंभीर रूप धारण कर लेगी तथा स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल विवाद उत्पन्न होंगे, जिसकी शुरूआत हो भी चुकी है।

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जीवनदायिनी जल को नहीं बचाया गया तो न केवल मानव जगत, बल्कि जीव- जंतु जगत एवं पादप जगत का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा, बल्कि पृथ्वी के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगेगा, क्योंकि जल पुरूष राजेंन्द्र सिंह के शब्दों में जल ही पर्यावरण है और पर्यावरण ही जल है। जब जल स्वस्थ रहता है तो पृथ्वी स्वस्थ रहती है। कहा कि यदि हमें पृथ्वी को बचाना है और सभी जीवधारियों तथा वनस्पतियों के अस्तित्व को बचाना है तो हम जहां हैं, वहीं से जल को बचाना होगा एवं जल संरक्षण की बात सोचनी होगी। हमें भारतीय संस्कृति एवं परम्परा को पुनर्जीवित कर उसके माध्यम से जल को सुरक्षित, संरक्षित, चीरकाल तक उपयोगी एवं प्रदूषण मुक्त करना होगा। अत: हमें जल की बचत प्रक्रिया, बर्बादी को रोकना, विकल्प की खोज, संचयन, सुरक्षित उपयोग, गुणवत्ता में वृद्धि, प्रदूषण से बचाव, वर्षा जल संचयन तथा जलापूर्ति की संचयित एवं सुरक्षित प्रक्रिया को अपनाना होगा और इसके लिए जनजागरूकता एवं जनसहभागिता अति आवश्यक है।

-डा. गणेश कुमार पाठक, भूगोल विभागाध्यक्ष एवं पर्यावरणविद्, बलिया।

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