अमरोहा में दीपदान की परंपरा है महाभारत काल जितनी पुरानी, जानिए क्या है खास Amroha News

पितरों की शांति के लिए गंगा तटों पर दीप जलाना और दान करना। यह रस्म महाभारत काल जितनी पुरानी है।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Mon, 11 Nov 2019 10:01 AM (IST) Updated:Mon, 11 Nov 2019 10:10 AM (IST)
अमरोहा में दीपदान की परंपरा है महाभारत काल जितनी पुरानी, जानिए क्या है खास  Amroha News
अमरोहा में दीपदान की परंपरा है महाभारत काल जितनी पुरानी, जानिए क्या है खास Amroha News

गजरौला (राजेश राज)। दीपदान यानी पितरों की शांति के लिए गंगा तटों पर दीप जलाना और दान करना। यह रस्म और परंपरा कोई नई नहीं है, बल्कि महाभारत काल जितनी पुरानी है। महाभारत काल में युद्ध के समय कौरव सेना और कुटुम्ब संबंधियों के मारे जाने के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण की मौजूदगी में दीपदान किया था। तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे लोग आज भी निभा रहे हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर गंगा तट पर दीपदान करने से दिवंगत आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की चुतुर्थदशी की शाम दीपदान किया जाता है। 12 नवंबर यानी मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा है, इसलिए दीपदान 11 नवंबर यानी सोमवार को होगा। तिगरीधाम, गढ़मुक्तेश्वर मेले के साथ ब्रजघाट में गंगा घाटों पर दीपदान के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। इस धार्मिक अनुष्ठान के लिए सूर्यास्त के समय वे श्रद्धालु आएंगे, जिनके परिवार के सदस्य उनके बीच अब नहीं रहे। दीपदान उन्हीं दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए संबंधित परिवार के लोग करते हैं। ऐसे में उनकी आंखे भी भर आती हैं। इस परंपरा के निर्वहन के वक्त गंगा घाट ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे आकाश के तारे धरती पर उतर आए हों। अखिल भारतीय जूना अखाड़े के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी कर्णपुरी महाराज इस मान्यता के बारे में बतातें है कि द्वापर युग में कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरव सेना व पांडवों के कुटुंब संबंधियों के शव पड़े थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी दिवंगत आत्माओं की शांति का मार्ग पांडवों को बताया था। तब पांडव भगवान कृष्ण के साथ गंगा तट पर पहुंचे थे और दीपदान किया था। उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की चुतुर्थदशी की पूर्व संध्या थी। तब से शुरू हुई यह परंपरा बदस्तूर जारी है। उधर, ब्रह्मवृत पुराण में उल्लेख है कि संकट के क्षणों में शरीर त्यागने वाली आत्माओं को शांति नहीं मिलती है, चूंकि प्राण हरता यमराज संकट के क्षण पूर्ण होने तक उन्हें प्रेत योनि में धकेल देता है, जिस कारण आत्माएं भटकती रहती हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चुतुर्थदशी को यमराज पतित पावनी गंगा मैया के तट पर निवास करते हैं। यदि इस दिन कोई प्राणी पवित्र गंगा तट पर दीपदान करें तो यमराज उनके पूर्वजों की आत्माओं को शांति व मुक्ति प्रदान करता है, इसलिए दीपदान किया जाता है। बहरहाल यह मौका इस बार 11 नवंबर यानी आज सोमवार को है।

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