आंधियों में भी उम्मीदों का दीया जलता है..

कोरोना काल में अंतिम संस्कार भी बड़ी चुनौती है। संक्रमण न फैले इसे लेकर भी सक्रियता बरती गई। कई परिवार के लोग खुद के घरवालों के अंतिम संस्कार से बचते भी नजर आते हैं लेकिन फाफामऊ स्थित श्मशान घाट पर प्रतिदिन मौजूद रहने वाले सोनू बखूबी भूमिका निभा रहे हैं। पूरे प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार किए किंतु कर्तव्य पर कभी कोरोना हावी नहीं हो सका। यही कहेंगे कि आंधियों में भी उम्मीदों का दीया जलता है..।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Jan 2021 05:03 AM (IST) Updated:Tue, 26 Jan 2021 05:03 AM (IST)
आंधियों में भी उम्मीदों का दीया जलता है..
आंधियों में भी उम्मीदों का दीया जलता है..

राजेंद्र यादव, प्रयागराज : कोरोना काल में अंतिम संस्कार भी बड़ी चुनौती है। संक्रमण न फैले, इसे लेकर भी सक्रियता बरती गई। कई परिवार के लोग खुद के घरवालों के अंतिम संस्कार से बचते भी नजर आते हैं लेकिन फाफामऊ स्थित श्मशान घाट पर प्रतिदिन मौजूद रहने वाले सोनू बखूबी भूमिका निभा रहे हैं। पूरे प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार किए किंतु कर्तव्य पर कभी कोरोना हावी नहीं हो सका। यही कहेंगे कि आंधियों में भी उम्मीदों का दीया जलता है..।

कोरोना से होने वाली मौत के बाद फाफामऊ स्थित श्मशान घाट पर ही अंतिम संस्कार किया जा रहा है। स्वास्थ्य कर्मियों की टीम शव लेकर पहुंचती तो सोनू चिता सजाते। कर्मी शव चिता पर रख देते। परिवार के लोग कुछ दूरी पर मौजूद रहते हैं लेकिन मुखाग्नि के लिए लोग हिचकिचाते तो पूरे प्रोटोकाल का पालन करते हुए सोनू ही मुखाग्नि देते हैं। सोनू बताते हैं कि कोरोना से हुई मौतों के बाद जब शव यहां लाए गए तो जरा भी हिचक नहीं हुई। कभी भयभीत भी नहीं हुए। स्वास्थ्य कर्मियों ने जो नियम बताए उसी के मुताबिक अंतिम संस्कार किए। दाह संस्कार करने के बाद उस जगह की सफाई भी करते हैं। अब तक करीब 150 शवों का अंतिम संस्कार किया है। मेरी कई बार जांच हुई लेकिन मैं संक्रमण मुक्त रहा। चिता सजाने के लिए नहीं मांगे रुपये

फाफामऊ घाट पर उत्तमगिरी चकिया के श्रीधर मिश्र बताते हैं कि मेरी लकड़ी की दुकान है। श्मशान घाट के लिए यहीं से लकड़ी लेकर जाते हैं। सरकारी तौर पर जो मिला, उसी में संतोष है। अब तक दर्जनों अंतिम संस्कार किए गए। बहुत में एक रुपये भी नहीं मिला, लेकिन कभी तगादा नहीं किया क्योंकि यह पुण्य कार्य है।

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