विश्वविद्यालय छात्रसंघ में बढ़ता जा रहा राजनीति का 'रोग'

विश्वविद्यालय छात्रसंघ में तेजी से राजनीतीकरण होता दिख रहा है। जबकि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के तहत छात्रसंघ में राजनीतिक दलों की असंबद्धता का नियम है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 13 Feb 2019 05:50 PM (IST) Updated:Wed, 13 Feb 2019 05:50 PM (IST)
विश्वविद्यालय छात्रसंघ में बढ़ता जा रहा राजनीति का 'रोग'
विश्वविद्यालय छात्रसंघ में बढ़ता जा रहा राजनीति का 'रोग'

प्रयागराज : एक जमाना था कि छात्रसंघ से राजनीति कोसों दूर थी। कोई भी राजनीतिक दल सीधे तौर पर न तो छात्रसंघ चुनावों में और न ही कार्यक्रमों में शामिल होता था। वहीं अब छात्रसंघ में राजनीति का 'रोग' बढ़ गया है। मंगलवार को हुए इविवि छात्रसंघ वार्षिकोत्सव में समाजवादी पार्टी सीधे तौर पर शामिल नजर आ रही थी। मंच भी लखनऊ पार्टी कार्यालय से आया था। मंच के आसपास सपा के पोस्टर और फ्लेक्स भी नजर आ रहे थे। मंच पर सिर पर लाल टोपी सपा के कार्यक्रम का आभास करा रही थी। कार्यक्रम में जिलाध्यक्ष से लेकर पार्टी के कई सांसदों, विधायकों की उपस्थिति छात्र राजनीति की दशा और दिशा साफ दर्शा रही थी।

ऐतिहासिक रहा है इविवि छात्रसंघ

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रसंघ ऐतिहासिक रहा है। यहां की छात्र राजनीति ने शंकर दयाल शर्मा, चंद्रशेखर, जनेश्वर मिश्र, मदनलाल खुराना, बीपी सिंह, एनडी तिवारी, अर्जुन सिंह व मोहन सिंह जैसे नेता दिए। छात्रनेताओं की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहां के छात्र आंदोलन देश की दशा और दिशा तय करते रहे हैं। विगत दो दशकों से यहां की छात्र राजनीति में तेजी से गिरावट दर्ज हुई है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के तहत छात्रसंघ में राजनीतिक दलों की असंबद्धता का नियम है। हालांकि विगत कई छात्रसंघ चुनावों में पार्टियों का सीधे तौर पर दखल रहा है।

विश्वविद्यालयों में पार्टी को नहीं हावी होने देते थे : श्याम कृष्ण

1963 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष श्याम कृष्ण पांडेय कहते हैं कि उस समय छात्रनेता किसी न किसी राजनीतिक दल के सदस्य रहते थे, लेकिन विश्वविद्यालयों में पार्टी को नहीं हावी होने देते थे। पार्टी के कार्यक्रम विश्वविद्यालयों में नहीं होते थे। अब पार्टी के कार्यक्रम विश्वविद्यालयों में होने लगे हैं। वर्तमान में छात्र राजनीति बर्बाद हो चुकी है। कोई विचारधारा नहीं रह गई है। अब छात्रनेता राजनीतिक दलों के मोहरे बनकर रह गए हैं। श्याम कृष्ण पांडेय इसके पीछे राजनीति में आई गिरावट को भी कारण मानते हैं। मंगलवार को छात्रसंघ भवन पर हुआ कार्यक्रम पूरी तरह से एक पार्टी का कार्यक्रम था। छात्रसंघ की विनियमावली में है कि पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष इसके आजीवन सदस्य होते हैं। कोई भी कार्यक्रम होता है तो उनको बुलाया जाता है। इसमें केवल पार्टी के पूर्व अध्यक्षों को बुलाया गया अन्य को छोड़ दिया गया।

उस समय छात्रनेता अपने दमखम पर चुनाव लड़ते थे : विनोद चंद्र

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष विनोद चंद्र दुबे कहते हैं कि उस समय छात्रनेता अपने दमखम पर चुनाव लड़ते थे। किसी राजनीतिक दल का सीधे हस्तक्षेप नहीं होता था। राजनीतिक विचारधाराओं के साथ स्वस्थ परंपरा के साथ चुनाव होते थे। व्यक्तिगत कड़वाहट नहीं, विचारधाराओं की टकराहट होती थी। छात्रसंघ अध्यक्ष होने के बाद पूरे छात्र समुदाय का प्रतिनिधित्व करते थे। अब ऐसा नहीं रह गया है।

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