प्रयागराज में वेबिनार में जुटे विद्वान, रवींद्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व पर चर्चा की

वक्‍ता बोले कि रवींद्र नाथ का व्यक्तित्व अंतर्मुखी था। उन्होंने सदैव ज्ञान के क्षेत्र में मौलिकता एवं रचनात्मक स्वतंत्रता को महत्व दिया। वह रटंत शिक्षा प्रणाली के पक्षधर नहीं थे। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर तीखा व्यंग प्रस्तुत करने वाली उनकी सर्व प्रसिद्ध कहानी तोता के नाट्य का रुपांतर किया गया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 14 Dec 2020 11:43 AM (IST) Updated:Mon, 14 Dec 2020 11:43 AM (IST)
प्रयागराज में वेबिनार में जुटे विद्वान, रवींद्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व पर चर्चा की
वेबिनार में वक्‍ताओं ने रवींद्र नाथ टैगोर के विषय में चर्चा की।

प्रयागराज, जेएनएन। महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर की प्रधानाचार्या सुमिता कानूनगो के निर्देशन में एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें राष्ट्रगान के रचयिता महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर एवं महान शिक्षा शास्त्री अरविंद घोष की शिक्षाओं और जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम का शुभारंभ वंदना गीत से हुआ। इसके बाद भगवत गीता के श्लोकों को पढ़ा गया। 

प्रधानाचार्य ने कहा कि रवींद्र नाथ का व्यक्तित्व अंतर्मुखी था। उन्होंने सदैव ज्ञान के क्षेत्र में मौलिकता एवं रचनात्मक स्वतंत्रता को महत्व दिया। वह रटंत शिक्षा प्रणाली के पक्षधर नहीं थे। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर तीखा व्यंग प्रस्तुत करने वाली उनकी सर्व प्रसिद्ध कहानी तोता के नाट्य का रुपांतर किया गया। कविवर, दार्शनिक, चिंतक रवींद्र नाथ टैगोर व अरविंद घोष के जीवन दर्शन एवं शैक्षिक विचारधारा पर आधारित पीपीटी की भावपूर्ण प्रस्तुति अत्यंत ज्ञानवर्धन रही। 

परिचर्चा में आधुनिक परिप्रेक्ष्य में योग की प्रासंगिता, छात्रों के सर्वांगीण विकास के विभिन्न मानक एवं नई शिक्षा नीति पर बल दिया गया। वहीं शिक्षक सौमित्र गुहा ने अरविंद घोष द्वारा रचित गीत प्रस्तुत कर वातावरण को काव्यमय कर दिया। इसके बाद रवींद्र नाथ टैगोर तथा अरविंद घोष की शैक्षिक विचारधारा पर संवाद सत्र का शुभारंभ हुआ। इसमें कई शिक्षकों ने सवाल किए जिसके वरिष्ठों ने जवाब दिए। समिति की सचिव डॉ. कृष्णा गुप्ता ने कहा कि पतंजलि के शिक्षकों द्वारा ड्रामा, संगीत, अभिनय एवं संवाद के माध्यम से रवींद्र नाथ एवं अरविंद घोष की शैक्षिक विचार धारा को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही वह माध्यम है जहां हम बच्चों को उनकी रुचि के अनुरूप स्वतंत्रता देते हुए उनके व्यक्तित्व को निखार सकते हैं। उन्होंने अरविंद के सात सिद्धांतों की चर्चा की।

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