3D Printed Mask: आपदा में अवसर, मास्क ऐसा; आंख रहेगी सुरक्षित, नहीं फूलेगी सांस

डा. शिवाकुमार ने बताया कि मेडिकल दृष्टिकोण से यह थ्रीडी मास्क कोरोना से बचाव के लिए बहुत कारगर होगा। आंखों के लिए कवच का काम करेगा। कोई रिएक्शन भी नहीं होगा। लैब में जांच के बाद इसको मंजूरी मिली तब पेटेंट के लिए आवेदन किया गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 08 Jul 2021 12:29 PM (IST) Updated:Thu, 08 Jul 2021 12:29 PM (IST)
3D Printed Mask: आपदा में अवसर, मास्क ऐसा; आंख रहेगी सुरक्षित, नहीं फूलेगी सांस
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के बायोकेमिस्ट्री विभाग की लैब में थ्रीडी प्रिंटेड मास्क की डिजाइन तैयार करते डाक्टर मुनीश पांडेय। जागरण

 गुरुदीप त्रिपाठी, प्रयागराज। कोरोना काल में मानवता के हित में विज्ञानियों ने बढ़-चढ़ कर नवोन्मेष किए हैं। ऐसी ही एक पहल इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) में बायोकेमेस्ट्री विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर मुनीश पांडेय के निर्देशन में हुई है। उनकी टीम ने एंटी कोरोना थ्रीडी प्रिंटेड मास्क का डिजाइन तैयार किया है। डाक्टरों ने भी इसे सेहत के अनुकूल माना है। भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रलय के कोलकाता स्थित कंट्रोलर जनरल आफ पेटेंट्स डिजाइन एंड ट्रेडमार्क ने 20 साल के लिए इस मास्क के पेटेंट को मान्यता दी है। जल्द ही यह मास्क बाजार में सुलभ होगा।

कोरोना की पहली लहर के दौरान मास्क लोगों की जरूरत बना और दूसरी लहर में अनिवार्यता। यह तथ्य भी सामने आया कि सामान्य मास्क पहनने से सांस फूलने की समस्या होती है। ऐसे लोग जो चश्मा लगाते हैं, उन्हें चश्मे के कांच पर मुंह से निकलने वाली भाप की परत परेशान करती है। डा. मुनीश बताते हैं कि इन्हीं समस्याओं को देखते हुए ऐसे मास्क पर काम शुरू हुआ जो बैक्टीरिया, वायरस और प्रदूषण से बचाए। इविवि में बायोकेमेस्ट्री डिपार्टमेंट की टीम ने आठ महीने की अवधि में एंटी कोरोना थ्रीडी प्रिंटेड मास्क की डिजाइन तैयार कर ली।

पांच लेयर वाला है यह मास्क: डा. मुनीश बताते हैं कि पांच लेयर वाले थ्रीडी मास्क में आंखों की सुरक्षा सुनिश्चित रखने के लिए ग्लास भी फिट किया जा सकेगा। दरअसल कई लोग मास्क के साथ फेसशील्ड पहन रहे हैं। इससे गर्मी लगती है। इस समस्या से भी यह मास्क राहत दिलाएगा। सांस लेने में दिक्कत नहीं हो, इसलिए फिल्टर लगाया गया है। इसकी खास डिजाइन आंख की सुरक्षा भी करेगी। वह बताते हैं कि डिजाइन थ्रीडी प्रिंटेबल तकनीक से तैयार की गई है और काफी प्रचलन में है। वैसे डिजाइन के अनुरूप मास्क बनाने की दिशा में अभी किसी कंपनी ने पहल नहीं की है। दरअसल, पहले यह पेटेंट गजट में प्रकाशित होगा। इसके बाद यदि कोई एजेंसी अथवा कंपनी संपर्क करती है तो उसे डिजाइन सौंप दी जाएगी। अनुमान है कि बाजार में इसकी कीमत करीब 200 रुपये होगी।

ऐसे तैयार हुई डिजाइन करने वाली टीम: डा. मुनीश तकरीबन 15 साल पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के रमन फेलो के तहत एक वर्ष शोध के लिए अमेरिका के ओहियो स्टेट स्थित क्लीवलैंड क्लीनिक गए थे। वहां नारायण ट्रांसलेशन रिसर्च सेंटर और नारायण मेडिकल कालेज नेल्लौर के डा. शिवाकुमार से मुलाकात हुई। वह नैनो मैटेरियल साइंस में शोध कर रहे थे। शिवाकुमार के साथी पुडुचेरी के डा. पी कार्थिगेयन इंजीनियरिंग से जुड़े हैं। कोरोनाकाल में मास्क डिजाइन करने पर चर्चा हुई तो दोनों टीम में शामिल किए गए। इविवि में बायोकेमेस्ट्री विभाग के प्रोफेसर एसआइ रिजवी और विभाग के डा. ऋषभ कुमार, डा. शंभूशरण त्रिपाठी तथा मानवीय दृष्टिकोण से इविवि मानव विज्ञान विभाग के डा. शैलेंद्र कुमार मिश्र को शामिल किया गया।

डा. शिवाकुमार ने बताया कि मेडिकल दृष्टिकोण से यह थ्रीडी मास्क कोरोना से बचाव के लिए बहुत कारगर होगा। आंखों के लिए कवच का काम करेगा। कोई रिएक्शन भी नहीं होगा। लैब में जांच के बाद इसको मंजूरी मिली तब पेटेंट के लिए आवेदन किया गया।

डा. शैलेंद्र कुमार मिश्र ने बताया कि मानवीय दृष्टिकोण से यह मास्क काफी बेहतर रहेगा। आम मास्क से केवल मुंह ढंका जा सकता है। थ्रीडी मास्क से पूरे चेहरे के साथ आंख को ढंका जा सकेगा। यह सुरक्षा देने के साथ जनमानस के लिए ज्यादा असरदार होगा।

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