अंग्रेजों के समय से देखी जा रही सरायअकिल की प्रसिद्ध रामलीला, 27 सितंबर से शुरू होगा रात में मंचन

ब्रिटिश काल में 1931 से शुरू सरायअकिल की रामलीला में उस समय बिजली व अन्य संसाधनों की कमी से नगर के अलग- अलग जगहों पर राम लीला का आयोजन किया जाता था जो आज भी जीवंत है। रामलीला कमेटी अध्यक्ष गोपालजी केसरवानी ने बताया कि यहां की रामलीला विख्यात है

By raj k. srivastavaEdited By: Publish:Sun, 25 Sep 2022 06:40 AM (IST) Updated:Sun, 25 Sep 2022 06:40 AM (IST)
अंग्रेजों के समय से देखी जा रही सरायअकिल की प्रसिद्ध रामलीला, 27 सितंबर से शुरू होगा रात में मंचन
ब्रिटिश शासन में वर्ष 1931 से शुरू हुई कस्बे की रामलीला 93 वर्षों बाद आज भी जीवंत है।

प्रयागराज, जेएनएन। कौशांबी में नगर पंचायत सरायअकिल के चावल मंडी में 27 सितंबर से आयोजित होने वाली ब्रिटिश कालीन ऐतिहासिक रामलीला का शुक्रवार को आचार्य व पुरोहितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ध्वज व भूमि पूजन किया। रामलीला में बांदा, फतेहपुर, चित्रकूट, कानपुर व महोबा से आये कलाकार राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, दशरथ, रावण और ताड़का आदि कलाकारों का अभिनय कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे। ब्रिटिश शासन में वर्ष 1931 से शुरू हुई कस्बे की रामलीला 93 वर्षों बाद आज भी जीवंत है।

 पुरोहित व आचार्यों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कराया ध्वज व भूमि पूजन

शुक्रवार को रामलीला कमेटी के अध्यक्ष गोपालजी केसरवानी ने ध्वजा व भूमि पूजन किया। पुरोहित आचार्य गिरीश चंद्र पांडेय ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन कराया। अध्यक्ष गोपालजी केसरवानी के अनुसार इस वर्ष 27 सितंबर से रामलीला शुरू होगी और नौ अक्टूबर तक चलेगी।

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल में वर्ष 1931 में तत्कालीन थानाध्यक्ष ठाकुर शिवसेवक सिंह व समाजसेवी स्व. लाला दुर्गा प्रसाद रस्तोगी ने रामलीला शुरू कराया था। आज भी रामलीला मंचन से पहले भगवान राम के साथ ही ठाकुर शिवसेवक सिंह के नाम का जयकारा लगाया जाता है।

रामलीला देखने कस्बे के साथ ही आसपास के बसुहार, इछना, बरई, खोंपा, घोसिया, बिरनेर, सुरसेनी, चित्तापुर, भगवानपुर बहुगरा आदि गांवों के हजारों दर्शक आते हैं। भूमिपूजन के दौरान चेयरमैन शिवदानी, कृष्ण नारायण रस्तोगी, महामंत्री अनिल केसरवानी, उपाध्यक्ष सतीश जायसवाल, कोषाध्यक्ष शंकरलाल केशरवानी, स्टेज प्रबंधक संतोष सोनी, प्रकाश चंद्र अग्रहरि, शीतला प्रसाद सोनवाल समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

रामलीला का तिथिवार कार्यक्रम

27 सितंबर को मुकुट पूजन व नारद मोह

28 सितंबर को मनु सतरुपा व राम रावण जन्म

29 सितंबर को मुनि आगमन व ताड़का वध

30 सितंबर को नगर दर्शन फुलवारी लीला

1 अक्टूबर को धनुष यज्ञ, परशुराम लक्ष्मण संवाद

2 अक्टूबर को राम विवाह,कलेवा का मंचन

3 अक्टूबर को राम वनवास, केवट संवाद

4 अक्टूबर को दशरथ मरण मंचन

5 अक्टूबर को सीता हरण, शबरी मिलन

6 अक्टूबर को लंका दहन

7 अक्टूबर को लक्ष्मण शक्ति, मेघनाद, कुंभकरण वध

8 अक्टूबर को सती सुलोचना, अहिरावण व रावण वध

9 अक्टूबर को भरत मिलाप, राम राज्याभिषेक का मंचन किया जायेगा।

93 वर्ष पूर्व की परंपरा आज भी कायम

ब्रिटिश काल से शुरू हुई सरायअकिल की रामलीला में उस समय बिजली व अन्य संसाधनों की कमी से नगर के अलग- अलग जगहों पर राम लीला का आयोजन किया जाता था, जो आज भी जीवंत है। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष गोपालजी केसरवानी ने बताया कि नौ दशक पहले से चली आ रही दिन की रामलीला की परंपरा रही है। जो हमारे हिंदू धर्म व भगवान राम के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देने के साथ ही पूर्वजों की विरासत को संजोए रखना है।

हमारे पूर्वजों ने बिना किसी भेद भाव के नगर पंचायत के अलग-अलग जगहों पर धार्मिक पुराण के संवादों का अभिनय करते थे। रात की रामलीला के बावजूद तीन दिनों की दिन में रामलीला की परंपरा आज भी जीवंत है। दिन में अलग-अलग मोहल्लों से निकलने वाली राम बारात में हाथी, घोड़ा, भांगड़ा, बीन बाजा, रब्बी, पाइप बैंड, डीजे के साथ धूमधाम से सज धज कर भगवान राम की बारात भ्रमण करते हुए नगर हितकरणी चबूतरे में पहुंचकर माता सीता से विवाह होता है।

- ब्रिटिशकाल में शुरू हुई रामलीला में 80 के दशक में ज्यादातर कलाकार नगर के रहते थे। उनके साथ मैं भी हास्य कलाकार का अभिनय करता था लेकिन हाईटेक होते संसाधनों के बाद संरक्षक की भूमिका में आ गया।

- कृष्णारायण रस्तोगी, संरक्षक

80 के दशक में संसाधनों की कमी थी, हांडा गैस की रोशनी में कलाकार मंचन करते थे और खर्च भी कम लगता था। अब तो दिनों दिन हाईटेक होती रामलीला में खर्च और संसाधन तो बढ़े हैं लेकिन दर्शकों का रुझान कम होना चिंता का विषय है।

- गोपालजी केसरवानी, अध्यक्ष

आधुनिकता के दौर में दिनों दिन युवा पीढ़ी का सनातन धर्म के प्रति मोहभंग होना चिंता का विषय है। जब तक रामलीला में नाच गाना होता है। तभी तक युवा दर्शक रुकते है जैसे ही रामलीला का पाठ शुरू होता है उठकर चल देते हैं।

- अनिल केसरवानी, महामंत्री

रामलीला भगवान राम के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देता हैं कि समस्त मानव जाति राम के आदर्शों पर चलेगी। हमेशा रामराज्य स्थापित रहेगा लेकिन रामलीला व धर्म के प्रति युवाओं का रुझान कम होना चिंताजनक है।

- शंकरलाल केसरवानी, कोषाध्यक्ष

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