प्रयागराज की नान खटाई, सोहन हलवा व रामदाना पट्टी की मिठास कम, युवाओं व बच्‍चों में अरुचि

प्रयागराज की लजीज मिठाइयों के ठेले केवल दशहरा दाधिकांदो मेले में ही अधिक दिखते हैं फिर वर्ष भर के लिए बाजार में कम ही नजर आते हैं। मेहमानों के स्वागत की यह पारंपरिक मीठी सामग्रियां अब चलन से लगभग बाहर कर दी गईं हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 08 Oct 2022 10:28 AM (IST) Updated:Sat, 08 Oct 2022 10:28 AM (IST)
प्रयागराज की नान खटाई, सोहन हलवा व रामदाना पट्टी की मिठास कम, युवाओं व बच्‍चों में अरुचि
प्रयागराज की परंपरागत स्‍वादिष्‍ट मिठाइयाें का चलन आधुनिकता के दौर में खत्‍म हो रहा है।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आप अगर प्रयागराज आएं तो दुकानों पर सोहन हलवा, नान खटाई, गजक, रामदाना, पेठा और चीनी वाली मूंगफली की पट्टी जरूर दिख जाएगी। हालांकि अब इन लजीज मिठाइयों की मिठास कम हो रही है। जिले में यह मीठा कारोबार फीका होता जा रहा है। इसका कारण भी है। समय के साथ आधुनिकता की चकाचौंध और खानपान के बदले दौर में अगर आजकल के युवाओं तथा बच्चों से पूछें इनके बारे में तो शायद ही गिने चुने पता पाएं।

पहले वर्ष भर अब सिर्फ दशहरा व दधिकांदो मेला में डिमांड : इन लजीज मिठाइयों के ठेले केवल दशहरा और दाधिकांदो के मेले में ही अधिक दिखते हैं फिर वर्ष भर के लिए बाजार में कम ही नजर आते हैं। जाहिर है प्रयागराज में मेहमानों के स्वागत की यह पारंपरिक मीठी सामग्रियां अब चलन से लगभग बाहर कर दी गईं हैं। इनकी जगह पिज्जा, बर्गर और चाउमीन ने ले लिया है।

पहले मेहमानों का स्‍वागत इन्‍हीं लजीज मिठाइयों से होता था : प्रयागराज जिसे पूर्व में इलाहाबाद कहा जाता था यहां पुरनियों में परंपरा रही है कि अपने घर आए मेहमानों का स्वागत नान खटाई, सोहन हलवा, गजक और पेठा से करते थे। गर्मी के दिनों में तो पेठा लगभग हर घरों में हुआ करता था, जिसे खाकर ठंडा पानी पी लेने से प्यास भी बुझ जाती थी।

वर्ष 2000 के बाद नई पीढ़ी में अरुचि : गली, मोहल्लों में यह कारोबार दशकों तक चला। 90 के दशक और सन 2000 के आसपास भी इस कारोबार ने अपना प्रभाव जमाए रखा। वर्ष 2000 के बाद आए बदलाव, खानपान के तौर-तरीकों में परिवर्तन और नई पीढ़ी के शौक ने इस पारंपरिक खानपान सामग्रियों को ही पसंद करना बंद कर दिया। धीरे धीरे यह सामग्रियां बजार से भी हटने लगी और अब केवल मेले में ही इनके ठेले दिखते हैं वह भी कहीं पर इक्का-दुक्का।

कैसे बनती हैं ये मिठाइयां : नान खटाई गजक और दाना पट्टी बनाने में मेडिटेशन तेल चीनी मूंगफली गुण और दाल आदि का उपयोग होता है। यह सभी खाद्य सामग्रियां शरीर के लिए फायदेमंद भी है। मीठी होती है और बेहद सस्ती भी लेकिन इन सामग्रियों से आम लोगों का ध्यान पूरी तरह हटने लगा है। इसके चलते यह सामग्रियां अब खत्म होने लगीं हैं।

क्‍या कहते हैं इन मिठाई के कारोबारी : नानखटाई, पेठा, गजक और चीनी की पट्टी बेचने वाले बिंदेश्वरी प्रसाद ने बताया कि उनका पुश्तैनी कारोबार है इसलिए छोड़ नहीं पा रहे हैं। पूरे दिन में दो-चार सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। इससे घर का गुजारा होता है लेकिन उनके घर के नौजवान पीढ़ी इस कारोबार को आगे नहीं बढ़ा रही है।

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