ब्रज का ऐसा धाम जहां श्रीराम व श्रीकृष्ण ने कीं लीलाएं Aligarh news

यमुना से जुड़ी बाल और कंस टीला पर संहार की लीला के दर्शन होते हैं। गोवर्धन बरसाना नंदगांव सहित पूरे ब्रज में स्नेह और प्यार के न जाने कितने किस्से लोगों के जेहन में हैं जिन्हें सुन श्रीकृष्ण की आस्था में डूब जाते हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Sun, 22 Nov 2020 11:25 AM (IST) Updated:Sun, 22 Nov 2020 11:25 AM (IST)
ब्रज का ऐसा धाम जहां श्रीराम व श्रीकृष्ण ने कीं लीलाएं Aligarh news
ब्रज में एक धाम ऐसा भी है जिसकी महत्वता सबसे अलग है।

योगेश कौशिक, इगलास: मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताय। ब्रज रज उड़ी मस्तक लगे, मुक्ति मुक्त हो जाय।। इन पंक्तियों में ब्रज का सार समाहित है। इसे देखने और समझने यहां विदेशों से भी लोग आते हैं। ब्रज रज ले जाते हैं। वह रज, जिसमें श्रीकृष्ण की गंध महसूस होती है। यमुना से जुड़ी बाल और कंस टीला पर संहार की लीला के दर्शन होते हैं। गोवर्धन, बरसाना, नंदगांव सहित पूरे ब्रज में स्नेह और प्यार के न जाने कितने किस्से लोगों के जेहन में हैं, जिन्हें सुन श्रीकृष्ण की आस्था में डूब जाते हैं। यही ब्रजधाम है, जिसकी परिक्रमा को सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। पुराणों में भी ब्रज धाम को चारों धामों से निराला बताया गया है। ब्रज में एक धाम ऐसा भी है जिसकी महत्वता सबसे अलग है। यह धाम जिला अलीगढ़ में आता है। जनपद अलीगढ़ के इगलास क्षेत्र में मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ऋषि विश्वामित्र की तपोस्थली विश्वामित्रपुरी (बेसवां)है। 

सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व धार्मिक इतिहास को संजोए है धरणीधर सरोवर

कस्बा बेसवां स्थित धरणीधर सरोवर अपने सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व धार्मिक इतिहास को संजोए हुए है। विश्वामित्र की नगरी के रूप में प्रसिद्ध होने के चलते दुनिया में इसकी ख्याति है। यहां पर अधिक मास, गंगा दशहरा, बल्देव छठ, दीपोत्सव पर्व आदि अनेक अवसरों पर विशाल मेला लगता है। विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में ऐसा मिलता है कि त्रेतायुग में ऋषि विश्वामित्र ने बेसवां में जन कल्याण के लिए यज्ञ किया था। तब ताडि़का सहित अन्य राक्षस व्यवधान डालते थे। इसके चलते विश्वामित्र अयोध्या से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को अपने साथ यहां लाए, जिन्होंने ताडि़का नामक राक्षशी का बध किया था। इसके बाद यज्ञ सफल हुआ। बाद में यज्ञ कुंड ही धरणीधर सरोवर हो गया। सरोवर पृथ्वी का नाभि केंद्र है। यहीं पर धरती को धारण किया गया है। इस लिए इसका नाम धरणीधर पड़ा। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने यहां गाय चराईं। यहां से जुड़ी गौचारण लीला का वर्णन पुराणों में भी है। श्रीकृष्ण व श्रीराम के चरण पडने के चलते यह स्थल ब्रज में खास हो गया। धरणीधर सरोवर स्थित श्री धरणेश्वर नाथ महादेव मंदिर, रुद्रेश्वर महादेव, समाधि स्थल स्थित भूतेश्वर मंदिर, श्री राम मंदिर स्थित वनखंडी महादेव अपनी अलग-अलग महिमाओं के कारण श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र हैं। यहां देश के विभिन्न हिस्सों से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। 

 

वनखंड़ी महादेव

यज्ञ को संपन्न करने के लिए विश्वामित्र जी श्रीराम व लक्ष्मण को लेकर आए थे। श्रीराम ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी जिसे आज वनखंड़ी महादेव के नाम से जाना जाता है। वनखंड़ी महादेव धरीणधर के प्राचीन श्रीराम मंदिर के पास है। मंदिर के महंत संत भरत दास त्यागी जी बताते हैं कि पहले यहां मड़ीधारी सर्प रहते है। वनखंड़ी महादेव की कोई भी भक्त सेवा पूरी नहीं कर पाता, शिवलिंग की थाह भी नहीं है। इस पर शोध कार्य भी किए जा रहे हैं। 

भूतेश्वर महादेव

धरीणधर पर लगभग चार सौ वर्ष पहले संत जीवाराम आए थे। उन्होंने 108 कपालों पर भगवान शिव की प्रतिमा को सिद्ध कर सिद्ध यंत्र पर विराजमान किया था। यहीं पर समाधिघाट व मां काली का मंदिर है। बताया जाता है कि यहां बाहर माह शिव-शक्ति मौजूद रहती है। यहीं पर आपदा उद्धारक सिद्धयंत्र भी है। यहां पूजा अर्चना करने से सिद्ध व मनबांछित फल प्राप्त होता है।

धरणेश्वर मंदिर

धरीणधर पर 50-60 वर्ष पहले संत शंकरानंद जी द्वारा बारहद्वारी पर धरणेश्वर महादेव की स्थापना की गई थी। शंकरानंद जी सिद्ध पुरूष थे। 

रूद्रेश्वर

धरीणधर के पास प्राचीन रूद्रेश्वर महादेव है। काफी समय पहले एक पेड़ की जड से रूद्रेश्वर निकले थे। पत्थर पर 108 रूद्राक्षों से बनी हुई शिवलिंग है, जिसके शीर्ष पर सर्प है। पेड़ की जड़ से निकलने के बाद यहीं पर इनकी स्थापना कर दी गई।

 

संतो की तपोभमि

यहां पर संत निर्भयानंद महाराज सर्वरानंद, वटुकनाथ,  शंकरानंद महाराज की तपोभूमि भी रहा है। धरणीधर सरोवर के दक्षिणी घाट पर संतो ने समाधियां ली हैं, जिससे इस घाट का नाम समाधिघाट हो गया। लोगों का कहना है कि जो सच्चे मन से यहां पर कोई मनोकामना लेकर आता है उसकी मनोकामनाए सरोवर में स्नान करने यहां स्थापित मंदिरों के दर्शन व पूजा अर्चना से पूरी होती है। इस सरोवर का ही प्रभाव है कि यहां पर पानी मीठा है जबकि बेसवां नगर में अंदर नमकीन पानी है। लोग यहां से पीने के लिए मीठा पानी लेकर जाते हैैं। 

ऐसे पहुंचें

ब्रज चौरासी कोस क्षेत्र के अंतर्गत यह पौराणिक व धार्मिक स्थल अलीगढ़-मथुरा राजमार्ग पर मध्य में है। श्री कृष्ण जन्मस्थली से बमुश्किल 30 किमी, यमुना एक्सप्रेस से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है। नजदीकी हवाई उड्डा आगरा व दिल्ली हैं। यहां अलीगढ़ व मथुरा से किसी भी समय बस व निजी वाहन के द्वारा पहुंचा जा सकता है।

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