दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन : शीश भले कट जाए, लेकिन गाय नहीं कटने देंगे

ब्रज क्षेत्र के लक्खी मेला श्री दाऊजी महाराज में एक बार फिर दैनिक जागरण के संयोजन में शनिवार की रात हास्य की बौछार हुई, गीतों की फुहार चली और ओज की हुंकार भरी गई।

By Edited By: Publish:Sun, 30 Sep 2018 07:54 PM (IST) Updated:Mon, 01 Oct 2018 03:06 PM (IST)
दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन : शीश भले कट जाए, लेकिन गाय नहीं कटने देंगे
दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन : शीश भले कट जाए, लेकिन गाय नहीं कटने देंगे

हाथरस (जेएनएन)। ब्रज क्षेत्र के लक्खी मेला श्री दाऊजी महाराज में एक बार फिर दैनिक जागरण के संयोजन में शनिवार की रात हास्य की बौछार हुई, गीतों की फुहार चली और ओज की हुंकार भरी गई। देशभर से आए नामचीन कवियों ने भोर की प्रथम किरण तक काव्य पाठ किया। वाणीपुत्रों ने अपनी रचनाओं में सामयिक मुद्दों को उठाकर श्रोताओं को गंभीर किया तो कभी ठहाके लगाने के लिए मजबूर कर दिया। शृंगार की सुरलहरियों से भी श्रोताओं को सराबोर किया। एक से बढ़कर एक कवियों को सुनने के लिए श्रोता भोर तक दिल थामे बैठे रहे और तालियों की गडग़ड़ाहट से उत्साह वर्धन करते रहे। इस दौरान गीतकार संतोषानंद का नागरिक अभिनंदन किया गया।

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ अतिथि सदर विधायक हरीशंकर माहौर व सिकंदराराऊ विधायक वीरेंद्र ङ्क्षसह राणा, भाजपा जिलाध्यक्ष गौरव आर्य, दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी नवीन सिंह पटेल व यूनिट प्रभारी दीपक दुबे ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर व मां सरस्वती के छवि चित्र पर माल्यार्पण करके किया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता गीतकार संतोषानंद ने की और संचालन हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने किया। कवि व अतिथियों के सम्मान के बाद काका हाथरसी व निर्भय हाथरसी के मंच से काव्य रस की बरसात शुरू हुई।

राष्ट्रवादी कवि अब्दुल गफ्फर ने यूं जोश भरा-
वीर प्रभु महावीर का सपना नहीं उचटने देंगे, शीश भले कट जाए, लेकिन गाय नहीं कटने देंगे
इस दौरान प्रसिद्ध गीतकार व फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त संतोषानंद, कानपुर से आईं शायरा शबीना अदीब, प्रसिद्ध हास्य व्यंगकार कवि तेज नारायण शर्मा, शृंगार रस की कवयित्री शिवांगी ङ्क्षसह सिकरवार, हास्य कवि व हाथरस की पहचान सबरस मुरसानी, शृंगार रस की कवयित्री गौरी मिश्रा, ओज कवि विनीत चौहान व अब्दुल गफ्फार, हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने काव्यपाठ किया।

कवि सम्मेलनों के लिए यह सुनहरा समय
साहित्य के प्रचार-प्रसार पर कवियों ने रखी अपनी राय
साहित्य समाज का दर्पण है। आजादी से लेकर आधुनिक परिवेश में साहित्य ने ही समाज को नई दिशा दिखाई। सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। सियासत को भी बेखौफ होकर आइना दिखाया। आज के दौर में कविता और शायरी दरबारी नहीं रही है, बल्कि उससे बाहर आकर हुंकार भर रही है और मानवीय संवेदनाओं को कचोट रही है। साहित्य का कुछ अवमूल्यन भी हुआ है। साहित्यकार इससे आहत तो हैं, मगर निराश नहीं। वे इस दौर को अस्थायी ही मानते हैं। शुक्रवार को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में आए देश के नामचीन कवियों-शायरों ने साहित्य के साथ अन्य ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक राय रखी..

जब तक जिंदगी है, तब तक कर्म है
प्रसिद्ध गीतकार व फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता संतोष आनंद ने कहा गीत की तरह जिदंगी बहती है। जब तक ङ्क्षजदगी है तब तक कर्म करना है और गीत ही मेरा कर्म है। उन्होंने अपने 80 साल के तजुर्बे को दैनिक जागरण से साझा करते हुए कहा कि हम ङ्क्षजदगी को नहीं मृत्यु को जीते हैं। इसलिए हर पल खुश रहना चाहिए। इसके लिए जीवन में संतोष जरूरी है, तभी आनंद मिलता है। युवा पीढ़ी के लिए उन्होंने कहा कि जो करना है, आगे इन्हें ही करना है। इसलिए खुद पर भरोसा रखते हुए दिल से काम करें, परिणाम हमेशा सकारात्मक ही रहेंगे। युवा पीढ़ी के लिए संतोष आनंद ने गीत पढ़ा ' हमको जो करना है वो तो करके ही हम जाएंगे.. आने वाले कल फिर आकर मौसम नया बताएंगे..।'

शायरी सिखाती है इंसानियत
सुप्रसिद्ध शायरा शबीना अदीब ने कहा कि शायरी को यदि लोग किसी मजहब से जोड़कर देखते हैं तो वे सियासी हैं। शायरी तो इंसानियत का जरिया है और इंसानियत का कोई धर्म नहीं। शायरी पसंद करने वाला मोहब्बत पसंद करने वाला होता है।  केवल राजनीति है जो हम लोगों को बांटने का काम कर रही है। वरना कवि सम्मेलन के मंचों से लेकर लोगों के दिलों में प्यार ही बसा है। लोगों में एक-दूसरे के प्रति नफरत नहीं। उन्होंने हाल ही में अमेरिका में क्रूज पर हुए कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि वहां हमारे देश के लोग पड़ोसी देशों के लोगों के साथ मिलजुल कर रहते हैं। कोई बैर नहीं। यहां राजनीति हावी है। चंद लोग अपने स्वार्थ के लिए लोगों को अपनों से लड़ाने का काम कर रहे है। शायरी हो या कविता दोनों लोगों को जोडऩे का काम करते हैं।

साहित्य के लिए यह सुनहरा समय
श्रृंगार रस की कवयित्री गौरी मिश्रा ने कहा कि आधुनिक युग में कवि सम्मेलन की महत्वता बढ़ती जा रही है। जगह-जगह कवि सम्मेलन हो रहे हैं। कवि सम्मेलन के लिए हिंदी साहित्य का प्रचार हो रहा है। हर तबके का व्यक्ति कवि सम्मेलन पसंद कर रहा है। इसमें ङ्क्षहदी के कवियों का विशेष योगदान है, जिनकी कविताओं के बल पर ऐसा हो पाया है। काव्य जगत की युवा पीढ़ी इसके लिए पुराने कवियों का आभार व्यक्त करती है, जिनसे हमें सीखने को मिला। गौरी मिश्रा ने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि वे सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। यू-ट््यूब, ब्लॉग के माध्यम से वे काव्य जगत से जुड़ सकते हैं। इससे उनकी पढऩे व लिखने में दिलचस्पी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि काव्य पाठ मनोरंजन का केंद्र बनता जा रहा है। इसलिए इसमें फेम, पैसा सबकुछ है। गौरी मिश्रा ने साहित्य प्रेमियों से आह्वान किया वे महिला कवित्रियों को मंचों पर तवज्जो दें। एक उम्र के बाद पुरानी कवित्रियों को तवज्जो नहीं दी जाती। यदि मंचों पर पुरानी कवित्रियों नहीं होंगी तो नई कवयित्रियों को प्रेरणा कहां से मिलेगी। मंचों पर कवित्रियों की संख्या बढऩी चाहिए।

किसान का बेटा हूं
ओज कवि अब्दुल गफ्फार ने कहा कि किसान का बेटा हूं, इसलिए गो भक्त हूं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र चेतना की जरूरत सदा रही है। अभी भी है तथा आगे भी रहेगी। ओज एक ऐसा जरिया है, जिससे राजनीतिक गलियारों की हकीकत बयां होती हैं। समाज में द्वेष फैलाने वालों के नापाक चेहरे उजागर होते हैं। यही वजह है कि लोग ओज को पसंद करते हैं। कविता पाठ में जोश के सवाल पर गफ्फार ने कहा कि मंच पर खड़े होने के बाद श्रोता ही हैं, जो जोश भर देते हैं और काव्य पाठ का मजा दो गुना हो जाता है।

हर जगह है हास्य
हास्य रस के कवि सबरस मुरसानी ने कहा कि हास्य हर जगह बिखरा पड़ा हुआ है। तलाशने वाले पर निर्भर करता है कि वो हास्य को कैसे तलाशता है। इस समय व्यक्ति तनाव भरी ङ्क्षजदगी व्यतीत कर रहा है। ऐसे में उसे हास्य की बहुत जरूरत है। यही वजह है कि कवि सम्मेलनों में हास्य व्यंगकार कवियों की संख्या में बढ़ी है। लोग जीवन में खुशी की कमी को महसूस करते हैं। इसलिए हंसने के लिए वजह की तलाश में रहते हैं। हास्य कवि वह जरिया है जो लोगों को खुशी प्रदान करता है।



श्रृंगार बिना जीवन अधूरा
श्रृंगार  रस की कवयित्री शिवानी सिंह सिकरवार ने कहा कि शृंगार के बिना जीवन अधूरा है। मंच पर हर रस की जरूरत होती है, क्योंकि श्रोता हर तरह के होते हैं। शृंगार जीवन में प्रेम भाव को दर्शाने का साधन है। कवि सम्मेलनों में लोगों की रुचि बढ़ रही है, जो साहित्यकारों के लिए अच्छे संकेत हैं। सोशल मीडिया में इसमें अग्रणी भूमिका अदा की है। हर दौर में कविताओं का सम्मान हुआ है।

' ओज ' एक तरह का राजनीतिक रस
प्रसिद्ध ओज कवि विनीत चौहान ने कहा कि ओज व वीर-रस में अंतर है। प्राचीन समय में वीर-रस के कवि युद्ध का इतिहास लिखा करते थे, अब स्थिति उलट है। हमारे सामने राजनीतिक भ्रष्टाचार बैठा है, इसीलिए मैं ओज को राजनीतिक रस भी कहता हूं, जो सत्ता के गलियारों की हकीकत बयां करता है। विनीता चौहान ने कहा कि काव्य व काव्य मंच ऐसा जरिया है, जहां से राजनीतिक हालातों की हकीकत बयां की जाती है। यही वजह है कि लोग ओज को सुनना पसंद करते हैं। लोगों के दिलों में छिपी आग मंचों पर कविता का रूप ले लेती है, जिसे हम ओज कहते हैं।

समय के साथ बदलता है कविता कंटेंट
प्रसिद्ध हास्य व्यंगकार सर्वेश अस्थाना ने कहा कि आजादी से पहले जो कविताएं लिखी जा रही थीं, तब उद्देश्य था आजादी प्राप्त करना। लोगों को एकजुट करने के लिए कविता लिखी गईं। आजादी के बाद विकास के लिए कविता लिखी गईं। इमरजेंसी के दौरान ओज पर जोर दिया गया। 80 के दशक के बाद लोगों को जागरूक करने जरूरत महसूस हुई और उस परिस्थिति को देखते हुए कविताएं लिखी गईं। इन सब चक्कर में आदमी की खुशी गायब हो गई। विसंगतियों, विक्रतियों, विविधताओं के कारण मनुष्य फंस गया और हंसना भूल गया। इसलिए लोग खुश होने व हंसने के लिए माध्यम की तलाश करते हैं। खुशी पाने के लिए हास्य कवि सम्मेलनों से बेहतर जगह नहीं है। यही वजह है कि मंचों पर हास्य कवियों की संख्या बढ़ी है। समाज के परिवर्तन के साथ-साथ कविता के कंटेंट में परिवर्तन आया है और आगे आता रहेगा।

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